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२३४ पाइअसहमहण्णवो
कसा-काइणी कसा स्त्री [कशा, कसा] चर्म-यष्टि, चाबुक, कस्सव पुं [काश्यप १ वंश-विशेष, 'कस्सव- कहण न [कथन कथन, उक्ति (धर्म १)।
कोड़ा (विपा १, ६; सुपा ३४५)। वंसुत्तंसो' (विक्र ६५) । २ ऋषि-विशेष कहणा स्त्री [कथना] ऊपर देखो (अंत २ कसा देखो कासा ( षड् )। (अभि २६)।
उप ४६७; ६६८)। कह सक [ कथय् ] कहना, बोलना । कहइ कहय देखो कहग (दे १, १४५) । कसाइ वि [कषायिन्] १ कषाय रंगवाला। २ क्रोध-मान-माया-लोभवाला (पएण १८
(हे ४,२)। कर्म. कत्थइ, कहिजइ (हे १, कहल्ल पुंन [दे] कर्पर, खप्पर (अंत १२) ।
१८७, ४, २४६)। वकृ. कहंत, कहिंत, कहा स्त्री [कथा] कथा, वार्ता, हकीकत (सुर प्राचा)।
कहेमाण (रयण ७२; सुर ११, १४८) । २; २५०; कुमा; स्वप्न ८३)। कसाइअ वि [कषायित] ऊपर देखो (गा
ववकृ. कत्थंत, कहिलंत, कहिजमाण कहाणग। द[कथानक] १ कथा, वार्ता ४८२ श्रा ३५, प्राचा)।
(राज; सुर १, ४४, गा १९८; सुर १४, कहाणय) (श्रा १२, उप पृ ११६) । २ कसाय सक [कशाय ] ताड़न करना,
६४) । संकृ. कहिउ, कहिऊण (महा: प्रसंग, प्रस्तावः 'कयं से नाम जालिरिणत्ति मारना । भूका. कसाइत्था (आचा)। काल)। कृ. कहणिज्ज, कहियव्व, कहेयव्य,
कहाणयविसेसेरण' (स १३३; ५६८) । ३ कसाय पुंकषाय] १ क्रोध, मान, माया कहणीय (सूम १, १, १; सुर ४, १६२;
प्रयोजन, कार्य; 'कहाण्यविसेसेण समागो और लोभ (विसे १२२६ दं ३)। २ रससुपा ३१६; परह २, ४, सुर १२, १७०)।
पाडलावह' (स ५८५)। विशेष कणेता (ठा १)। ३ वरण-विशेष, कर सककथ1क्वाथ करना. उबालना ।। कहाव सक। कथय कहलाना, बुलवाना। लाल-पीला रंग (उवा २२)। ४ क्वाथ,
कहइ (षड् )।
___ कहावेइ (महा)। काढ़ा। ५ वि. कषैला स्वादवाला। ६ कषाय कह पुं [कफ] कफ, शरीरस्थ वातु-विशेष, कहावण [कार्षापण सिका-विशेष (हे २, रंगवाला। ७ सुगन्धी, खुशबूदार (हे २, बलगम (कुमा)।
७१, ६३ कुमा)। १६०)।
कह देखो कहं (हे १, २६ कुमाः षड्)। कहाविअ वि [कथित] कहलाया हुअा (सुपा कसार [द] देखो कंसार (भवि)।
कवि देखो कह-कहंपि (गउड उप ७२८ ६५, ४५७)। कसि वि [कषिन] मारनेवाला, विनाशक; टी)। "वि देखो कहं-पि (प्रासू ११४०
कहि प्रक्व, कुत्र] कहां, किस स्थान 'चत्तारि एए कसिणो कसाया सिंचंति मूलाई
कहिआ में? (उवाः भग; नाटः कुमाः
कहिं कहआ अ [कथंवा] वितर्क और पाश्रय अर्थ
। उव)। पुरणब्भवस्स' (सुख १,१)। कसिअ न [कशिका] प्रतोद, चाबुक 'अंघो
कहित्तु वि [कथयित कहनेवाला, भाषक | को बतलानेवाला अव्यय (से ७, ३४)। मए भद्दवदीए कसिनं पाढतं' (प्रयौ १०८)।
(सम १५)। कहं [कथम् ] १ कैसे, किस तरह ?
कहिय विकथित] कथित, उक्त (उवः नाट)। कसिआ स्त्री. ऊपर देखो (सुर १३, १७०)। । (स्वप्न ४५; कुमा) । २ क्यों, किस लिए ? | कसिआ स्त्री [दे] फल-विशेष, अरण्यचारी
कहिया स्त्री [कथिका] कथा, कहानी (उप (हे १, २६, षड्; महा) । कहपि प्र
१०३१ टी)। नामक वनस्पति का फल (दे २, ६)। [कथमपि] किसी तरह (गा १४६) ।
कहु (अप) अ [कुतः] कहां से ? (पड् ) । कसिट (पै) देखो कट्ठ = कृष्ट ( षड्)। कहा स्त्री [कथा] राग-द्वेष को उत्पन्न
कहेड वि [दे] तरुण, जवान (दे २, १३) । कसिण देखो कसण = कृष्ण, कृत्स्न (हे २, करनेवाली कथा, विकथा (प्राचा)। चि,
कहेत्तु देखो कहित्तु (ठा ४, २)। ७५; कुमाः पाश्रः दे ४, १२)। 'ची प्र[चित् ] किसी तरह, किसी
काअइंची। स्त्री [काकचिनी] गुजा, कसुमीरा स्त्री [कश्मीर] एक उत्तर भारतीय ।
प्रकार से (श्रा १२, उप ५३० टी)। "पि अ काइंची घुघची (प्राकृ ३०)। देश (प्राकृ २८० ३३)। [ अपि] किसी तरह (गउड)।
काइअ वि [कायिक शारीरिक, शरीरकसेरु । पुंन [कशेरु, क] जलीय कन्द- कहकह कहकह] प्रमोद-कलकल, खुशी संबन्धी (श्रा ३४: प्रामा)। कसेरुय विशेष (गउड; पण्ण १)।
का शोर (ठा ३,१-पत्र ११६: कप्प)। काइ ) स्त्री कायिकी १ शरीर-सर्वकसेराग न [कशेरुक] जलमें होनेवाली वन
कहकह प्रक[कहकह्य] खुशी का शोर काइगा पी क्रिया, शरीर से निर्वृत्त ध्यास्पति की एक जाति (सूम २, ३, १८ प्राचा मचाना । वकृ. कहकहित (पएह १, २)।
पार (ठा २,१: सम १०; नव १७)२ शौच२, १, ८, ५)।
क्रिया (स ६४६)। ३ मूत्र, पेशाब (प्रोष कहकहकह पुं [कहकहकह] खुशी का शोर कसोति स्त्री [दे] खाद्य-विशेष, ‘महाहिं
२१६, उप पृ २७८)। (भग)। कसोति भोचा कजं सधैति' (सुज १०, १७)। कहकह पुंकिथंकथा] बातचीत (पाचा २,
काइंदी स्त्री [काकन्दी] इस नाम की एक कस्स [दे] पङ्क, कर्दम, काँदो (दे २, २)। १५, २)
नगरी, बिहार की एक नगरी (संथा ७६)। कस्सय न [दे] प्राभृत, उपहार, भेंट (दे २, कहग वि [कथक १ कहनेवाला, (सट्टि काइणी स्त्री [दे] गुजा, लाल रत्ती (दे २, १२)।
२३)। २ पुं. कथा-कार (उप १०३१ टी)। २१)।
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