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पाइअसद्दमहण्णवो
काम-काय
काम पुं[काम] १ इच्छा, कामना, अभिलाषा न [प्रभ] देवविमान-विशेष (जीव ३)। कामि वि [कामिन् अभिलाषी (कुप्र १५४)। (उत्त १४ाचा प्रासू ६६)। २ सुन्दर शब्द, रूप
फास पुं[स्पर्श ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठाता कामिअ वि [कामित वाञ्छित, अभिलषित वगैरह विषय (भग ७,७; ठा ४,४)। ३ विषय देव-विशेष ( सुज २०)। महावण न (सुपा २५५)। का अभिलाष (कुमा)। ४ मदन, कन्दर्प (कुमाः [महावन बनारस के समीप का एक कामिअ वि [कामिक] १ काम-सम्बन्धी, प्रासू १)। ५ इन्द्रिय-प्रीति (धर्म १)। ६ चैत्य (भग १५)। रूअ पुं [ रूप] देश- विषय-सम्बन्धी (भत्त १११) । २ न. तीर्थमैथुन (पएण २)। ७ छन्द-विशेष (पिंग)। विशेष, जो आसाम में है (पिग)। लेस्स विशेष (ती २८)। ३ सरोवर-विशेष, जिसमें कत न [कान्त] देव-विमान-विशेष (जीव [लेश्य देव-विमान-विशेष (जीव ३)। ईप्सित जन्म मिलता है (राज)। ४ वि. ३)। कम न [कम] लान्तक देव-लोक वण्ण न [°वर्ग] एक देव-विमान (जीव इच्छा पूर्ण करनेवाला (स ३६०) ५ वि. के इन्द्र का एक यात्रा-विमान (ठा १०-पत्र ३)। सत्थ न [शास्त्र] रति-शास्त्र (धर्म इच्छुक, इच्छावाला, साभिलाष (विपा १, १)। ४३७)। काम वि [काम] विषय की २)। समणुण वि [समनोज्ञ] कामा- कामिआ स्त्री [कामिका] इच्छा, अभिलाषा; चाहबाला ( पराण २) । कामि वि सक्त, कामान्ध (प्राचा)। सिंगार न 'अकामियाए चिणंति दुक्ख' (पएह १, ३)। [कामिन] विषयाभिलाषी (प्राचा)। कृड [°शृङ्गार] देव-विमान विशेष (जीव ३)। कामिंजुल पुं [कामिजुल] पक्षि विशेष (दे न [°कूट] देव विमान-विशेष (जीव ३) ।
'सिष्ट न [शिष्ट] एक देव-विमान-विशेष २, २६)। 'गम वि [गम] १ स्वेच्छाचारी, स्वैरी
(जीव ३) । बिट्ट न [विर्त] देव-विमान- कामिड्ढि पुं[काद्धि] एक जैन मुनि, आर्य (जीव ३)। २ न देखो कम (जीव ३)।
विशेष (जीव ३) । विसाइत्त स्त्री [वशा- मुहस्तिसूरि का एक शिष्य (कप्प)। गामि स्त्री [°गामी] विद्या-विशेष (पउम
यिता] योगी का एक तरह का ऐश्वर्य, जिसमें कामिड्ढिय न [कामर्द्धिक] जैन मुनियों का ७, १३५)। गुण न [गुण] १ मैथुन
योगी अपनी इच्छा के अनुसार सर्व पदार्थों एक कुल (कप्प) । (पएह १, ४)। २ शब्द-प्रमुख विषय (उत्त
का अपने चित्त में समावेश करता है (राज)। कामिणी स्त्री [कामिनी] कान्ता, स्त्री (सूपा १४) । घड पुं [घट] ईप्सित चीज को
"संसा स्त्री [शंसा] विषयाभिलाष (ठा देनेवाला दिव्य कलश (था १४)। जल न
कामिय वि कामित] यथेष्ठ, जितना चाहे [°जल] स्नान-पीठ, जिसपर बैठकर स्नान
कामं [कामम्] इन अर्थों का सूचक उतना (पिंड २७२)। किया जाता है वह पट्ट; "सिणाणपीढं तु
अव्यय--१ अवधारण (सूम २, १)। २
कामुअ । वि [कामुक] कामी, विषयाभिलाषी कामजलं' (निचू १३) । जुग पुं[युग
अनुमति, सम्मति (निचू १६)। ३ अभ्युपगम, कामुग । (मै २५; महा)। सत्थ न [ शास्त्र] पक्षि-विशेष (जीव ३) । उभय न [ध्वज]|
स्वीकार (सूअ २, ६)। ४ अतिशय, अधिक्य काम-शास्त्र, रति-शास्त्र (उप ५३० टी)। देवविमान-विशेष (जीव ३) उझया स्त्री (हे २, २१७)।
कामुत्तरवडिंसग न[ कामोत्तरावतंसक ] [ ध्वजा] इस नाम की एक वेश्या (विपा कामंग न [ कामाङ्ग] कन्दर्प का उत्तेजक
देवविमान-विशेष (जीव ३)। १, २)। द्वि वि [र्थिन] विषयाभिलाषी स्नान वगैरह (सूप २, २)।
काय पुं[काय] १ वनस्पति की एक जाति (रणाया १,१)। ड्ढिय पुं[द्धिक] १ जैन कामंदुहा स्त्री [काकदुधा] कामधेनु, ईप्सित
(सूम २, ३, १६)। २ एक महाग्रह (मुज साधुनों का एक गण (ठाह-पत्र ४५१)। वस्तु को देनेवाली दिव्य गौ (पउम ८२,
२०)। ३ पुंन. जीव-निकाय, जीव-समूह २ न. जैन मुनियों का एक कुल (राज)।
'एयाई कायाई पवेदिताई' (सूत्र १, ७, २)। 'यर न [ नगर] विद्याधरों का एक नगर कामंध पुं[कामान्ध विषयातुर, तीन कामी
मंत वि [वत् ] बड़ा शरीरवाला (सूत्र (इक)। दाइणी स्त्री [°दायिनी] ईप्सित (प्रासू १७६)।
२, १, १३)। वह पुं[वध जीव-हिसा फल को देनेवाली विद्या-विशेष (पउम ७, कामकिसोर पुं [दे] गर्दभ, गधा (दे २,
(श्रावक ३४६)। १३५)। 'दुहा स्त्री [°दुघा] कामधेनु (श्रा ३०)।
काय पुं[काय] १ शरीर, देह (वा ३, १; १६)। °देअ, देव पुं [देव] १ अनंग, कामग वि [कामक] १ अभिलषरणीय, वाञ्छ
कुमा)। २ समूह, राशि (विसे ६००)। ३ कन्दर्प (नाट; स्पप्न ५५)। २ एक जैन नीय (पएह १, १) । २ चाहनेवाला, इच्छुक
देश-विशेष (पएह १, १)। ४ वि. उस देश श्रावक का नाम (उवा)। धेणु स्त्री [धेनु] (सूत्र १, २, २)।
में रहनेवाला (पएण १)। गुत्त वि गुप्त] ईप्सित फल देनेवाली गौ (काल)। पाल | कामण न [कामन] चाह, अभिलाषः 'परइ
शरीर को वश में रखनेवाला (भग)। गुत्ति पुं[पाल] १ देव-विशेष (दीव)। २ बलदेव, त्थिकामणेणं जीवा नरयम्मि वच्चंति' (महा)।
स्त्री [गुप्ति शरीर को वश में रखना, हलायुध (पास)। पिपासय वि [°पिपासक] | कामय देखो कामग (उवा)।
जितेन्द्रियता (भग) । जोअ, जोग पुं विषयाभिलाषी (भग)। 'पुर न [पुर] इस कामि वि [कामिन] विषयाभिलाषी (प्राचा; [योग] शरीर व्यापार, शारीरिक क्रिया नाम का एक विद्याधर नगर (इक)। "प्पभ । गउड)।
(भग) । जोगि वि [ योगिन्] शरीर-जन्य
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