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काय-कारा
पाइअसद्दमहण्णवो
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क्रियावाला (भग)। "द्विइ स्त्री [स्थिति] | कायंवरी स्त्री [कादम्बरी] १ मदिरा, दारू कार वि [ कार] करनेवाला (पउम १७,७)। मर कर फिर उसी शरीर में उत्पन्न होकर (पार पउम ११३, १०)। २ अटवी-विशेष कारंकड वि [दे] परुष, कठिन (दे २, ३०)। रहना (ठा २, ३) । "णिरोह [निरोध] (स ५५१)।
। कारंड पुकारण्ड, क] पक्षि-विशेष; 'हंसशरीर-व्यापार का परित्याग (पाव ४)। कायक न [दे. कायक] हरा रंग की रूई से कारंडग कारंडवचक्कवाओवसोभियं' (भवि °तिगिच्छा स्त्री ["चिकित्सा] १ शरीर- बना हुआ वस्त्र (प्राचा २, ५, १)। कारंडव औप; स ६०१ रणाया १,१; परह रोग की प्रतिक्रिया। २ उसका प्रतिपादक कायस्थ [कायस्थ] जाति-विशेष, कायथ
१,१ विक्र ४१)। शास्त्र (विपा १,८)। भवत्थ वि [भवस्थ] जाति, कायस्थ नाम से प्रसिद्ध जाति, लेखक,
कारग वि [कारक] १ करनेवाला (पउम माता के उदर में स्थित (भग)। वझ j लिखने का काम करनेवाली मनुष्य-जाति (मुद्रा
८२, ५६, उप पृ २१५)। २ करानेवाला [वन्ध्य ग्रह-विशेष (राज)। समिअ वि ७६; मृच्छ ११७)।
(श्रा ६; विसे)। ३ न. कर्ता, कर्म वगैरह [समित ] शरीर की निर्दोष प्रवृत्ति करने- कायपिउच्छा। स्त्री [दे] कोकिला, कोयल,
व्याकरण प्रसिद्ध कारक (विसे ३३८४) । वाला (भग) । समिइस्त्री [ समिति] शरीर कायपिउला पिको (दे २, ३०; षड्)। ४ कारण, हेतु; 'कारणं ति वा कारगं ति की निदोष प्रवृत्ति (ठा ८)।
कायर वि [कातर] अधीर, डरपोक (णाया वा साहारणं ति वा एगट्ठा' (प्राचू १)। ५
- १,१: प्रासू ५८)। काय पुं [काक] १ कोपा, वायस (उप पृ
उदाहरण, दृष्टान्त (मोघ १६ भा)। ६ पुंन. २३ हेका १४८; वा २६)। २ वनस्पति
कायर वि [दे] प्रिय, स्नेह-पात्र (दे २, ५८)। सम्यकत्व-विशेष, शास्त्रानुसार शुद्ध क्रियाः
कायरिय वि [कानर] १ डरपोक, भयभीत, विशेष, काला उम्बर (पराग १-पत्र ३५)।
'जं जह भणियं तुमए तं तह करणम्मि अधीर: 'धोरणवि मरियव्वं कायरिएणावि कारगो होइ' (सम्य १४)। देखो काक, काग।
कारण न [कारण] १ हेतु, निमित्त (विसे
अवस्समरियव्वं' (प्रासू १०६)। २ पुं. । काय पुं[का च] काँच, शीशा (महा प्राचा)। काय पुं[द] १ काँवर, बहँगो, बोझ ढोने
गोशालक का एक भक्त (भग ८, ५)। २०६८ स्वप्न १७) । २ प्रयोजन (प्राचा)।
कायरिया स्त्री [कातरिका] माया, कपट के लिए तराजूनुमा एक वस्तु, इसमें दोनों
३ अपवाद (कप्प)।
कारणिज्ज वि [कारणीय] प्रयोजनीय (स ओर सिकहर लटकाये जाते हैं (गाया १, ८
(सूत्र १, २, १)। टी-पत्र १५२)। कोडिय पुं[कोटिक
कायल पुं[दे] १ काक, कौया (दे २, ५८ कांवर से भार ढोनेवाला (गाया १, ८ टी)।
पात्र)। २ वि. प्रिय, स्नेह-पात्र (दे २, कारणिय वि [कारणिक] १ प्रयोजन से देखो काव ।
किया जाता (उवर १०८)। २ कारण से ५८)। कायलि देखो कागलि (नाट--मृच्छ १२)।।
प्रवृत्त (वव २) । ३ . न्याय-कर्ता, न्यायाधीश काय पुं[दे] १ लक्ष्य, वेध्य, निशाना। २
कायवंझ [कायवन्ध्य] ग्रह-विशेष, ग्रहा. उपमान, जिस पदार्थ की उपमा दी जाय वह
(सुपा ११८)। धिष्ठायक देव-विशेष (राज)।
कारय देखो कारग (श्रा १६; विसे ३४२०) । कायव्य देखो कर = कृ। कायंचुल [दे] कामिन्जुल, जल-पक्षी
कारव सक [ कारय् ] करवाना, बनवाना । विशेष (दे २,२६)।
कायह वि [कायह] देश-विदेश में बना हया कारवेइ (उव) । वकृ. कारविंत (सुपा ६३२; कायंदी स्त्री [दे] परिहास, उपहास (दे २, (वस्त्र) : (प्राचा २, ५, १, ७)।
पुप्फ ४७) । संकृ. कारवित्ता (कप्प) । काया स्त्री [काया] शरीर, देह (प्रासू ११२) ।
कारवण न [ कारण ] निर्मापन, बनवाना २८)।
। (राज)। कायंदी देखो काइंदी (स ६)।
कार सक [ कारय ] करवाना, बनवाना। कायंधुअ पुं[दे] कामिज़ुल, जल-पक्षी
कारवस पुंकारवश] देश-विशेष (भवि)। कारेइ, कारेह (पि ४७२, सुपा ११३)। विशेष (दे २, २६)।
कारवाहिय वि [कारबाधित] देखो करेभूका. कारेत्था (पि ५१७)। वकृ. कारयंत
वाहिय (प्रौप)। कायंब । [कादम्ब, क] १ हंस-पक्षी (सुर १६, १०); कारेमाण (कप्प)। कवकृ. कायंबग ) (पान; कप्प)। २ गन्धर्व-विशेष ।
कारविय वि [कारित कराया हुआ (सुर १, कारिजंत (सुपा ५७) । संकृ. कारिऊण ३ कदम्ब-वृक्ष (राज)। ४ वि. कदम्ब-वृक्ष
२२६)। (पि ५८४)। कृ. कारेयव्व (पंचा ६)। सम्बन्धीः 'कायंवपुष्फगोलयमसूरअइमुत्तयस्स
कारह वि [कारभ] करभ-सम्बन्धी (गउड)। कार वि [दे] कटु, कड़वा, तीता (दे २ २६)। पुर्फ व' (पुप्फ २६८)।
कारा स्त्री [काए] कैदखाना (दे २, ९०; कार पुन. देखो कारा = कारा (स ६११; पाप्र)। गार पुंन [गार] कैदखाना, जेल कायंबर न [कादम्बर] मद्य-विशेष, गुड़ का गाया १. १)।
(सुपा १२२; सार्ध ५२)। °घर न [गृह] दारू; 'कायंबरपसन्ना' (पउम १०२, १२२)।
कार [कार) १ किया, कृति, व्यापार (ठा कैदखाना (अच्च ८३)। मंदिर न [ मन्दिर] कायंबरी स्त्री [कादम्बरी] एक गुहा का नाम १०) । २ रूप, प्राकृति । ३ संघ का मध्य कैदखाना, जेलखाना (कप्पू) । (कुप्र६३)।
भाग (वव ३)।
| कारा स्त्री [दे] लेखा, रेखा (दे २, २६)।
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