________________
२२४
कमल-कम्म
पाइअसहमहण्णवो १५, २०२; दे २, ५४ अणुः कप्प; औप)। कमलंग न [कमलाङ्ग] संख्या विशेष, चौरासी ५ कलह, झगड़ा (षड्)।
लाख महापद की संख्या (जो २)।
कमला स्त्री [दे] हरिणी, मृगी (पान)। कमल पुंन [कमल] एक देव-विमान (देवेन्द्र कमला स्त्री [कमला] १ लक्ष्मी (पानः सुपा १४२)। अण पु [नयन] विष्णु, २७५)। २ रावण की एक पत्नी (पउम नारायण (समु १५२)।
७४, ६)। ३ काल नामक पिशाचेन्द्र की एक कमल न [कमल] १ कमल, पद्म, अरविन्द,
अग्र-महिषी, इन्द्राणी विशेष (ठा ४, १)।
४ 'ज्ञाताधर्मकथा' सूत्र का एक अध्ययन (कप्प; कुमा; प्रासू ७१)। २ कमलाख्य
(गाया २)। ५ छन्द-विशेष (पिंग)। अर इन्द्राणी का सिंहासन । ३ संख्या-विशेष,
पुं[कर] धनाढ्य, धनी (से १, २६)। 'कमलांग' को चौरासी लाख से गुणने पर जो
कर्मालणी स्त्री [कमलिनी] पद्मिनी, कमल संख्या लब्ध हो वह (जो २)। ४ छन्द
का गाछ (पास)। विशेष (पिंग)। ५ पुं. कमलाख्य इन्द्राणी के
कमलुब्भव पुं.[कमलोद्भव] ब्रह्मा (त्रि ८२)। पूर्व जन्म का पिता (णाया २)। ६ श्रेष्ठिविशेष (सुपा २७५)। ७ पिंगल-प्रसिद्ध एक
कमव । अक[ स्वप] सोना, सो जाना। गण, अन्त्य अक्षर जिसमें गुरु हो वह गण
कमवस । कमवइ (षड्)। कमवसइ (हे (पिंग)। ८ एकजात का चावल, कलम
४, १४६; कुमा)।
कमसोम [क्रमशः] क्रम से, एक-एक करके (प्राप्र)। क्ख [क्षि] इस नाम का एक
(सुर १, ११६)। यक्ष (सण)। जय न [जय] विद्याधरों
कमिअ वि [दे] उपसर्पित, पास आया हुना का एक नगर (इक)। जोणि पुं[योनि]
(दे २, ३)। ब्रह्मा, विधाता (पान)। पुर न [पुर]
कमिय बि [क्रान्त] उल्लंघित (दस २, ५)। विद्याधरों का एक नगर (इक)। पभा
कमेलग। पुंस्त्री [क्रमेलक] उष्ट्र, ऊँट (पाम: स्त्री [प्रभा] १ काल-नामक पिशाचेन्द्र की
कमेलय उप १०३१ टी; करु ३३)। स्त्री. अग्र-महिषी (ठा ४, १)। २ 'ज्ञाता धर्मकथा' गी (उप १०३१ टी)। सूत्र का एक अध्ययन (णाया २)। बन्धु
कम्म सक [कृ] हजामत करना, क्षौर-कर्म पुं[बन्धु] १ सूर्य, रवि (पउम ७०, ६२)।
करना। कम्मइ (हे ४, ७२ षड् )। वकृ. २ इस नाम का एक राजा (पउम २२, १८)।
कम्मंत (कुमा)। 'माला स्त्री [ माला] पोतनपुर नगर के
कम्म सक [भुज ] भोजन करना। कम्मइ राजा आनन्द की एक रानी, भगवान् अजि
(षड्) । कम्मेइ (हे ४, ११०)। तनाथ की मातामही–दादी (पउम ५,५२)।
कम्म देखो कम % कम् 'रय पुं [रजस् ] कमल का पराग कम्म पुंन [कमन्] १ जीव द्वारा ग्रहण (पान) । वडिंसय न [वतंसक कमला- किया जाता अत्यन्त सूक्ष्म पुद्गल (ठा ४, नामक इन्द्राणी का प्रासाद (गाया २) । ४ कम्म १, १)। २ काम, क्रिया, करनी, 'सिरी स्त्री [श्री] कमला-नामक इन्द्राणी व्यापार (ठा १. आचा); 'कम्मा पारणफला' की पूर्व जन्म की माता का नाम (णाया २)। (पि १७२)। ३ जो किया जाय वह । ४ सुंदरी स्त्री [सुन्दरी] इस नाम की एक व्याकरण-प्रसिद्ध कारक-विशेष (विसे २०६६ रानी (उप ७२८ टी)। सेणा स्त्री [°सेना] ३४२०)। ५ वह स्थान, जहाँ पर चूना एक राज-पुत्री (महा)। अर, गर पुं वगैरह पकाया जाता है (पएह २, ५ - पत्र [कर] १ कमलों का समूह । २ सरोवर, १२३)। ६ पूर्व-कृति, भाग्य; कम्मत्ता दुभगा ह्रद वगैरह जलाशय (से १, २६; कप्प)। चेव' (सूस १, ३, १; आचा (षड्)। ७ पीड, मेल पुं [पीड] भरत चक्रवर्ती कार्मण शरीर । ८ कामरण-शरीर नामकम, का अश्व-रत्न (जं ३; पि ६२)। "सण पुं. कर्म-विशेष (कम्म २, २१)। "कर वि [सन] ब्रह्मा, विधाता (पान दे ७, ६२)। [कर] नौकर, चाकर (प्राचा)। देखो गार।
करण न [करण] कर्म-विषयक बन्धन, जीव-पराक्रम-विशेष (भग ६,१)। कार वि [कार ] नौकर (पउम १७, ७)। 'किब्बिस वि [किल्बिष] कर्म-चाण्डाल, खराब काम करनेवाला (उत्त ३)। क्खंध पुं[स्कन्ध] कर्म-पुद्गलों का पिण्ड (कम्म ५)। गर देखो कर (प्रारू)। गार पुं [कार] १ कारीगर, शिल्पी (णाया १, है)। देखो कर। जोग पुं[योग] शास्त्रोक्त अनुष्ठान ( कम्म )। "ट्ठाण न [°स्थान] कारखाना (प्राचा)। हिइ स्त्री [स्थिति] १ कर्म-पुद्गलों का अवस्थानसमय (भग ६, ३)। २ वि. संसारी जीव (भग १४, ६)। "णिसेग पुं [निषेक] कर्म-पुद्गलों की रचना-विशेष (भग ६, ३)। 'धारय पुं [ धारय] व्याकरण-प्रसिद्ध एक समास (अणु)। परिसाडणा स्त्री [परिशाटना] कर्म-पुद्गलों का जीव-प्रदेशों से पृथक्करण (सूत्र १, १)। पुरिस पुं [पुरुष] कर्म-प्रधान पुरुष–१ कारीगर, शिल्पी (सूत्र १, ४, १)। २ महारम्भ करनेवाले वासुदेव वगैरह राजा लोग (ठा ३, १-पत्र ११३)। पवाय न [प्रवाद]
जैन ग्रन्थांश-विशेष, प्राठवाँ पूर्व (सम २६) । 'बंध पुं[बन्ध] कर्म पुद्गलों का आत्मा में लगना, कर्मों से आत्मा का बन्धन (पाव ३)। भूमग वि [भूमिक] कर्म-भूमि में उत्पन्न (पएरण १)। भूमि स्त्री [भूमि कर्म-प्रधान भूमि, भरत क्षेत्र वगैरह (जी २३)। भूमिग देखो भूमग (पएण २३)।
भूमिय वि [भूमिज] कर्म-भूमि में उत्पन्न (ठा ३, १-पत्र ११४)। "मास पुं[मास श्रावण मास (जो १)। मासग पुं[माषक] मान-विशेष, पाँच गुजा, पांच रत्ती (अणु)। य वि[ज] १ कम से उत्पन्न होनेवाला। १ कर्म-पुद्गलों का बना हुप्रा शरीर-विशेष, कार्मण शरीर (ठा २, १, ५, १)। या स्त्री [जा] अभ्यास से उत्पन्न होनेवाली बुद्धि, अनुभव (मंदि)। लेस्सा स्त्री [°लेश्या कर्म द्वारा होनेवाला जीव का परिणाम (भग १४, १) । वग्गणा स्त्री [°वर्गणा] कर्म-रूप में परिणत होनेवाला
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org