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कम्म-कय
पाइअसद्दमहण्णवो
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पुद्गल-समूह (पंच)। वाइ वि [वादिन]। कामण करनेवाला (सुर १, ९८)। जोय देखो ग (परह १, २)। कन्ज वि [°काय] भाग्य को ही सब कुछ माननेवाला (राज)। [योग कार्मण-प्रयोग (गाया १, १४)। कृतार्थ, सफल-मनोरथ (णाया १, ८)। 'विवाग ' [विपाक] १ कर्म परिणाम, | कम्मण न [भोजन] भोजन (कुमा) । करण वि [करण] अभ्यासी, कृताभ्यास कर्म-फल । २ कर्म-विपाक का प्रतिपादक | कम्ममाण देखो कम = कम् ।
(बृह १, परह १; ३)। 'किच्च वि [कृत्य] ग्रन्थ ( कम्म १, १)। संबच्छर पुं| कम्मय देखो कम्मग (भगः पंच) । कृतार्थ, सफल मनोरथ (सुपा २७)। ग वि [संवत्सर] लौकिक वर्ष (सुज्ज १०)। कम्मव सक [ उप + भुज ] उपभोग करना। [क] १ अपनी उत्पत्ति में दूसरे की अपेक्षा 'साला स्त्री [°शाला] १ कारखाना। २ कम्मवइ (हे ४, १११; पड्)।
करनेवाला, प्रयत्न-जन्य (विसे १८३७ स कुम्भकार का घटादि बनाने का स्थान (बृह कम्मवण न [उपभोग] उपभोग, काम में ६५३)। पुं, दास-विशेष, गुलाम; 'भयगभत्तं २)। "सिद्ध पुं[सिद्ध] कारीगर, शिल्पी | लाना (कुमा)।
वा बलभत्तं वा कयगभत्तं वा' (निचू है)। (प्रावम)। °जीव [जीव] १ कारीगर । कम्मस वि [कल्मष] १ मलिन । २ न. पाप ३ न. सुवर्ण, सोना (राज)। ग्ध वि [न] २ कारोगरी का कोई भी काम बतलाकर (पाम; हे २,७९, प्रामा)।
उपकार न माननेवाला, कृतघ्न (सुर २, ४४; भिक्षादि प्राप्त करनेवाला साधु (ठा ५,१)। कम्मा स्त्री [कमेन्] क्रिया, व्यापार (ठा ४, सुपा ५८८)। जाणुअ वि [ज्ञायक] दाण न [गदान] जिससे भारी पाप हो २-पत्र २१०)।
कृतज्ञ, उपकार को माननेवाला (पि ११८) । ऐसा व्यापार (भग ८, ५)। यरिय कम्मार पुं [कार] १ लोहार, लोहकार
°ण्णु वि [s] उपकार को माननेवाला, [य] कर्म से आर्य, निर्दोष व्यापार करने-__(विसे १५६८) । २ ग्राम-विशेष (आचू १) । किए हुए उपकार की कदर करनेवाला वाला (पएण १)। वाइ देखो वाइ कम्मार । वि [कमेकार, क] १ नौकर, (धम्म २६)। णुया स्त्री ["ज्ञता] कृतज्ञता,
कम्मारग चाकर (स ५३७; ओघ ४,६४ (प्राचा)।
एहसानमन्दी, निहोरा मानना (उप पृ८६) । कम्मारय टो)। २ कारीगर, शिल्पी (जीव ३)। कम्म वि [कार्मण] १ कर्म-सम्बन्धी, कर्मकम्मारिया स्त्री [कर्मकारिका] स्त्री-नौकर,
त्थ वि [ार्थ] कृतकृत्य, चरितार्थ, सफलजन्य, कर्म-निर्मित, कर्म-मय । २ न. कर्मदासी (सुपा ६३०)।
मनोरथ (प्रासू २३)। 'नासि वि [नापुद्गलों का ही बना हुमा एक अत्यन्त सूक्ष्म कम्मि । वि [कर्मिन् ] कर्म करनेवाला,
शिन] कृतघ्न (ोध १६६) । न्न,न्नु शरीर, जो भवान्तर में भी आत्मा के साथ | कम्मिअ अभ्यासी
देखो °णु; 'जं कित्तिजल हिराया विवेयनयही रहता है (ठा १; कम्म ४)। २ कर्म
'रणवकम्मिएण उअ पामरेण देट् ठूण पाउहारीयो। मदिरं कयन्नगुरू' (सुपा ३०१; महाः सं विशेष, कार्मण-शरीर का हेतु-भूत कर्म
मोतव्वे जोत्तमपग्गहम्मि अवरासणी मुक्का।' ३३; श्रा २८)। पंजलि वि [प्राञ्जलि] (कम्म २, २१)। ३ कार्मरण-शरीर का
(गा ६६४)। कृताञ्जलि, नमस्कार के लिए जिसने हाथ व्यापार (कम्म ३, १५९ कम्म ४)।
२ पाप कर्म करनेवाला (सूत्र १, ७६)। ऊँचा किया हो वह (माब)। पडिकइ स्त्री कम्मइय न [कर्मचित, कार्मण] ऊपर देखो कम्मिया स्त्री [कमिका, कार्मिका] १ अभ्यास [प्रतिकृति] १ प्रत्युपकार (पंचा १६)। (पउम १०२, ६८)।
से उत्पन्न होनेवाली बुद्धि (गाया १, १)। २ विनय-विशेष (वव १)। पडिकइया कम्मत ' [दे. कर्मान्त] १ कर्म-बन्धन का २ प्रक्षीण कर्म-विशेष, अवशिष्ट कर्म (भग)।
स्त्री [प्रतिकृतिता] १ प्रत्युपकार (साया कारण (प्राचा; सूम २, २)। २ कर्म-स्थान, कम्हल न [कश्मल] पाप (राज)।
१, २)। २ विनय का एक भेद (ठा ७)। कारखाना (दे २, ५२)। कम्हा अ [कस्मात् ] क्यों, किस कारण
बलिकम्म वि [°बलिकर्मन् ] जिसने कम्मंत वि [ कुर्वत् ] १ हजामत करता से ? (प्रौप)।
देवता की पूजा की है वह (भग २, ५, णाया हुमा । २ हजाम, नापित (कुमा)। साला कम्हार देखो कंभार (हे २, ७४) । ज न
१, १६-पत्र २१०; तंदु)। मंगला स्त्री स्त्री [शाला] जहाँ पर उस्तरा-बाल बनाने | [ज] केसर, कुंकुम (कुमा)।
[मङ्गला] इस नाम की एक नगरी (संथा)। का छुरा आदि सजाया जाता हो वह स्थान | कम्हिअ' [दे] माली, मालाकार (दे २, ८)। 'माल, 'मालय वि [°माल, क] १ जिसने (निचू ८)।
- कम्हीर देखो कंभार (मुद्रा २४२; पि १२०; माला बनाई हो वह । २ पु. वृक्ष-विशेष, कनेर कम्मक्कर देखो कम्म-कर (प्राकृ २६)। ३१२) ।
का गाछ; 'अंकोल्लबिल्लसल्लइकयमालतमालकम्मग न [कर्मक, कार्मक, कार्मण] देखो कय पुं [कच ] केश, बाल (हे १, १७७ सालड्ढं' (उप १०३१ टी)। ३ तमिस्राकम्म = कामण (ठा २,२ परण २१; (भग)। कुमा)।
नामक गुफा का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३)। कम्मण न [कार्मण] १ कर्म-मय शरीर (दं | कय [क्रय] खरीदना (सुपा ३४४)। लक्खण वि [°लक्षण] जिसने अपने शरीर २२)। २ औषध, मन्त्र आदि के द्वारा मोहन, | कय देखो कड = कृत (प्राचा: कुमा; प्रासू १५)। चिन्ह को सफल किया हो वह (भग ६, ३३; वशीकरण, उच्चाटन आदि कर्म (उप १३४ | °उण्ण, उन्न वि [ पुण्य] पुण्यशाली, गाया १,१)। व वि [वत् ] जिसने टी; स १०८)। गारि वि [कारिन्] भाग्यशाली (स ६०७ सुपा ६०६) । क. किया हो वह (विसे १५५५)। वणमाल
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