________________
उपकरण-उवगप्पिय पाइअसद्दमहण्णवो
१७३ उवकरण देखो उवगरण (प्रौप)
वस्तु (ठा ४, २; स २८७)। ८ शब्द, उवक्खर पुं[उपस्कर] १ संस्कार । २ जिससे उवकस सक [उप + कष] प्राप्त होना, हथियार; "भुम्माहारच्छेए उवक्कमेणं च | संस्कार किया जाय वह (ठा ४, २)। 'नारीण वसमुवकसति (सूत्र १, ४)। परिणाए' (धर्म २)। ६ उपचार (स २०५)। उवक्ख र पुं [उपस्कर] घर का उपकरण, उवकसिअ वि [दे] १ सैनिहित । २ परिसे- १० ज्ञान, निश्चय। ११ अनुवर्तन, अनुकूल- साधन (सूअनि ५)
वित । ३ सजित, उत्पादित (दे १, १३८) प्रवृत्ति (विसे ६२६; ६३०)। १२ संस्कार, | उवक्खरण न [उपस्करण] ऊपर देखो। उवकार देखो उवगार (धर्मसं ६२० टी) परिकर्म; 'खेत्तोवक्कमे (अण) । "साला स्त्री[शाला] रसोई-घर, पाकउव कारिया देखो उवगारिया (राय ८२) उवक्कम पुं[ उपक्रम ] अनुदित कर्मो को |
गृह (निचू ६) उवकिइ । स्त्री [उपकृति] उपकार (दे ४, उदय में लाना (सूअनि ४७)।
उवक्खा सक [उपा+ख्या] कहना । कर्म. उवकिदि६४८; ४५) । उवक्कमण न [उपक्रमण] उपर देखो (अणु;
उवक्खाइज्जति (सूम २, ४, १०० भग १६, उपकुल न [उपकुल] नक्षत्र-विशेष, श्रवण
३-पत्र ७६२) उबर ४६; विसे ६११; ६१७; ६२१)IV आदि बारह (जं ७)।
उवक्खा स्त्री [उपाख्या] उपनाम (धर्मसं उवक्कमिय वि [ ओपक्रमिक 1 उपक्रम से उवकुल पुंन [उपकुल] कुल नक्षत्र के पास
७२७)। सम्बन्ध रखनेवाला (ठा २, ४, सम १४५, का नक्षत्र (सुज्ज १०, ५) IV
उवक्खाइत्तु वि [उपख्यापयितु] प्रसिद्धि पएण ३५)। उधकोसा स्त्री
करानेवाला; 'अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवई उपकोशा] एक गरिएका, उवक्काम देखो उवक्कम = उप + क्रम् । कर्म. | कोशा वेश्या की छोटी बहिन (कुप्र ४५३)
(सूत्र २, २, २६)। उवक्कामिज्जइ (विसे २०३६)
उवक्खाइया स्त्री [उपाख्यायिका] उपकथा, उधकोसा स्त्री [उपकोशा] एक प्रसिद्ध वेश्या
उवक्काम सक [उप + क्रम् ] दीर्घकाल में अवान्तर कथा (सम ११६) IV (उव) ।
भोगने योग्य कर्मों को अल्ल समय में ही उवक्खाण न [उपाख्यान ] उपाख्यान, उवकंत वि [उपक्रान्त] १ समीप में पानीत।
भोगना। कम. उवक्कामिज्जइ (धर्मसं कथा (पउम ३३, १४६)। २ प्रारब्ध, प्रस्तावित (विसे ९८७)। ९४८)
उवक्खित्त वि [उपक्षिप्त प्रारब्ध, शुरू किया उवक्कम सक [उप + क्रम् ] १ शुरू करना,
उवक्कामण न [उपक्रमण] उपक्रम कराना हुआ (मुद्रा ९३) । प्रारम्भ करना । २ प्राप्त करना । ३ जानना। (श्रावक १९७)।V
उवक्खिव सक [उप+क्षिप्] १ स्थापन ४ समीप में लाना । ५ संस्कार करना ।
उपक्कामण देखो उवक्कमण (विसे २०५०)। करना । २ प्रयत्न करना । ३ प्रारम्भ करना। ६ अनुसरण करना; 'सीसो गुरुणो भावं
उवकेस पुं [उपक्लेश] १ बाधा। २ शोक | उवक्खिव (पि ३१९) । जमुवक्कमए' (विसे ६२९); 'ता तुब्भे ताव (राज)।
उवक्खीण वि [उपक्षीण क्षय-प्राप्त (धर्मवि प्रवक्कमह लहुँ, जाव एयासि भावमुव
उवक्खड सक [उप + स्कृ] १ पकाना, । ४२)। क्कमामि ति' (महा); 'जेणोवक्कामि
रसोई करना। १ पाक को मसाले से | उवक्खे अ पुं[उपक्षेप] १ प्रयत्न, उद्योग । ज्जइ समीवमारिणज्जए (विसे २०३६);
संस्कारित करना। उवक्खडेइ, उवक्खडिति । २ उपाय; 'ण भणामि तस्सिं साहरिणज्जे 'जगणं हलकुलियाईहिं खेत्ताई उवक्कमिजंति
(पि ५५६) । संकृ.उवक्खडेत्ता (पाचा)। किदो उवखेयो' (मा ३६) से तं खेत्तोवक्कमे' (अणु)। वकृ. उवक्कमंत प्रयो. उवक्खडावेइ, उरक्खडाविति (पि ५५६; | उवक्खेव पुं [दे. उपक्षेप] बालोत्पाटन, (विसे ३४१८)
कप्प) । संकृ. उवक्खडावेत्ता (पि ५५६)। मुण्डन (तंदु १७)। उवक्कम पुं[उपक्रम] १ प्रारम्भ, प्रारम्भ।
उवक्खड वि [उपस्कृत] १ पकाया | उवग वि [उपग] १ अनुसरण करनेवाला २ प्राप्ति का प्रयत्न; 'सोच्चा भगवाणुसासणं उपक्खडिया हुआ । २ मसाला वगैरह से | (उप २४३ औप)। २ समीप में जानेवाला सच्चे तत्थ करेज्जुवक्कम' (सूत्र १, २, संस्कार-युक्त पकाया हुआ (निचू ८ पि ३०६; (विसे २५६५)। ३, १४)। ३ कर्मों के फल का अनुभव ५५६; उत्त १२, ११)। ३ पुंन. रसोई, उवगच्छ सक [उप + गम् ] १ समीप में (सूत्र १, ३; भग १, ४)। ४ कर्मों की पाक भरिणयामहारपसारा जह अज्ज उव
आना। २ प्राप्त करना। ३ जानना। ४ परिणति का कारण-भूत जीव का प्रयत्न- क्खडो न कायव्वों (उप ३५६ टी; ठा ४,२ । स्वीकार करना । उवगच्छइ (उवः स २३७)। विशेष (ठा ४.२)। ५मरण,मौत, विनाश; पाया १, 5 प्रोघ ५४ भा)। म वि । उवगच्छति (पि ५८२)। संक. उवगच्छि'हुज्ज इमम्मि समए उवक्कमो जीवियस्स जइ rrम] पकाने पर भी जो कच्चा रह जाता | ऊण (स ४४)। मझ' (प्राउ १५; बृह ४)। ६ दूरस्थित है वह, मूंग वगैरह अन्न-विशेष; 'उवक्खडामं उवगणिय वि [उपगणित] गिना हुआ, को समीप में लाना: 'सत्थस्सोवक्कमणं णाम जहा चरणयादीणं उवक्खडियाणं जे ण | संख्यात, परिगणित (स ४६१)। उबक्कमो तेण तम्मि अ तमो वा सत्थसमी- सिझंति ते कंकडुयामं उवक्खडियाम भएणइ' उवगप्पिय वि [उपकल्पित] विरचित (स वीकरणं' (विसे, अण)। ७ प्रायुष्य-विघातक | (निचू १५)/
। ७२१)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org