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काटलिपुत्र का एक मास (सून १. एक जाति
कंस-कग्घायल पाइअसहमहण्णवो
२१३ कंस न [कांस्य] १ धातु-विशेप, कांसा । २ उद्वर्तन (पब २–गाथा ११५)। 'कुरुया स्त्री ककालुआ स्त्री [कारुका] १ कूष्माण्ड. वाद्य-विशेष । ३ परिमाण-विशेष । ४ जल
[°करुका] माया, कपट (पव २)। वल्ली, कोहड़ा का गाछ; 'ककालुमा गोछडलिपीने का पात्र, प्याला (हे १, २६; ७०)।
कक्क पुं[कर्क] १ चक्रवर्ती का एक देव-कृत । त्तवेंटा' (मृच्छ ५६)। 'ताल न [ताल] वाद्य-विशेष (जीव ३)। प्रासाद (उत्त १३, १३) । २ राशि-विशेष, कक्किड पुं[] कृकलास, गिरगिट; गुजराती पत्ती, पाई स्त्री [°पात्री] कांसा का बना कर्क राशि (धर्मवि ६६)।
___ में 'काकेडो' (दे २, ५)। हुआ पात्र-विशेष (कप्प; ठा)। पाय न ककंध पुं[कर्कन्ध] ग्रहाधिष्ठायक देव विशेष कक्कि पुं[कक्लिन्] भविष्य में होनेवाला [पात्र] कांसा का बना हुआ पात्र (दस ६)। ' (ठा २, ३)। कंसार [दे] कसार, एक प्रकार की मिठाई; ककंधु स्त्री [कर्कन्धु बैर का वृक्ष (पान)। कक्किय न [कक्लिक] मांस (सूम १, ११)। 'ता करेऊरण कंसारं तालपुडसंजुयं चेर्ग कक्कड पुं[कर्कट] कर्कराशि (विचार १०६)। ककअण पुंन [कर्केतन] रत्न की एक जाति विसमोयगं गोसे उवणेमि एयाणं' (स १८७)। कक्कड न [कर्कट] १ जलजन्तु विशेष, कुलीर (कप्पः पउम ३, ७५)। कंसारी स्त्री [दे] श्रीन्द्रिय क्षुद्र जन्तु की एक
(पान)। २ ककड़ी, फल-विशेष (पव ४)। कक्करअ पुं[कर्केरक मणि-विशेष की एक जाति (जी १८)। ३ हृदय का एक प्रकार का वायु (भग १०, जाति (मृच्छ २०२)।
कक्कोड न [कर्कोट] शाक-विशेष, ककरैल, कंसाल पु [कांस्याल] वाद्य-विशेष (हे २, कक्कडच्छ पुं [कर्कटाक्ष] ककड़ी, खीरा
___ ककोडा (राज) । देखो. कक्कोडय। ६२ सुपा ५०)।
कक्कोडई स्त्री [कर्कोटकी] ककोडे का वृक्ष कंसाला स्त्री किसताला, कांस्यताला] वाद्य कक्कडिया स्त्री किर्कटिका, टी] ककड़ी ककरैल का गाछ (पारण १-पत्र ३३)।
का एक प्रकार का निर्घोष, ताल (णंदि)। कक्कडी । (खीरा) का गाछ (उप ९६१) कक्कोडयन [कर्कोटक] देखो कक्कोड । कंसालिया स्त्री [कांस्यतालिका] एक प्रकार ककणा स्त्री [कलना] १ पाप । २ माया - २ . अनवेलन्धर-नामक एक
२ पुं. अनुवेलन्धर-नामक एक नाग-राज : का वाद्य (सुपा २४२)। (पएह १, २)।
३ उसका प्रावास पर्वत (भग ३, ६; इक)। कसिअ पुं [कास्यिक] १ कसेरा, कँसारी,
कक्कय पुंदे] गुड़ बनाते समय की इक्षु-रस कक्कोल कोल]१ वृक्ष-विशेष; शीतलकांस्य-कार (हे १, ७०)। २ वाद्य विशेष
की एक अवस्था, इक्षु रस का विकार-विशेष चीनी के वृक्ष का एक भेद (गउड स ७१)। (सुपा २४२)। (पिंड २८३)।
२ न. फल-विशेष, जो सुगंधी होता है (पएह कंसिआ स्त्री [कसिका] १ ताल (गाया १,
कक्कर पुककर १ कंकर, पत्थर (विपा १, २, ५)। देखो ककोल। १७) । २ वाद्य-विशेष (प्राचा २)।
२; गउड, सुपा ५९७; प्रासू १६८)।२ कक्कोली स्त्री कोलो] वृक्ष-विशेष (कप्र ककाणि पुंस्त्री [दे] मर्म स्थान, 'अरुस्स
वि. कठिन, परुष (प्राचू ४) । ३ ककर २४६)। विझति ककारणो से' (सूत्र १, ५, २,
आवाज वाला (उत्त ७)।
कक्ख देखो कच्छ = कक्ष (उवः कप्प; सुर १, ककरणया स्त्री [कर्करणता] १ दोषोद्भावन, ८८ पउम ४४, १: पि ३१८, ४२०)। १५)। ककुध । देखो कउह = ककुद (पि २०६;
दोषोद्भावनगभित प्रलाप (ठा ३, ३-पत्र कखग वि [कक्षाग] १ कक्षा-प्राप्त । २ पुं ककुभ । हे २, १७४)। १४७)।
कक्षा का केश (तंदु ३६)। कक्कराइय न कर्करायित] १ कर्कर की कक्खड देखो कक्कस (सम ४१; ठा १, १: ककुह देखो कउह % ककुद (ठा ५,१ पाया
तरह पाचरित । २ दोषोच्चारण, दोष-प्रकटन वज्जा ८४ उव)। १, १७ विपा १, २)। ५ हरिवंश का एक (प्राव ४)।
कक्खड वि [दे] पीन, पुष्ट (दे २, ११; कप्प; राजा (पउम २२, ६६)।
कक्कस वि [ककेश] १ कठोर, परुष (पाश्रः प्राचा; भवि)। ककुहा देखो कउहा (षड् )।
सुपा ५८; पारा ६४ पउम ३१, ६६)। कक्खडंगी स्त्री [ दे] सखी, सहेली (द २, कक्क पुं[कल] १ उद्वर्तन-द्रव्य, शरीर पर
२ प्रखर, चण्ड। ३ तीव्र, प्रगाढ (विपा १, १६)। का मैल दूर करने के लिए लगाया जाता द्रव्य
१)। ४ अनिष्ट, हानिकारक (भग ६, ३३)। कक्खल [३] देखो कक्कस (षड्)। (सूत्र १.६निचू १)। २ न. पाप (भग
५ निष्ठुर, निर्दय (उग)। ६ चबा-चबा कर कक्खा देखो कच्छा कक्षा (पान; रणाया १२, ५)। ३ माया, कपट (सम ७१)।
कहा हुआ वचन (प्राचा २, ४, १)। १, ८ सुर ११, २२१)। 'गरुग न [°गुरुक] माया, कपट (पण्ह १,
कक्कस । [दे] दध्योदन, करम्ब (दे करघाड पुं[दे] १ अपामार्ग, चिरचिरा, २-पत्र २८)। कक्कसार २.१४)।
| लटजीरा। २ किलाट, दूध की मलाई (दे कक्क पुंन [कल] १ चन्दन आदि उद्वर्तन द्रव्य ककसेण पुं[कर्कसेन] अतीत उत्सर्पिणी- २, ५४) । (दस ६, ६४)। २ प्रसूति-रोग आदि में काल में उत्पन्न एक स्वनाम ख्यात कुलकर कग्घायल पुं[दे] किलाट, दूध का विकार, किया जाता क्षार-पातन । ३ लोध्र आदि से | पुरुष (राज)।
| दूध की मलाई (दे २, २२)।
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