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कच्छुल–कट्ठा पाइअसहमहण्णवो
२१५ कच्छल पुं[कच्छुल] गुल्म-विशेष (परण उत्तिगेण पासवइ, उवरुवरि या गावा कज्ज- | कट्टोरग पुं[दे] कटोरा, प्याला, पात्र-विशेष; १-पत्र ३२)।
लावेई' (पाचा २, ३, १, १६)। वकृ. 'तो पासेहिं करोडगा कट्टोरगा मंकुप्रा कच्छुल्ल पुं [कच्छुल्ल] स्वनाम ख्यात एक कजलावेमाण (प्राचा २, ३, १, १६)।। सिप्पागो य ठविज्जति' (निचू १)। नारद मुनि (णाया १,१६)।
कजलिअ देखो कज्जलइअ (से २, ३६; कट्ठ न [कष्ट] १ दुःख; पीड़ा, व्यथा (कुमा)। कच्छू देखो कच्छु (प्रासू ७२)। गउड)।
२ पाप । ३ वि. कट-दायक, पीड़ा-कारक कच्छोटी स्त्री [दे] कछौटी, लंगोटी कन्जव [दे] १ विष्ठा, मैला । २ तृण (हे २, ३४६०)। हर न [गृह] कठ(रंभा-टि)।
| कजवय ) वगैरह का समूह, कूड़ा, कतवार घरा, काठ की बनी हुई चारदीवारी (सुर २, कज वि [कार्य] १ जो किया जाय वह । २ (दे २,११; उप १७६ ५६३%; स २६४ १८१)। करने योग्य । ३ जो किया जा सके (हे २, दे ६, ५६, अणु)।
कट्ठ न [काष्ठ] काठ, लकड़ी (कुमा; सुपा २४)। ४ न. प्रयोजन, उद्देश्यः 'न य साहेइ कन्जिय वि [कार्यिका कार्यार्थी, प्रयोजनार्थी
__३५४) । २ पुं. राजगृह नगर का निवासी सकज्ज' (प्रासू २७, कप्पू)। ५ कारण, हेतु (वव ३)।
एक स्वनाम-ख्यात श्रेष्ठीं। (प्रावम)। कम्मत (वव २)। ६ काम, काज; कजोवग पुं [कार्योपग] अठासी महाग्रहों
न [कर्मान्त] लकड़ी का कारखाना (प्राचा 'अन्नह परिचितिज्जइ, में एक ग्रह का नाम (ठा २, ३-पत्र ७८) ।
२, २)। करण न [°करण] श्यामक-नामक सहरिसकंडुज्जएण हियएण।
गृहस्थ के एक खेत का नाम (कप्प) । कार कज्माल न [दे] सेवाल, एक प्रकार की परिणमइ अन्नह च्चिय,
पुं[कार] काठ-कर्म से जीविका चलानेवाला घास, जो जलाशयों में लगती है (दे २, ८)। कज्जारंभो विहिवसेरण'
(अणु) । कोलंब पुं [कोलम्ब] वृक्ष की कटरि (अप) अ [कटरे] इन अर्थों का
शाखा के नीचे झुकता हुआ अग्र-भाग (मनु)। द्योतक अव्यय-१ आश्चर्य, विस्मय; 'कटरि जाण वि [ज्ञ] कार्य को जाननेवाला (उप
खाय पु[खाद] कीट-विशेष, घुण (ठा थणंतरु मुद्धडहे, जे मणु विच्चिन माई' (हे ९४८) सेण कुं[सेन अतीत उत्सर्पिणी
४)। दल न [दल] रहर की दाल ४, ३५०)।२ प्रशंसा, श्लाघाः ‘कटरि भालु काल में उत्पन्न स्वनाम ख्यात एक कुलकर
(राज) । पाउया स्त्री [°पादुका] काठ का सुविसालु, कटरि मुहकमल पसन्निम' (धम्म जूता, खड़ाऊँ (अनु ४)। पुत्तलिया स्त्री. पुरुष (सम १५०)।
११ टी)। कजआ (शौ) स्त्री [कन्यका] कन्या, कुमारी |
[पुत्तलिका] कठपुतली (अणु)। पेजा कटार (अप) न [दे] छुरी, क्षुरिका (हे ४, स्त्री [पेया] १ मूंग वगैरह का क्वाथ । २ (प्राकृ ५७)। कजउड पुं[दे] अनर्थ (दे २, १७)।।
घृत से तली हुई तण्डुल की राब (उवा)। कट्ट सक [कृत् ] काटना, छेदना। कट्टर कजमाण वि [क्रियमाण जो किया जाता
महु न [मधु] पुष्प-मकरन्द (कुमा)। (भवि)। संकृ. कट्टि, कट्टिवि, कट्टिअ हो वहः 'कज्जं च कज्जमाणं च प्रागमिस्स
मूल न [मूल द्विदल धान्य, जिसका दो (रंभाः भविः पिंग)।
टुकड़ा समान होता है ऐसा चना, मूंग आदि च पावगं (सूत्र १,८)।
कट्ट वि [कृत्त] काटा हुअा, छिन्न (उप अन्न (बृह १)। हार पुं [हार] त्रीन्द्रिय कजल न [कज्जल] १ काजल, मसी। २ १८०)।
जन्तु-विशेष, क्षुद्र कीट-विशेष (जीव १)। अब्जन, सुरमा ( कुमा)। पभा स्त्री
कट्ट न [कष्ट] १ दुःख । २ वि. कष्ट-कारक, हारय पुं[हारक] कठहरा, लकड़हारा [प्रभा] सुदर्शना-नामक जम्बू-वृक्ष को उत्तर कष्टदाई (पिंग)।
(सुपा ३८५) । दिशा में स्थित एक पुष्करिणी (जोव ३) ।
कट्टर पुन [दे] कढ़ी में डाला हुआ घी का कट्ठ वि [कृष्ट] विलिखित, चासा हुआ; 'खीरकजलइअ वि [कजलित] १ काजलवाला । बड़ा, खाद्य-विशेष (पिंड ६३७)।
दुमहेट्ठपंथकट्ठोल्ला इंधणे य मीसो य' (प्रोघ २ श्याम, कृष्ण (पाय)।
कट्टर न [दे] खण्ड, अंश, टुकड़ा: 'से जहा ३३६)। कजलंगी स्त्री [कजलाङ्गी] कज्जल-गृह, __ चित्तयकट्टरे इ वा वियाणपट्टे इ वा (अनु)। कट्ठण न [कर्षण ] आकर्षण, खींचाव दीप के ऊपर रखा जाता पात्र, जिसमें काजल कट्टराय न [दे] छुरी, शस्त्र-विशेष (स १४३)। (गउड)। इकट्ठा होता है, कजरौटी (अंत, णाया १, | कट्टारी स्त्री [दे] क्षुरिका, छुरी (दे २, ४)। कट्ठहार पुं [काष्ठहार] कठहरा, लकड़हारा, १-पत्र ६)।
कट्टिअ वि [कत्तित] काटा हुआ, छेदित | काष्ठवाहक (कुप्र १०४)। कजला स्त्री [कजला] इस नाम को एक (पिंग)।
कट्ठा स्त्री [काष्ठा] १ दिशा (सम ८८)।२ पुष्करिणी (इक)।
कटु वि [कर्त] कर्ता, करनेवाला (षड्)। हद, सीमाः 'कवडस्स अहो परा कट्टा' (श्रा कजलाव अक [बुड्] डूबना, बूड़नाः कट्टु प्र[कृत्वा] करके (गाया १, ५; कप्प १६) । ३ काल का एक परिमाण, अठारह 'पाउसंतो समणा ! एयं ते णावाए उदयं । भग)।
निमेष (तंदु)। ४ प्रकर्ष (सुज ६)।
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