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२१६ पाइअसहमहण्णवो
कट्ठिअ-कडप्प कट्रिअ ' [दे] चपरासी, प्रतीहार (दे २, हुई माननेवाला, जगत्कर्तृत्ववादी (सून १, कडक्खण न [कटाक्षण] कटाक्ष करना
१,१) इ पुं दि ] देखो जोगि (भगः (भवि)। कट्रिअ वि [काष्ठित] काठ से संस्कृत भीत गाया १, १-पत्र ७४)। देखो कय - कडक्खिअ वि [कटाक्षित] १ जिसपर वगैरह (माचा २, २)। कृत।
कटाक्ष किया गया हो वह (रंभा)। २ न. कट्रिण देखो कढिण (नाट-मालती ५९)। कडअल्ल पुं[दे] दौवारिक, प्रतीहार (दे २, कटाक्ष (भवि)। कट्रेअ वि [काटेय] देखो कट्रिअ-काष्ठित १५)।
कडग पुंन [कटक] १ कड़ा, वलय, हाथ का (प्राचा २, २,१, ६)। कडअल्ली स्त्री [दे] कराठ, गला (दे २, १५)। आभूषण-विशेष (गाया १,१)। २ यवनिका,
परदाः 'अन्नस्स सग्गगमणं होही कडंतरेण तं कट्ठोल देखो कट्ठ = कृट (पिंड १२)।
कडइअ पुं[दे] स्थपति, बढई (द २, २२)।
कडइअ वि [कटकित] वलय की तरह सब्वं । निसुयमुवज्झाएण' (उप १६६ टी)। कड वि [दे] १ क्षीण, दुर्बल । २ मृत, विनष्ट स्थित (से १२, ४१)।
३ पर्वत का मूल भाग। ४ पर्वत का मध्य (दे २,५१)। कडइल्ल पुं[दे] दौवारिक, प्रतीहार (दे २,
भाग । ५ पर्वत की सम भूमि । ६ पर्वत का एक कड पुं[कट] १ गएड-स्थल, गाल (गाया १, १५)।
भागः 'गिरिकंदरकडगविसमदुग्गेसु' (पञ्च ८२; १. पत्र ६५)। २ तृण, घास। ३ चटाई,
कडंगर न [कडङ्गर तुष, छिलका, भूसा (सुपा पएह १, ३ रणाया १,४.१८)। ७ शिबिर, स्तरण-विशेष (ठा ४, ४. पत्र २७१)। १२९)।
सेना रहने का स्थान (बृह २)। ८ पुं. देश४ लकड़ी, यष्टि; 'तेसि च जुद्धं लयालिट् ठुकडंत न [दे] मूली, कन्द विशेष । २ मुसल
विशेष (णाया १,१-पत्र ३३)। देखो कडपासारणदंतनिवाएहि (वसु)। ५ वंश, (दे २, ५६)।
कडय। बांस (विपा १, ६, ठा ४, ४)। ६ तृणकडंतर न [दे] पुराना सूपं आदि उपकरण
कडच्छु स्त्री [दे] कर्ची, चमची, डोई (दे २, विशेष (ठा ४, ४)। ७ छिला हुआ काष्ठ
(दे २, १६)। (पाचा २, २, १)। च्छेज्ज न [च्छेद्य]
कडण न [कदन] १ मार डालना, हिसा कला विशेष (प्रौपः जे २)। "तड न ["तट] कडंतरिअ वि [दे] दारित, विदारित, विना
करना । (कुमा)। २ नाश करना । ३ मर्दन । १ कटक का एक भाग । २ गण्ड-तल (णाया शित (दे २, २०)।
४ पाप। ५ युद्ध। ६ विह्वलता, पाकुलता १,१) । पूयणा स्त्री [ पृतना] व्यन्तरी. कडंब पुं [कडम्ब] वाद्य विशेष (विसे ७८
(हे १, २१७)। विशेष (विसे २५४६)। टी)।
कडण न [कटन] १ घर की छत । २ घर कड वि [कृत १ किया हुआ, बनाया हुआ,
कडंबा पुंस्त्री [कदम्बा] वाद्य-विशेष (राय पर छत डालना (गच्छ १)। रचित (भग; पण्ह २, ४, विपा १, १
कडण न [कटन] चटाई आदि से घर का कप्प; सुपा २६) । २ पुंन. युग-विशेष, सत्ययुग, कडंभुअ न [दे] १ कुम्भग्रीव-नामक पात्र- संस्कार, चटाई आदि से घर के पार्श्व भागों (ठा ४, ३) । ३ चार की संख्या (सूम १, विशेष । घड़े का कण्ठ-भाग (दें २, २०)। का किया जाता आच्छादन (प्राचा २, २, २)। "जुग न [ युग] सत्य-युग, उन्नति कडक देखो कडग (नाट–रत्ना ५८)। ३, १ टी; पव १३३)। का समय, आदि युग, १७२८००० वर्षों का कडकडा स्त्री [कडकडा] अनुकरण शब्द
कडणा स्त्री [कटना] घर का अवयव विशेष यह युग होता है (ठा ४, ३)। जुम्म विशेष, कड़कड़ आवाज (स २५७; पि
(भग ८,६)। पुं[युग्म] सम राशि-विशेष, चार से भाग ५५८ नाट-मालती ५६)।
कडणी स्त्री [कटनी] मेखला, 'सुरगिरिकड. देने पर जिसमें कुछ भी शेष न बचे ऐसी
रिणपरिट्रियचंदाइचारण सिरिमणुहरंति' (सुपा कडकडिअ वि [कडकडित] जिसने कड़कड़ राशि (ठा ४, ३)। जुम्मकडजुम्म पुं
६१५)। [युग्मकृतयुग्म] राशि-विशेष (भग ३४,
आवाज किया हो वह, जीर्ण (सुर ३,१६३)।
कडतला स्त्री [दे] लोहे का एक प्रकार का १)। जुम्मकलिओय [युग्मकल्योज] कडकडिर वि [कडकडायित] कड़-कड़
__ हथियार, जो एक धारवाला और वक्र होता राशि-विशेष (भग ३४, १)। जम्मतेओग आवाज करनेवाला (सण)।
है (दे २, १६)। पुं[युग्मयोज] राशि-विशेष (भग ३४, कडक्किय न [कडकित] कड़कड़ आवाज कडत्तरिअ वि[दे देखो कडंतरिअ (भवि)। १)। जुम्मदावरजुम्म पुं [जुग्मद्वापर- (सिरि ६६२) ।
कडद्दरिअ वि [दे] १ छिन्न, काटा हुआ। युग्म] राशि-विशेष (भग ३४, १)। जोगि कडक्ख पुं[कटाक्ष] कटाक्ष, तिरछी चितवन, २ न. छिद्रता (षड)। वियोगिन] १ कृत-क्रिय (निचू १)। भाव-युक्त दृष्टि, आँख का संकेत (पापः सुर कडप्प [दे. कटप्र] १ समूह, निकर, २ गोतार्थ, ज्ञानी (ोध १३४ भा)। ३ १, ४३; सुपा ६)।
कलाप दि २, १३; षड् गउड सुपा ६२; तपरवी (नित्तू १)। वाइ पुं [°वादिन] कडक्ख सक [ कटाक्षय ] कटाक्ष करना । भवि; विक्र ६५)। २ वस्त्र का एक भाग राष्ट्रि को नैसगिक न मानकर किसी की बनाई कडक्खइ (भवि) । संकृ. कडक्खेवि (भाव)। (दे २, १३)।
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