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२१८ पाइअसहमहण्णवो
कढणया-कणय (सुपा २६२) । २ वि. खींचनेवाला, प्राकर्षक | कण सक [कण] आवाज करना। करणइ कणकणकण अक [द] करण-करण अावाज (उप पृ २७७)। (हे ४, २३६)।
करना । करणकरणकरणंति (पउम २६, ५३)। कड्ढणया स्त्री [कषणता] प्राकषण (उप कण पु[कण] १ करण, लेश; 'गुणकणमवि
वकृ. कणकणकणंत (पउम ५३, ८६)। पृ २७७)
परिकहिउ न सक्कई' (साध ७६)। २ कण कणग ' [कनकनक ] ग्रह-विशेष, कड्ढाविय वि [कर्षित] खींचवाया हुआ, विकीणं दाना (कुमा)। ३ वनस्पति-विशेष, | ग्रहाधिष्ठायक देव विशेष (ठा २, ३)। बाहर निकलवाया हुअा (भवि)।
(परण १)। ४ पुं. एक म्लेच्छ देश (राज)। कणकणिअ वि [कणकणित] कण-करण कढिअ वि [दे] बाहर निकला हुआ, ५ ग्रह-विशेष, ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष अावाजवाला (कप्पू)। गुजराती में 'काढेलु'; 'तो दासीहिं सुरगउ ब्व (ठा २, ३–पत्र ७७)। ६ तण्डुल, प्रोदन कणखल न [दे] उद्यान-विशेष (सट्टि ६ टी)। कड्ढिो कुट्टिऊण बहिं (सिरि ६८६)। (उत्त १२)। ७ कनिक (प्राचा २, १)।
कणग वि [कानक] सुवर्ण-रस पाया हुआ कविय वि [कृष्ट] १ आकृष्ट, खींचा हुआ ८ बिंदु: बिंदुइग्रं करणइन' (पान)। अ
(कपड़ा) (पाचा २, ५, १, ५)। पट्ट वि (पएह १, ३)। २ पठित, उच्चारित (स वि [°वत् ] बिन्दुवाला (पान)। [कुंडग]
[पट्ट] सोने का पट्टावाला (ग्राचा २, ५, १८२)
पुं [कुण्डक] प्रोदन की बनी हुई एक कड्ढोकड्ढ न [कर्षापकर्ष ] खींचातान
भक्ष्य वस्तु; 'करणकुंडगं चइताणं विट्ठभुंजइ
कगग देखो कण (कप्प)। (उत्त १६)।
सूयरो' ( उत्त १२)। पूपलिया स्त्री [पूपलिका] भोजन-विशेष, कणिक (पाटा)
कणग [दे] देखो कणय = (दे) (पएह १, कढ सक [कथ्] १ क्वाथ करना। २
की बनाई हुई एक खाद्य वस्तु (प्राचा २,१)। उबालना। ३ तपाना, गरम करना। कढइ
कणग पू[कनक] १ ग्रह विशेष, ग्रहाधिष्ठायक
भक्ख पुं[भक्ष] वैशेषिक मत का (हे ४, २२०)। वकृ. कढमाण (पि प्रवर्तक एक ऋषि (राज)। वित्ति स्त्री
देव विशेष (ठा २, ३-पत्र ७७)। २ २२१)। कवकृ. 'राया जंपइ एयं सिंचह रे
रेखा-सहित ज्योतिः-पिण्ड, जो आकाश से [वृत्ति भिक्षा, भीख (सुपा २३४) । रे कढंततिल्लेरण' (सुपा १२०), कढीअमाण 'वियाणग पुं [वितानक] देखो कणग
गिरता है (ोघ ३१० भा; जी ६)। ३ (पि २२१)।
बिन्दु । ४ शलाका, सलाई (राज)।५ घृतवर वियाणग (सुज्ज २०; इक)। संताणय कढकढकढेंत वि [कडकडायमान] कड़-कड़
द्वीप का अधिपति देव (सुज १९)। ६ बिल्व पुं[संतानक] देखो कणग-संताणय आवाज करता (पउम २१, ५०)।
वृक्ष, बेल का पेड़ (उत्तनि. ३)। ७ न. (इक)। द पुं[द] वैशेषिक मत का कढण न [कथन] क्वाथ करना, 'रागगुणेणं
सुवर्ण, सोना (सं ६४; जी ३)। कंत वि प्रवर्तक ऋषि (विसे २१६४) । यण्ण वि पावइ खंडणकढणाई मंजिट्ठा' (कुप्र २२३)।
[कान्त] १ कनक की तरह चमकता ["कीर्ण] बिन्दुवाला) (पान)। कढिअ न [दे] कढ़ी (पिंड ६२४)।
(प्राचा २, ५, १) ।२ . देव-विशेष (दीव)। कण पुंकण] शब्द, आवाज (उप पृ१०३)। कुड न [कूट] १ पर्वत-विशेष का एक कढिअ वि [कथित] १ उबाला हुआ। २
| कणइकेउ पुं [कनकिकेतु] इस नाम का | शिखर (जं ४) । २ पुं. स्वर्ण मय शिखरवाला खूब गरम किया हुमा, 'कढिप्रो खलु निबरसो एक राजा (दंस)।
पर्वत (जीव ३)। केउ पुं [केतु] इस अइकडुप्रो एव जाएई' (श्रा २७ प्रोध १४७;
नाम का एक राजा (णाया १, १४)। सुपा ४६६)।
कणइपुर न [कनकिपुर] नगर-विशेष, जो
महाराज जनक के भाई कनक की राजधानी 'गिरि पुं[गरि] १ मेरु पर्वत। २ स्वर्णकढिआ स्त्री [दे] कढ़ी, भोजन-विशेष (दे
थी (ती)।
प्रचुर पर्वत (औप) । उभय पुं [ध्वज] २, ६७)।
कणइर पुं [कर्णिकार ] कणेर, वनस्पति- इस नाम का एक राजा (पंचा ५)। पुर न कढिण वि[कठिन] १ कठिन, कर्कश, विशेष (पएण १-पत्र ३२)।
[पुर] नगर विशेष (विपा २, ६) "पभ कढि गग। कठोर, परुष (पएह १, ३, पात्र)।
कोकणइल्ल पुं [दे] शुक, तोता, सुग्गा, सुग्रा २ न. तृण-विशेष (प्राचा २, ३, ३) । ३
पुं[प्रभ] देव-विशेष (सुज १६)। पभा (दे २,२१ षड् ; पाप्र)।
स्त्री [प्रभा] १ देवी-विशेष । २ 'ज्ञातापर्ण, पत्ता (परह २, ५)।
धर्मसूत्र' का एक अध्ययन (णाया २, १)। कढोर वि [कठोर] १ कठिन, परुष, निष्ठुर । कणई स्त्री [दे] लता, वल्ली (दे २, २५
फुल्लिअ न [पुष्पित] जिसमें सोने के फूल २ पुं. इस नाम का एक राजा (पउम ३२, षड्। स ४१६७ पाप)।
लगाए गए हों ऐसा वस्त्र (निचू ७७)। माला २३)। कणंगर न [कनगर पाषाण का एक प्रकार
स्त्री [ माला] १ एक विद्याधर की पुत्री कण सक [क्वण] शब्द करना, आवाज - का हथियार (विपा १, ६)।
(उत्त ६)। २ एक स्वनाम ख्यात साध्वी करना । कणइ (हे ४, २३६)। वकृ. कणंत कणकण पुं [कण कण कण-करण पावाज | (सुर १५, ६७) । रह पुं [रथ] इस नाम (सुर १०,२१८ वज्जा ६६)। (प्रावम)।
का एक राजा (ठा ७, १०)। °लया स्त्री
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