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कणगसत्तरि-कणूया
['लता] चमरेन्द्र के सोम नामक लोकपाल देव की एक श्रग्रमहिषी (ठा ४, १ - पत्र २०४) । वियाग [वितानक] ग्रह विशेष ग्रहाधिष्ठायक देव-विशेष (ठा २ ३; पत्र ७७) । 'संताणग पुं [°संतानक] ग्रह-विशेष ग्रहाधिहादेव-विशेष (डा २३७७)[] १ सुवर्ण का एक आभूषण, सुवर्ण की मणियों से बना प्राभूषण ( अंत २७ ) । २ तप विशेष, एक प्रकार की तपश्चर्या (श्रौप) । ३. पुं. द्वीप - विशेष ४ समुद्र- विशेष ( जीव ३) । लिपविभत्ति स्त्री [विलप्रविभक्ति ] नाथ का एक प्रकार (राय) । बलिभद [["बलिभद्र ] कनकालि द्वीप का एक भादेवी) सिदामद पुं [ लिमहाभद्र] कनकावलिवर नामक समुद्र का एक अधिक देव (जीव )।
महावर [लमहावर ] कनकावलिवर नामक समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (ज) र [विलियर] १ २ इस नाम का एक
इस नाम का एक द्वीप
समुद्र कनकावलिवर समुद्र का अधिष्ठाता देव-विशेष ( जीव ३) । वलिवरभद्द पुं [विरभद्र ] कनकावलिवर द्वीप का एक अधिपति देव ( जीव ३) । वलिवरमहाभद्द [परमहाभद्र] महाबलिवर नागक द्वीप का एक अधिष्ठाता देव ( जीव ३ ) । विभास [लिवरावभास] १ इस नाम का एक द्वीप। २ इस नाम का एक समुद्र ( जीन २) लिपरोभासभद [विरावभासभद्र ] कनकावलिवराव - भास द्वीप का एक अधिष्ठाता देव ( जीव ३) । विविरोभासमहाभद्द [विलिवरावभासमहाभद्र] कनकावलिवरावभास द्वीप का एक देव जी ३) ि वरोभासमहावर [विरावभास महावर] कनकापतिवार का एक अधिष्ठाता देव ( जीव ३ ) । विविरोभास
[विभासवर] कनकावलि - वरावभास-समुद्र का एक अधिष्ठाता देव (जीव ३) वली स्त्री [व] देखो वलि का
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पाइअसद्दमहण्णवो
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पहला और दूसरा धर्म (२७१) देखो क[ि]तिः 'कही
कणय कनक ।
कणगसत्तरि स्त्री [कनकसप्तति] एक प्राचीन | नेत्र शास्त्र ( ३६ ) । कणगा स्त्री [कनका] १ भीम-नामक राक्षसेन्द्र की एक अग्रमहिषी (ठा ४, २ - पत्र ७७) २ चमरेन्द्र के सोम नामक लोकपाल की एक अग्र-महिषी (ठा ४, २) । ३ गायाधम्मकहा' सूत्र का एक अध्ययन (गाया २, १) ४-विशेष की एक जाति चतुरिन्द्रियजीव विशेष जीव १) । कणगुत्तम पुं [ कनकोत्तम ] इस नाम का
एक देव (दीव) ।
काय पुं [दे] १ फूलों को इकट्ठा करना, अवचय । २ बारा, शरः श्रसिखेडयकरणयतोमर' (पउम ८ ८ १, १, दे २, ५६० पान ) ।
कणय पुन [ कनक ] एक देव विमान (देवेन्द्र १४४) ।
कणय देखो कणग = कनक (प्रोघ ३१० भा प्रासू १५६: हे १, २२८ उवः पात्र महा कुमा) पं. राजा जनक के एक भाई का नाम ( पउम २८, १३२ ) । ६ रावण का इस नाम का सुभट ( पउम ५६, ३२) । १० धतूरा, वृक्ष- विशेष (से ९, ४८) ११ वृक्षविशेष ( पराग १ - पत्र ३३) । १२ न. छन्द-विशेष (पिंग)। पव्यय [पत] देवी का गिरि (सुपा ४३) भय [य] सुवर्ण का बना हुआ (सुपा २० ) । भन [भ] विद्याधरों का एक नगर (इक) । ली स्त्री [ली] घर का एक भाग (गाया १, १ – पत्र १२ ) । वली स्त्री [वली ] देखो कणगावली । ३ एक राजपत्नी ( पउम ७, ४५) । कणयंदी स्त्री [दें] वृक्ष-विशेष, पाउरी, पाढल (२, ५८ ) । पणिय [कवितानक] देखो कणबाग ( २० ) । कवी स्त्री [दे] कन्या ( वजा १०८ ) । [] कणवीर पुं [करवीर ] १ वृक्ष-विशेष, कनेर ( हे १, २५३३ सुपा १५१ ) । २ न. कणेर का फूल ( परह १, ३) ।
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(पा)।
कणिआर देखो कण्णिआर (कुमाः प्रात्र; हे २, ६५ ) । कणिआरिअ वि [दे] १ कानी आँख से जो देखा गया हो वह । २ न. कानी नजर से देखना (दे २, २४) |
कणिका स्त्री [कणिका ] कनेक, रोटी के लिए पानी से भिजाया हुआ आटा (दे १, ३७) ।
कणिक वि[कणिक्क] मत्स्य-विशेष (जीव
१) ।
कणिक्का देखो कणिका (श्रा १४) । कणि वि [कनिष्ट] छोटा लघु म १५, १२ : हे २, १७२) । २ निकृष्ट, जघन्य
(मा)।
कणिय न [ कणित] ९ श्रात्तं स्वर । २ आवाज यति मात्र ४) ।
}
कणिय देखो कणिका (कप्प ) । २ कणिया करिका, चावल का टुकड़ा धापा २, १८) कुंड देख-कुंद (स ४५७) ।
कणिया स्त्री] [कविता] दीणा-विशेष (जीव ३) ।
afra [णि] श्रावाज करनेवाला (उप १०३० पान ) ।
कपिल न [ कनिल्य] नक्षत्र - विशेष का गोत्र
(इ) ।
कांता स्वी[कनिष्ठिका] छोटी अंगुली वि० [१] श्लो० १७५३) कणिस न [कणिश ] सस्य-शीर्षक वाल्यका अग्र भाग (दे २,६ ) ।
कणिस न [दे] किशारु, सस्य- शुक, सस्य का तीक्ष्ण अग्र भाग (दे २, ६० भवि ) । कणीअ किनीयस् ] छोटा ल कणीअस 'तस्य भाया करणीससो पहू नाम' वेणी १०२ कप घेत १४) । कीजिया स्त्री [कनीनिका] १ तारा । २ छोटी उंगली (राज) । कणीर देखो कर (ट) ।
कणुय न [कणुक] त्वग् वगैरह का अवयव ( श्राचा २, १, ८ ) ।
कणूया देखो कणिया = करिणका ( कस) ।
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