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कंडरीय-कंद पाइअसद्दमहण्णवो
२११ वर्षों तक जैनी दीक्षा का पालन कर अन्त में यस्स जहा, कंडुयणं दुक्खमेव मूढस्स' (स' कंति स्त्री [कान्ति] १ तेज, प्रकाश (सुर २, उसका त्याग कर दिया था (गाया १, १६ ५१५; उव २६४ टी; गउड)।
२३६) । २ शोभा, सौन्दर्य (पान)। ३ इस उव)।
। कंडुयय देखो कंडुयगः 'अकंडुयएहि (पएह नाम की रावण की एक पत्नी (पउम ७४, कंडरीय वि [कण्डरीक] १ अशोभन, प्र- २,१-पत्र १००)।
११) । ४ अहिंसा (पराह २,१)। ५ इच्छा । सुन्दर । २ अप्रधान (सूअनि १४७ १५३)। कंडुरु पुं [कण्डुरु] स्वनाम-ख्यात एक राजा, ६ चन्द्र की एक कला (राज; विक १०७)। कंडलि स्त्री [कन्दरिका] गुफा, कन्दरा जिसने रामचन्द्र के भाई भरत के साथ जैनी पुरी स्त्री [°पुरी] नगरी-विशेष (ती)। म, कंडलिआ (पि ३३३; हे २, ३८ कुमा)। | दीक्षा ली थी (पउम ८५, ५)।
ल्ल वि[मत्] कान्ति युक्त (प्रावमः गउड, कंडवा स्त्री [कण्डवा] वाद्य-विशेष (राय)। कंडू स्त्री [कण्डू] १ खुजलाहट, खुजवाना सुपा, १८८)। कंडार सक [उत् + क] खुदना, छील-छाल (णाया १,५)। २ रोग-विशेष, पामा, खाज कति स्त्री [कान्ति] १ परिवर्तन, फेरफार । कर ठीक करना । संकृ. (गाया १, १३)।
२ गमन, गति (नाट-विक्र ६०)। 'गुणं दुवे इह पावइणो जम्मि , कंडूइ स्त्री [कण्डूति] ऊपर देखो (गा ५३२, कंतु [दे] काम, कामदेव (दे २, १)। जे देहणिम्मवरणजोव्वणदारगदक्खा । सुर २, २३)।
कथक ] पुं[कन्धक अश्व की एक जाति एके घडेइ पढमं कुमरीणमंगं,
कंडूइअ न [कण्डूयित] खुजवाना (सूअ १, कंथग (ठा ४, ३: उत्त २३); 'जहा से कंडारिऊण पनडेइ पुणो दुईओ (कप्पू)।
३, ३; गा १८१)।
कथय । कंबोयाणं प्राइले कथए सिया' कंडावेल्ली स्त्री [काण्डवल्ली] वनस्पति-विशेष
कंडूय देखो कंडुअ = कण्डूय । कडूयइ (महा)।
। (उत्त ११)। (पएण १)। वकृ. कंडूयमाण (महा)।
कंथा स्त्री [कथा] कथड़ी, गुदड़ी, पुराने वस्त्र कंडिअ वि [कण्डित] साफ-सुथरा किया हुआ
से बना हुआ पोढ़ना (हे १, १८७)। कंडूयग वि [कण्डूयक खुजवानेवाला (ठा (दे १, ११५)।
कथार पुं[कन्थार] वृक्ष विशेष (उप २२० कंडियायण न [कण्डिकायन] वैशाली कंडूयण देखो कंडुयण (उप २५६; सुपा |
टी)। (बिहार) का एक चैत्य (भग १५)। १७६; २२७)।
कथारिया। स्त्री [कन्थारिका, री] वृक्षकंडिल्ल पु[काण्डिल्य] १ कारिडल्य-गोत्र
कंथारी । विशेष (उप १०३१ टी)। वण | कंडूयय देखो कंडूयग (महा)। का प्रवर्तक ऋषि-विशेष । २ पुंस्त्री. काएिडल्य
न [वन] उज्जैन के समीप का एक जंगल. | कंडूर पुं[दे] बक, बगुला (दे २, ६)। गोत्र उत्पन्न । ३ न. गोत्र-विशेष, जो माण्डव्य | कंडूल वि [कण्डूल] खाजवाला, कराड-युक्त ।
जहां अवन्तीसुकुमार-नामक जैन मुनि ने अनगोत्र की एक शाखा है (ठा ७-पत्र ३६०)। (कुमा)।
शन व्रत किया था (आक)। यण यन] स्वनाम ख्यात ऋषि- कंत सका कृत1 १ काटना, छेदना। २ कथर पु
| कंत सक [कृत् ] १ काटना, छेदना। २ कंधेर पुं[कन्थेर] वृक्ष-विशेष (राज)। विशेष (चंद १०)।
कातना, चरखे से सूता बनानाः 'सल्लं कंतंति कन्थेरी स्त्री [कन्थेरी] कण्टकमय वृक्ष-विशेष कंडु देखो कंडू (राज)।
अप्पणों' (सूत्र १,८,१०)। कंतामि (पिंडभा (उर ३, २)। कंडु देखो कंदु (सूत्र १, ५)।
३५)।
- कंद प्रक [कन्द्] कांदना, रोना। कंदइ (पि कंडुअ सक [कण्डूय् ] खुजवाना। कंडुप्रइ
कंत वि [कान्त] १ मनोहर, सुन्दर (कुमा)। २३१)। भूका. कैदिसु (पि ५१६)। वकृ. (हे १, १२१, उव), कंडुपए (पि ४६२) ।
२ अभिलषित, वाञ्छित (गाया १, १)। ३ कंदंत (गा ५८४), कन्दमाण (णाया वकृ. कंडुअंत (गा ४६०); कंडुअमाण
पुं. पति, स्वामी (पान)। ४ देव विशेष (सुज १,१)। (प्रासू २८)।
१६)। ५ न. कान्ति, प्रभा (पाचा २,५,१)। कंद वि [दे] १८, मजबूत। २ मल, कंडुअ पुं[कान्दविक] हलवाई, मिठाई बेचने- कंत वि [क्रान्त] गत, गुजरा हुआ (प्राप)।।'
कंत विक्रान्तीत जरा सा प्राप) उन्मत्त । ३ न. स्तरण, माच्छादन, (दे २, वाला; 'राया चिसेइ को कंडुयस्स जल- कंता स्त्री [कान्ता] १ स्त्री, नारी (सुर ३,
५१)। कंतरयणसंपत्ती ? (प्रावम)।
कंद पुं[कन्द, क्रन्दित] व्यन्तर देवों की एक १४; सुपा ५७३) । २ रावण की एक पत्नी कंडुअ) पुं[कन्दुक] गेंद (दें ३, ५६; का नाम (पउम ७४, ११)। ३ एक योग
जाति (ठा २, ३----पत्र ८५) । कंडग । राज)।
दृष्टि (राज)।
। कंद पुं[कन्द] १ गूदेदार और बिना रेशे की कंडुज्जुय वि [काण्डर्जु] बाण की तरह कतार न [कान्तार] १ अरण्य, जंगल जड़ जमीकन्द, सूरन, शकरकन्द, बिलारीकन्द, सीधा (स ३१७ गा ३५२)।
(पाम)। २ दुष्ट, दूषित। ३ निराश्रय। ४ प्रोल, गाजर, लहसुन वगैरह (जी)। २ कंडुयग वि [कण्डूयक] खुजानेवाला (प्रौप)। पागल (कप्पू)।।
मूल, जड़ (गउड) । ३ छन्द-विशेष (पिंग)। कंडुयण न [कण्डूयन] १ खुजली, खाज, कतार पुन [कान्तार] जल-फलादि-रहित कंद पुं[स्कन्द] कात्तिकेय, षडानन (कुमाः पामा, रोग-विशेष । २ खुजवानाः 'पामागहि- अरण्य, 'कंतारों' (सम्मत्त १६६)।
हे २,५; षड् )।
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