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कंकडुअ-कंचुइजत पाइअसहमहण्णवो
२०४ कंकडुअ) पुं [काङ्कटु क] दुर्भेद्य माष, कंख सक [काङ्क्ष ] चाहना, वांछना । कंखइ नाम (राज)। °सेल पुं [शैल] मेरुकंकडुग । उरद की एक जाति, जो कभी (हे ४, १९२ षड्)।
पर्वत (कप्पू)। पकता ही नहीं; 'कंकडुप्रो विव मासो, सिद्धि | कखण न [काङ्क्षण] नीचे देखो (धर्म २)। कंचणग पुं [काश्चनक] १ पर्वत-विशेष न उवेइ जस्स ववहारों (वव ३)। कंखा स्त्री [काङ्क्षा] १ चाह, अभिलाष (सूप (सम ७२) । २ काञ्चनक पर्वत का निवासी कंकण न [कङ्कण] हाथ का आभरण-विशेष, | . १, १५) । २ आसक्ति, गृद्धि (भग)।३ देव (जीव ३)। कॅगन (श्रा २८ गा ६६)।
अन्य धर्म की चाह अथवा उसमें प्रासक्ति कंचणा स्त्री [कञ्चना] स्वनाम ख्यात एक कंकण पुंदे] चतुरिन्द्रिय जन्तु की एक रूप सम्यक्त्व का एक अतिचार (पडि)। स्त्री (परह १, ४) । जाति (उत्त ३६, १४७)।
मोहणिज्ज न ['मोहनीय] कर्म-विशेष कंचणार पुं [कञ्चनार] वृक्ष-विशेष (पउम कंकणी स्त्री [कङ्कण] हाथ का आभरण- (भग)।
५३, ७६; कुमा)। विशेष: 'सयमेव मंकणीए धरणीए तं कंकणी कैखि वि [काङ्क्षिन् ] चाहनेवाला (प्राचा; कंवणिया स्त्री काञ्चनिका] रुद्राक्ष माला बद्धा' (कुप्र १८५)। गउड सुर १३, २४३)।
(प्रौप)। कंकति कति] ग्राम- विशेष (राज)। कंखिअ वि [काक्षित] १ अभिलषित । २ कंचा (पै) देखो कण्णा (प्राप्र)। कंकतिन्ज पुंस्त्री [काङ्कतीय] माधराज वंश में | कांक्षा युक्त, चाह्वाला (उवाः भग)। कंचि । स्त्री काश्चि, ची] १ स्वनाम-ख्यात उत्पन्न (राज)। ..
कंखिर वि [काशित] चाहनेवाला, अभि- कंची। एक देश (कुमा)। २ कटी-मेखला, ककय पुं[कङ्कत] १ नागबला-नामक ओषधि । | लाषी (गा ५५; सुपा ५३७) ।
कमर का आभूषण (पान)। ३ स्वनाम-ख्यात २ सर्प की एक जाति । ३ पुंस्त्री. कंघा, केश
कंगणी स्त्री [दे] वल्ली-विशेष, कांगनी एक नगर (सुपा ४०६) । सँवारने का उपकरण (सूत्र १,४)। (पएण १)।
कंची स्त्री दे] मुशल के मुंह में रक्खी जाती कंकलास विकलास] कर्कोट, सांप की कंगु स्त्रीन [कङ्ग १ धान्य-विशेष, काँगन या लोहे की एक वलयाकार चीज, सामी या साम एक जाति (पान)।
काँगो (ग ७; दे ७,१)। २ वल्ली-विशेष (दे २,१)। कंकसी स्त्री [दे] कंघी, केश संवारने का
(पराग १)।
कंचीरय न [दे] पुष्प-विशेष (वजा १०८)। उपकरण (ती १५)।
कंगुलिया स्त्री [दे. कालिका] जिन-मन्दिर कंचीरय न [काञ्चीरत] सुरत-विशेष (वजा कंकाल न [कङ्काल] चमड़ी और मांस रहित
की एक बड़ी आशातना, जिन-मन्दिर में या १०८)। अस्थि-पञ्जर, 'कंकालवेसाए' (श्रा १६); उसके नजदीक लघु या वृद्ध नीति का करना कंचु पुं[कश्चक] १ स्त्री का स्तनाच्छा
कंचुअदक वस्त्र, चोली (पउम ६, ११; 'मह नरकरंककंकालसंकुले भीसरगमसाणे' (धर्म २)।
पात्र)। २ सर्प-त्वक , सांप को केंचली, केचुली कंचण पुन [काश्चन] १ एक देव-विमान (वजा २०० दे २, ५३ )। कंकास पुंकिङ्कावंश] वनस्पति-विशेष;
(देवेन्द्र १३१) । २ वि. सोने का, सुवर्ण का; (विसे २५१७)। ३ वर्म, कवच (भग ६,३३)।
'कंचणं खंड' (वजा १५८)। पह न [प्रभ] ४ वृक्ष-विशेष (हे १, २५; ३०)। ५ वस्त्र, (परण ३३)।
१ रत्न-विशेष । २ वि. रत्न-विशेष का बना कपड़ा: 'तो उज्झिऊरण लज्जा (लज्ज), पोईंधइ ककिल्लि देखो कंकेल्लि (सुपा ५५६: कुमा)।
हुप्रा (देवेन्द्र २६६) । पायव पुं[पादप] | कंचुयं सरीरानो' (पउम ३४, १५) । कंकुण देखो कंकण = दे (सुख ३६, १४७) ।
वृक्ष-विशेष (स ६७३)।
कंचुइ पुं [कञ्चुकिन्] १ अन्तःपुर का प्रतीकंकेलि ( [कङ्केलि] अशोक वृक्ष (मै ६०
कंचण पुं[काञ्चन] १ वृक्ष-विशेष । २ स्व- हार, चपरासी (णाया १, १; पउम ८, ३६ विक्र २८)।
नाम-ख्यात एक श्रेष्ठी (उप ७२८ टी)। ३ सुर २, १०६)। २ साँप (विसे २५१७)। कंकेल्लि पुं[दे. कङ्केल्]ि अशोक वृक्ष (दे २, न. सुवर्ण, सोना (कप्प)। 'उर न [पुर] ३ यव, जव । ४ चरणक, चना । ५ जुमार,
१२ गा ४०४ सुपा १४०० ५६२; कुमा)। कलिग देश का एक मुख्य नगर (प्राक)। अगहन में होनेवाला एक प्रकार का अन्न, कंकोड न [दे. कर्कोट १ वनस्पति-विशेष, | कूड न [°कूट] १ सौमनस-नामक वक्षस्कार जोन्हरी । ६ वि. जिसने कवच धारण किया ककरैल, एक प्रकार की सब्जी, जो वर्षा में
पर्वत का एक शिखर (ठा ७)। २ देव- हो वह (हे ४, २६३)। ही होती है (द २, ७; पात्र)। २ पुं. एक विमान-विशेष (सम १२)। ३ रुचक पर्वत कंचुइअ वि [कञ्चकित] कबुकवाला (कुमाः नागराज । ३ सांप की एक जाति (हे १, का एक शिखर (ठा ८)। केअई स्त्री विपा १, २)। २६; षड्)।
[केतकी] लता-विशेष (कुमा)। "तिलय कंचुइज पुं [कञ्चुकीय अन्तःपुर का प्रतीकंकोल पुं[कङ्कोल] १ कङ्कोल, शीतल-चीनी न [तिलक] इस नाम का विद्याधरों का हार (भग ११, ११)। के वृक्ष का एक भेद । २ न. उस वृक्ष का एक नगर (इक)। "त्थल न [स्थल] स्व- कंचुइज्जत वि [कञ्चकायमान] कनुक की फल: 'सकप्पुरेलाकंकोलं तंबोल (उप १०३१ नाम ख्यात एक नगर (दंस)। वलाणग न तरह प्राचरण करता: 'रोमंचकंचुइज्जतटी)। देखो कक्कोल।
[बलानक] चौरासी तीर्थों में एक तीर्थ का सव्वगत्तो' (सुपा १८१)।
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