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पाइअसहमहण्णवो
ओच्छिअ-ओत्थरण
'प्रोच्छाहियो परेण व लद्धि
ओझरी स्त्री [दे] प्रोझ, प्रांत का प्रावरण ओणामिय । वि [अवनमित] अवनत किया पसंसाहि वा समुत्तइओ। (दे १, १५७)।
ओणाविय हुमा (से ५, ३६; ६, ४ गा
१०३; भवि)। अवमारिणो परेण य जो ओझा सक [अप + ध्या] खराब चिन्तन
ओणिअत्त प्रक [अपनि + वृत् ] पीछे एसइ माणपिंडो सो॥ करना । कवकृ. ओभंत (भवि)
हटना, वापिस पाना। वकृ. ओणिअत्तंत (पिंड ४६५)। | ओज्मा देखो अउज्मा (उप पृ ३७४) ।
(से २,७)। ओच्छिअ न [दे] केश-विवरण (दे १, ओज्झाय देखो उवज्झाय (कुमाः प्रारू)। ओणिअत्त वि [अपनिवृत्त] पीछे हटा हुआ, १५०)।
ओज्झाय वि [दे] दूसरे को प्रेरणा कर वापिस आया हुमा (से ५, ५८) ओच्छिण्ण वि [अवच्छिन्न] आच्छादितः | हाथ से लिया हुआ (दे १, १५६)
ओणिमिल्ल वि [अवनिमीलित] मुद्रित, दा 'पत्तेहि य पुप्फेहि य प्रोच्छिएणपलिच्छिएणा'
ओझावग देखो उवज्झाय (उप ३५७ टी) हुआ (से ६, ८७; १३, ८२)। (जीव ३)।
ओ? पुं [ओष्ट] प्रोठ, अधर (पउम १, ओणियट्ट देखो ओनियट्ट (पि ३३३)। ओच्छंद सक [आ + क्रम्] १ आक्रमण | २४ स्वप्न १०४: कुमा)।
ओणियव्व पुं [दे] वल्मीक, चीटियों का करना । २ गमन करना। अोच्छंदंति (से ओद्विय वि [औष्ट्रिक] उष्ट्र-सम्बन्धी, उष्ट्र |
खुदा हुप्रा मिट्टी का ढेर (दे १, १५१)। १३, १६)। कर्म. ओच्छुदइ (से १०,
ओणीवी स्त्री [दे] नीवी, कटि-सूत्र (दे १, के बालों से बना हुआ (कस स ५८६)
१५०) ओच्छुण्ण वि [आक्रान्त] १ दबाया हुआ । ओडड्ढ वि [दे] अनुरक्त, रागी (दे १,
ओणुगअ वि [दे] अभिभूत, पराभूत (दे १, २ उल्लंधित; 'मोच्छुएणदुग्गमपहा' (से १३,
१५६)। ६३, १५, १३)। ओड्ड पुं[ओडू] १ उत्कल देश । २ वि.
ओण्णिद्द न [औन्निद्रय निद्रा का प्रभाव ओच्छोअअ न [दे] घर की छत के प्रान्त उत्कल दश का निवासी, उड्या (पिग)। 'पोरिणदं दोब्बल्लं' (काप्र ८५; दे १, भाग से गिरता पानी;
ओड्डिअ वि[ओडीय] उत्कल-देशीय (पिंग) ११७) 'रक्खेइ पुत्तनं मत्थएण
ओढण न [दे] प्रोढ़न, उत्तरीय, चादर ओण्णिय वि[और्णिक ऊन का बना हुआ, ओच्छोअनं पडिच्छंती। (दे १, १५५) ।
ऊर्ण-निर्मित (कस)। अंसूहि पहिअधरिणी पोलि
ओड्ढिगा स्त्री [दे] ओढ़नी (स २११)। ओणेज वि [उपनेय सांचे में ढाल कर जंतं ण लक्खेई' (गा ६२१)। ओढण न [दे] अवगुण्ठन (प्राकृ ३८)। बना हुआ फूल आदि, सांचे से बनता मोम का ओजिम्ह अक [ध्रा] तृप्त होना। प्रोजिम्इइ ओण देखो ऊण = ऊन (रंभा)।
पुतला; 'पाउट्टिमउक्किन्नं प्रोगणे (? णे) (प्राकृ ६५)।
ओणंद सक [अव+ नन्दु] अभिनन्दन ज्जं पीलिमं च रंगं च' (दसनि २, १७)। ओजर वि [दे] भीरु, डरपोक (षड्)
करना। कवकृ. ओणंदिजमाण (कप्प) ओत्तलहअ ' [दे] विटप (दे १, ११६)। ओजल देखो उज्जल (दे)।
ओणम अक [अव + नम् ] नीचे नमना। ओत्ताण देखो उत्ताण (विक्र २८)। ओजल्ल वि [दे] बलवान्, प्रबल ( १,
वकृ. ओणमंत (से १, ४५) । संकृ. ओण- ओत्थ सक [स्थग ] ढकना। प्रोत्थइ (प्राकृ १५४)।
मिअ, ओणमिऊण (प्राचा २: निचू १) ६५)। ओज्जाअ [दे] गजित, गरिव (दे १, ओणय वि [अवनत १ नमा हुआ (सुर २, ओत्थअ वि [अवस्तृत] १ फैला हुमा, प्रसृत १५४) ।
४६) । २ न. नमस्कार, प्रणाम (सम २१) (से २, ३)। २ आच्छादित, पिहितः 'समंओझ वि [दे] मैला, अस्वच्छ, चोखा नहीं
ओणल्ल अक [अव + लम्ब] लटकना, तो अत्थयं गयणं' (प्रावमः दे १, १५१ वह (दे १, १४८)। 'केसकलावु खंघे ओणल्लई' (भवि)।
स ७७, ३७६)। ओभंत देखो ओझा = अप + ध्या।
ओणविय घि [अवनमित] नमाया हुआ, ओत्थअ वि [दे] अवसन्न, खिन्न (दे १, अवनत किया हुआ (गा ६३५) ।
१५१)। ओज्भमण न [दे] पलायन, भाग जाना (दे |
| ओणाम सक [अव + नमय ] नीचे नमाना, ओत्थइअ देखो ओच्छइय (गा ५६६ से १, १०३)।
अवनत करना। ओणामेहि (मृच्छ ११०)।। ८, ६२; स ५७६) ।। ओझर पुं [निर्भर ] झरना, पर्वत से संकृ. ओणामित्ता (निचू)।।
ओत्थर देखो ओच्छर। प्रोत्थरइ (पि ५०५; निकलता जल-प्रवाह (गा ६४०) हे १, ६८
ओणामणी स्त्री [अवनामनी] एक विद्या, नाट)। कुमाः महा)।
जिसके प्रभाव से वृक्ष वगैरह स्वयं फलादि ओत्थर ' [दे] उत्साह (दे १, १५०)।। ओझरिअ [दे] देखो उज्झरिअ (दे १, देने के लिए अवनत होते हैं (उप पृ १५५; ओत्थरण न [अवस्तरण] बिछौना (पउम
निचू १)।
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