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ओगाह--ओच्छाहिय पाइअसद्दमहण्णवो
१६७ ओगाह सक [अब +गाह ] अवगाहन ओग्गहिय वि अवगृहीत १ अवग्रह-ज्ञान बड़ी कोठी-मिट्टी का पात्र-विशेष (प्ररण करना । श्रोमाहइ (षड्)। वकृ. ओगा- से जाना हुआ, अवग्रह का विषय । २ अनुज्ञा १५१)। हंत (प्राव २)। संकृ. ओगाहइत्ता, से गृहीत । ३ बद्ध, बँधा हुआ (उवा)। ४ ओचिदी (शौ) स्त्री [औचिती] उचितता, ओगाहित्ता (दस ५: भग ५, ४)। देने के लिए उठाया हुआ (प्रौप)।
औचित्य (रंभा)। ओगाहण न [अवगाहन] अवगाहन (भग) ओग्गहिय वि [ अवग्रहिक 1 अनुज्ञा से ओचुंब सक [अव + चुम्ब् ] नुम्बन ओगाहणा स्त्री [अवगाहना] १ आधार-भूत गृहीत, अवग्रहवाला (औप)।
करना । संकृ. ओचुंबिऊण (भवि) । अाकाश-क्षेत्र (ठा १)। २ शरीर (भग ६, ओग्गारण न [उद्गारण] उद्गार (चारु ७) ।
ओचुल्ल न [दे] नुल्हा का एक भाग (दे १, ८)। ३ शरीर परिमाण (ठा ४, १)। ४
१५३)। अवस्थान, अवस्थिति (विसे) । "णाम न ओग्गाल पुं [दे] छोटा प्रवाह ( दे १,
ओचूल । देखो ओऊल (विपा १, २, मुर । १५१)। [°नामन् ] कर्म-विशेष (भग ६, ८)।
ओचूलग ३,७०)। २ मुख से हटा हुमा ओग्गाल सक [रोमन्थाय] पगुराना, "णाम [नाम अवगाहनात्मक परिणाम |
शिथिल–ढीला (वस्त्र); 'पोचूलगनियाथा' | चबाई हुई वस्तु का पुनः चबाना । प्रोग्गालाइ (भग ६, ८) ओगाहिम वि [अवगाहिम ] पक्वान्न
ओञ्चय देखो अवचय (महा)। ओग्गालिर विरोमन्थायित] पगुरानेवाला, ओञ्चिया स्त्री [अवचायिका] तोड़ कर (पंचा ५)
चबाई हुई वस्तु का पुनः चबानेवाला ओगिझ सक[अव + ग्रह.] १ आश्रय
(फलों को) इकट्ठा करनेवाली (गा ७६७) । ओगिह लेना। २ अनुज्ञा-पूर्वक ग्रहण
ओञ्चल्लर न दे] ऊपर-भूमि । २ जघन के करना । ३ जानना । ४ उद्देश करना ।
ओग्गाह देखो उग्गाह % उद् + ग्राहय् । रोम (दे १,१३६) IV ५ लक्ष्य कर कहना। भोगिरहइ (भग; प्रोग्गाहइ (प्राकृ ७२) ।
ओच्छ । वि[अवस्तृत] १ आच्छादित। कप्प) । संकृ. ओगिजिमय, ओगिण्हइत्ता,
ओग्गिअ वि [दे] अभिभूत, पराभूत (दे १, ओच्छइय) २निरुद्ध, रोका हुआ (पएह १, ओगिमिहत्ता, ओगिणिहत्ताणं (प्राचा १५८)।
४; गउडः स १९४)IV रणाया १, १; कसः उवा)। कृ. ओघेत्तव्य
ओग्गीअ [दे] हिम, बर्फ (दे १, १४६) ओच्छंदिअ वि [दे] १ अपहृत । २ व्यथित, (कप्प पि ५७०)।
ओग्य देखो उग्घड । प्रोग्घइ (प्राकृ ७१)। पीड़ित (षड्) । ओगिण्हण न [अवग्रहण] सामान्य ज्ञान-
ओग्घसिय वि [अवधर्षित] प्रमाजित, ओच्छण्ण वि[अवच्छन्न] आच्छादित,
आग्धासय वि L अवघापत प्रमाजित, ओच्छ विशेष, अवग्रह (दि)।
साफ-सुथरा किया हुमा (राय) IV ढका हुआः 'पिच्चोउगो असोगो ओच्छरगो ओगिण्हणया स्त्री [अवग्रह्णता] १ उपर | ओघ ओध] १ समुह, संघात (णाया १, सालरुक्खेरणं' (सम १५२) । देखो ओच्छन्न। देखो (शंदि)। २ मनो-विषयीकरण, मन से ५) । २ संसार, 'एते प्रोघं तरिस्संति समुदं ओच्छत्त न [दे] दन्त-धावन, दतवन (दे जानना (ठा ८)V
ववहारिणो' (सूत्र १, ३)। ३ अविच्छेद १, १५२) IV ओगिन्ह देखो ओगिण्ह । संकृ. ओगि- अविच्छिन्नता (पएह १, ४)। ४ सामान्य, ओच्छन्न देखो ओच्छण्ण (स ११२, प्रौप) । न्हित्ता (निर १, १)।
साधारण। सण्णा स्त्री [संज्ञा] सामान्य २ अवष्टब्ध, आक्रान्त (प्राचा)। ओगुंडिय वि [अवगुण्डित] लिप्त (बृह १) ज्ञान (परण ७)। देस पुं [देश ओच्छर (शी) सक [अव + स्तु] १ विछाना, ओगुठ्ठि स्त्री [अपकृष्टि] अपकर्ष, हलकाई, सामान्य विवक्षा (भग २५, ३)। देखो फैलाना। २ आच्छादित करना, ढोकना। तुच्छता (पउम ५६, १५) ।
ओह = अोध ।।
प्रोच्छरीअदि (नाट---उत्तम १०५) । ओगृहिय वि [अवगृहित] प्रालिंगित ओघट्टिद (शौ) वि [अवघट्टित] पाहत ओच्छविय। वि अवच्छादित] आच्छा(णाया १, ६) । (प्रयौ २७) ।
ओच्छाइय | दित, ढका हुआ; 'गुच्छलयारुओग्गर पुं [ओगर] धान्य विशेष, ब्रोहि- ओघसर पुं[दे] १ घर का जल-प्रवाह । क्खगुम्मवस्लिगुच्छरोच्छाइयं सुरम्मं वेभारविशेष (पिंग)
२. अनर्थ, खराबी, नुकसान (दे १, १७०; गिरिकडगपायमूल' (णाया १, १-पत्र २५ ओग्गह देखो उग्गह (सम्म ७५; उवः कसः सुर २, ६६)
२८ टी महाः स १५०)। स ३५, ५६८)। ओघसिय देखो ओग्यसिय ।
अच्छाइवि नीचे देखो। ओग्गह सक [प्रति + इप्] ग्रहण करना । | ओघाययण न [ओघायतन] १ परम्परा से ओच्छाय सक [अब + छादय] आच्छादन प्रोग्गहइ (प्राकृ ७३) ।
पूजा जाना स्थान । २ तलाव में पानी जाने | करना। संकृ. ओच्छाइवि (भवि) । ओग्गहण देखो ओगिण्हण। पट्टग पुन | का साधारण रास्ता (पाचा २, १०, २) ओच्छायण वि [अवच्छादन] ढांकना, [पट्टक] जैन साध्वियों के पहनने का एक ओघेत्तव्व देखो ओगिण्ह ।
पिधान (स ५५७) । गुह्याच्छादक वन, जांघिया, लंगोट (कस)| ओचार पुं[दे. अपचार] धान्य रखने की ओच्छाहिय देखो उच्छाहियः
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