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पिमा सिए महात्रा पत्यमिन विविधुसागरगिरिमेरा समचितमणिखुडारि अ प्रोग्रवेहि' (जं ३) । संकृ. ओअवेता (३) । ओअवण न [साधन ] विजय वश करना, स्वायत्त करना (जं ३ – पत्र २४८ ) | ओआज [] १ ग्रामाधीरा गांव का स्वामी । २ श्राज्ञा, श्रदेश । ३ हस्ती वगैरह
छीना
को पकड़ने का गर्त । ४ वि. अपहृत, हुधा (दे १, १६६ ) |v ओआअव पुं [दे] प्रस्त-समय (दे १, १६२ ) । ओआर सक [ अप + वारय् ] ढांकना, 'कहूं सुज्जं हत्थे श्रश्रारेसि' (मै ४६ ) । V ओआर [अपकार] अनिष्ट, हानि, क्षति (कुमा)
arrer [a] व्यक्त यात्राज करना । गर ( प्राकृ ७३) ।
ओआर [अवतार ] १ तार (ठा १ गउड) । २ अवतार, देहान्तर-धारण (षड् ) । ३ उत्पत्ति, जन्म; 'प्रच्चंत मरणोयारो जत्थ ओघ देखो उंच । श्रइ (हे ४, १२ टि) जरारोगवाह' ( १३१) ४ प्रवेश ऑडल न [दे] केश-गुम्फ-रचना
(विसे १०४०)
ओआर देखो उवयार (षड् ) ओआरण न [अवतारण] उतारना, श्रवतारित
पाइअसद्दमणव
ओगवि [अवतीर्ण] उत्तरापथ गा ६३ ) |
ओइत । न [दे] परिधान, वस्त्र (दे १, ओस १५५ }
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ओइल वि [दे] प्रारूढ (दे १, १५८) ओठणन [अवगुण्ठन] स्त्री के मुंह पर का वस्त्र, घूँघट ( अभि १६८ ) ।
ओउल्लिय वि [दे] पुरस्कृत, आगे किया हुआ
(पडू ) 1
ओल [अ] - ञ्चल, प्रालम्ब (पाय ); 'मरगयलंबतमोत्तिश्रोऊल' (पउम ८ २८३) । देखो ओचूल IV
।
करना (दे ४, ४० ) । ओआरिज दि [अवतारित] उतारा हुआ ( से ११, ९३; उप ५६७ टी) 1 ओआल पुं [दे] छोटा प्रवाह (दे १, १५१) ओली [] १ खड्ग का दोष २ पंकि, श्रेणी (दे १, १६४) ओवल [३] बालातप सुबह का सूर्यताप (दे १, १६१) ।
ओशास देखो अवगास (हे १, १०२ २०); 'अम्हारिसारण सुंदर ! श्रोप्रासो कत्थ पावारणं' ( काप्र ९०३ ओआस देखो उववास (हे १, १७३३ प्रारू) । ओहि वि [ अवगाहित] जिसका अवगाहन किया गया हो वह (से १, ४, ८, १०० ) ।
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ओइंध सक [ आ + मुच् ] १ छोड़ देना, त्यागना, फेंक देना। २ उतार कर रख देगा "तो उज्भिकरण लजं श्रोई कंचुयं सरीराम्रो' ( पउम ३४, १६ ) ; तहेव य झडत्ति परिवाडीए प्रोधइति' ( श्राक ३८)
[ओम् ] प्रणव मुख्य मन्त्राक्षर (पडि) । ओंकार पुं [ओङ्कार ] 'श्रीं' अक्षर (उत्त २५ ३१) ।
चल (दे १, १५०) 1 ओंदर देखो उंदर (षड् ) IV ओंवाल सक [ छादय् ] ढकना, श्राच्छादित
करना । बालइ (हे ४, २१) चाल स [[]]बाना २ व्याप्त करना । बालइ (हे ४, ४१) औबालिअ वि [छादित ] ढका हुआ (कुमा) I जवाडि [प्लावित] वाया हुआ।
२ व्याप्त (कुमा) | ओकंवण देखो उयण (घाचा २, २, ३, १ टी ) ।
कुमाओ[कृष्ट] खींचा हुआ। २ ओडिया देश ओकडूढ वि [अपकृष्ट] १ खींचा हुआ । २ ग. पण, सचान (उत्त १२) | ओकड्डग देखो उक्कड्ढग (पएह १, ३) । ओकरग पुं [अवकरक] विष्ठा (मन ३० ) । ओक्कस सक [ अब + कृष् ] १ निमग्न होना, गड़ जाना । २ खींचना। ३ वह जाना । वकृ. ओकसमाण ( कस)
ओक्त वि [अन्य] निराकृत, पराजितः परवा अणोक्ता महाएि अगार्द्धसिजमारणा विहरंति' (श्रौप) IV ओकरुंदी देखो उ ११७४)
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ओअवण-ओगाह
ओणी श्री [दे] १. १५९) ओक्किअ न [दे] १ वास, वसन, श्रवस्थान । २ वमन, उल्टी (३१, १५१) ओक्खंच सक [ आ + कृप् ] खींचना । कर्म 'जह वह बोर तह वह गं परिरहमाणेण । भयवं ! तुरंगमेरगं, इहारिणयो श्रसमे तुम्ह' (सुर ११, ५१ ) - ओक्खंड सक [ अब + खण्ड ] तोड़ना, भांगना । कृ. ओक्खंडे अव्य ( से १०,२३ ) | ओक्खंडिअ वि [दे] आक्रान्त (दे १, ११२ ) । ओक्खं देखो अवबंद (सुर १०, २१०
पउम ३७, २६
ओक्खल देखो उऊखल (कुमाः प्रा ) 1 ओक्खली [द] देखो उक्खली (दे १,१७४) । ओक्खमाण (शी) वि [ भविष्यत् ] भविष्य में होनेवाला, भावी (प्राकृ ९६ ) | ओक्खिण्णव [दे] १ श्रवकीर्णं । २ सप्ति, पूति] ( १, १२०) १ छन्न, ढका हुआ । ३ पार्श्व में शिक्षित (दे १,१३०) 1 ओखित वि[अपचित] फेंका हुआ (स) 1 ओखंच देखो ओक्खंच
ओगम देखो अवगम क्र. ओगमिव्य (शी) मा ४८) | ओगय[पग] प्राप्त (१,२, २, १०) |
ओगर देखो अं. मगर (पिंग) ओगलिअ वि [ अवगलित] गिरा हुआ, खिसका हुआ (गा २०५ ) 1
ओगसण न [ अपकसन] ह्रास (राज) ओगहिअ वि [ अत्रगृहीत] उपात्त, गृहीत (ठा ३)
ओगाढ वि [ अबगाढ] १ ग्राश्रित, अधिष्ठित (ठा २, २) । २ व्याप्त ( गाया १, १६ ) । ३ निमग्न (ठा ४ ) । ४ गंभीर, गहरा (पउम २०, ६५ से ६, २६ ) 1
ओगास पुं [ अवकाश ] जगह स्थान (विवे १३६ टी) । ओगास [अवकाश] मार्ग, रास्ता (तुल पुं २२१
ओगाह सक [अब + गाह ] पाँव से चलना । ओगान (५७५) IV
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