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२०६ पाइअसहमहण्णवो
ओहट्ट-ओहासण ओहट्ट वि [अपघट्टक] निवारक, हटाने- ओहलिय वि [अवखलित] घिसा हुआ, ओहार पुं[दे] १ कच्छप। २ नदी वगैरह ओहदय वाला, निषेधक (विपा १, २, अंसुजलोहलियगंडयलो (सुर २, १८६; के बीच की शुष्क जगह, द्वीप। ३ अंश, गाया १, १६, १८)।
विभाग (दे १, १६७)। ४ जलचर-जन्तुओहट्रिअ वि [दे] दूसरे को दबाकर हाथ से | ओहली स्त्री [दे ]ोध, समूह (सुपा ३६४।। विशेष (पएह १, ३)। गृहीत (दे १,१५६)।
| ओहस सक [ उप + हस् ] उपहास करना। ओहार पुं [अवधार] निश्चय। व वि ओहट्ट पुं[दे] हास, हंसी (दे १, १५३)। | मोहसइ (नाट)। कवकृ. ओहसिज्जत (से | [वत् ] निश्चयवाला (द्र ४६)। ओहट्ठ वि [अवघृष्ट ] घिसा हुआ (पउम । १५, १०)। कृ ओहसणिज (स ८)। ओहारइत्तु वि [अवधारयितु] निश्चय करने३७, ३)।
ओहसिअ न [दे] १ वस्त्र, कपड़ा। २ वि. वाला (राज)। ओहड वि [अपहृत नोचे लाया हुआ (दस | धूत, कम्पित (दे १, १७३)।
| ओहारइत्तु वि [अवहारयितु] दूसरे पर
ओहसिअ वि [उपहसित] जिसका उपहास मिथ्याभियोग लगानेवाला (राज)। ओहडणी स्त्री [दे] अर्गला (दे १, १६०)। किया गया हो वह (ग, ६०; दे १, १७३; ओहारण न [अवधारण] नियम, निश्चय ओहत्त वि [दे] अवनत (दे १, १५६)। स ४४८)। ओहत्थिअ वि [अपहस्तित] परित्यक्त, दूर | ओहाइअ वि[ दे ] अधो मुख (१, १५८)। ओहारणी स्त्री [अवधारणी] निश्चयात्मक किया हुआ (मै ३५)।
ओहाइअ वि [अवधावित] चरित्र से भ्रट| भाषाः 'मोहारणि अप्पियकारिणि च भासं न ओहय वि [उपहत] उपघात-प्राप्त (णाया | (दसचू १, १)।
भासिज सया स पुजो' (दस ८, ३)। ओहाडण न [अवघाटन] प्रायश्चित्त-विशेष आहारिणा स्त्री [अवधारिणी] ऊपर देख ओहय वि [अवहत] विनाशित (औप) । (वय १)।
(भास १४)। | ओहाडण न [अवघाटन] ढकना, पिधान ओहाव सक [आ + क्रम् ] आक्रमण करना। कर्म. मोहरीमामि (पि ६८) । (वव १)।
मोहावइ ( हे ४, १६०; षड् )। ओहर अक [अव + ह] टेढ़ा होना, वक्र
ओहाडणी स्त्री [दे. अवघाटनी] १ पिधानी ओहाव अक [अव + धाव ] पीछे हटना । होना । २ सक. उलटा करना । ३ फिराना। (द १, १६१)। २ एक प्रकार की प्रोढ़नी वकृ. ओहावंत, ओहावेत (प्रोघ १२६; संकृ. ओहरिय (प्राचा २, १, ७)। (जीव ३)
वव ८)। ओहर न [उपगृह] छोटा गृह, कोठरी (पएह | ओहाडिय वि[अवघाटित १ पिहित, बन्द | ओहावण न [अवधावन] १ अपसर्पण, १,१)।
किया हुआः 'वइरामयकवाडोहाडियाओ' (जं पलायन (वव १)। २ दीक्षा से भागना, दीक्षा ओहरण न [अपहरण] उठा ले जाना, १-पत्र ७१) । २ स्थगित (आव ५)। । को छोड़ देना (वव ३)। अपहार (उप ६७६)।
| ओहाण न [उपधान स्थगन, ढकना (वव ४)। ओहावण न [अवभावन] अपमान, अपकीर्ति ओहरण न [दे] १ विनाशन, हिंसा । २ ओहाण न [अवधान ] उपयोग, ख्याल
(पिंड ४८६)। असंभव अर्थ की सम्भावना (दे १, १७४)। (प्राचा)।
ओहावणा स्त्री [अपहापना] लाघव, लघुता ३ अस्त्र, हथियार (स ५३१; ६३७)। ४ | ओहाण न [अवधावन अवक्रमण, पीछे
(जय २६)। वि. अाम्रात ( षड् )।
हटना (निचू १६)।
| ओहावणा स्त्री [अपभावना] तिरस्कार, ओहरिअ वि[दे. अपहृत] १ फेंका हुमा ओहाम सक [ तुलय् ] तौलना, तुलना
अनादर (उप १२६ टी; स ४१०)। (मे १३, ३)। २ नीचे गिराया हुआ (से | करना। अोहामइ (हे ४, २५ )। वकृ.
| ओहावणा स्त्री [आक्रान्ति] आक्रमण ३, ३७) । ३ उतारा हुआ, उत्तारित (प्रोघ ओहामंत (कुमा)।
(काल)। ८०६)। ४ अपनीत; 'मोहरिप्रभरुव्व भार- ओहामिय वि [तुलित] तौला हुआ (पानः
ओहाविअ वि [अपभावित] १ तिरस्कृत . वहाँ (श्रा ४०)।
(सुपा २२४)। २ ग्लान, ग्लानि-प्राप्त (वव सुपा २६६)। ओहरिस वि [दे] १ आघात, सूंघा हुआ। ओहामिय वि [दे] १ अभिभृत (षड् )। ओहाविअ वि [अवधावित] पलायित, अप२. चन्दन घिसने की शिला, चन्द्रौटा (दे २ तिरस्कृत (स ३१३; प्रोघ ६०)। ३ बन्द सृत (दसचू १, २)। १, १६६)।
किया हुमा, स्थगित; 'जह वीणावंसरवा ओहास पुं अवहास, उपहास] हँसी, ओहल देखो उऊखल (हे १, १७१ कुमा)। खगेण पाहामिमा सव्वा' (पउम ४६, ६)। हास्य (प्राप्र मै ४३)। ओहल सक [अब + खल्] घिसना। भवि- ओहार सक [अव +धारय ] निश्चय ओहासण न [अवभाषण] याचना, मांग, मोहलिही (सुपा १३६)।
| करना । संकृ. ओहारिअ (अभि १६४)। । विशिष्ट भिक्षा (प्राव ४)।
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