________________
एजमाण-एरिसिअ
पाइअसद्दमहण्णवो
१९३
एज्जमाण देखो ए = पा+इTV
एत्तोअ दे] यहां से लेकर (दे १, १४४) एयाणि देखो इयाणिं (रंभा) । एड सक [एड] छोड़ना, त्याग करना ।
एत्थ अ [अत्र] यहां, यहां पर (उवाः गउडः एयावंत वि[ एतावत् ] इतना (पाचा) ।। एडेइ (भग)। कवकृ. एडिजमाण (णाया चारु १०३) ।
एरंड पुं[एरण्ड] १ वृक्ष-विशेष, रेंड, अंडी, १, १६) । संकृ. एडित्ता (भग) । कृ.
एत्थी देखो इत्थी (उप १०३१ टी)। एरण्ड का पेड़ (ठा ४, ४; गाया १, १)। एडेयव्य (गाया १, ६) एत्थु (अप) देखो एत्थ (कुमा)
२ तृण-विशेष (पएण १)। मिंजिया स्त्री एड सक [ एडय ] हटाना, दूर करना ।
एदंपज्ज न [ऐदंपय तात्पर्य, भावार्थ (उप [मिञ्जिका] एरण्ड-फल (भग ७, १)। एडेह; संकृ. एडेत्ता (राय १८) ८५६टी)।
एरंड वि [ऐरण्ड] एरण्ड-वृक्ष-संबन्धी एडक पुं[एडक] मेष, भेड़ (उप पृ २३४)।
एदिहासिअ (शौ) वि ऐतिहासिक] इति- (पत्रादि) (दे १, १२०)। एडया स्त्री [एडका] भेड़ी (षड्) हास-संबन्धी (प्राप)
एरंडइय । [दे] पागल कुत्ता, 'एरंडए एण पुं[एण] कृष्ण मृग, हरिण (कप्पू)। दह देखो एत्तिअ (हे २, १५७; कुमाः एरंडय साणे एरंडइयसाणेत्ति हडक्क°णाहि स्त्री [ नाभि कस्तूरी (कप्पू) । काप्र ७७)।
यितः' (बृह १) । एणंक [एणाङ्क] चन्द्र, चन्द्रमा (कप्पू)।
एम (अप) अ [एवं] इस तरह, ऐसा (षड् । एरण्णवय न ऐरण्यवत] १ क्षेत्र-विशेष एणिज वि [एणेय] हरिण-संबन्धी, हरिण पिंग)
(सम १२)। २ वि. उस क्षेत्र में रहनेवाला का (मांस वगैरह) (राज) IV
एमइ (अप) अ[एवमेव] इसी तरह, ऐसा । (ठा २) 10 एणिज्जय पुं[एणेयक] स्वनाम-ख्यात एक
ही (षड् ; वजा ६०)।
एरवई स्त्री ऐरावती, अजिरवती नदीएमाइ । वि [एवमादि] इत्यादि, वगैरह राजा, जिसने भगवान महावीर के पास दीक्षा
विशेष (राजः कस)। एमाइय। (सुर ८, २६ उव) ली थी (ठा ८)
एरवय न [ऐरवत] १ क्षेत्र-विशेष (सम १२; एमाण वि [द] प्रवेश करता हुप्रा (दे १, एणिस पुं [एणिस] वृक्ष-विशेष (उप १:३१
ठा २, ३) । २ पृ. पर्वत-विशेष (ठा १०)। १४४) । टी)।
एरवय वि [ऐश्वत ] ऐवत क्षेत्र का एमिणिआ स्त्री [दे] वह स्त्री, जिसके शरीर एणी स्त्री [एणी हरिणी (पान; परह १, ४)।
(सुज १, ३)। को, किसी देश के रिवाज के अनुसार, सूत के एरवय वि [ऐरवत] ऐरवत क्षेत्र का रहनेयार पुं[°चार] हरिणी को चरानेवाला, धागे से माप कर उस धागे को फेंक दिया
वाला (अरण)। "कूड न [कूट] पर्वतउनका पोषण करनेवाला (पएह १, १) जाता है (दे १, १४५)
विशेष का शिखर-विशेष (ठा १०), एणुवासिअपुं[दे भेक, मेढ़क (दे १. १४७)।
एमेअ ) अ [एवमेव] इसी तरह, इसी एराणी स्त्री [दे] १ इन्द्राणी व्रत का सेवन एणेज देखो एणिज (विपा १, ८)। एमेव प्रकार: 'ता भण किं करणिज्ज
करनेवाली स्त्री (दे १, १४७)।एण्हं । [इदानीम् ] अधुना, संप्रति । एमेन ण वासरो ठाइ' (काप्र २६) हे १,
एरावई श्री [ऐरावती] नदी-विशेष (ठा ५, एण्हि (महा: हे २, १३४) TV
२७१) एताय देखो एत्तिअ%= एतावत; 'एतावं नर-
२; पि ४६५)। एम्ब (अप) [एवम् ] इस तरह, इस लोओं' (जीवस १८७) ।
एरावण पुंऐरावण] १ इन्द्र का हाथो, जो । प्रकार (हे ४,४१८) एत्तअ वि [इयत्, एतावत् ] इतना (अभि
कि इन्द्र के हस्ति-सैन्य का अधिपति देव है एम्बइ (अप) अ [एवमेव] इसी तरह, इस
(ठा ५,१; प्रयौ ७८)। वाहण पुं[चाहन] ५६; स्वप्न ४०) प्रकार (हे ४, ४२०) ।
इन्द्रवाहन (उप ५३० टी)। एत्तए देखो इ% इ ।
एम्वहिं (अप) अ [ इदानीम् ] इस समय, एत्तहि (अप) प्र[इतस] यहां से (कुमा) अधुना (हे ४, ४२०)।
एरावय पुंदावत] १ ह्रद-विशेष (राज)। एत्तहे देखो इत्तहे (कुमा)।
२ ह्रद-विशेष का अधिष्ठाता देव (जीव ३)। एय अक [एज] १ काँपना. हिलना । २ एत्ताहे देखो इत्ताहे (हे २, १३४ कुमा)।
३ छन्दः-शास्त्रप्रसिद्ध पञ्चकला-प्रस्तार में आदि चलना । एयइ (कप्प) । वकृ. एयंत (ठा ७)। एत्तिअ । वि [इयत् , एतावत् ] इतना
के ह्रस्व और अन्त के दो गुरु अक्षरों का प्रयो., कवकृ. एइज्जमाण (राज) एत्तिल । (हे २, १५७)। मत्त, मेत्त
संकेत (पिंग) । ४ लकुच वृक्ष । ५ सरल और वि [ मात्र] इतना ही (हे १, ८१)IV एय [एज गति, चलन (भग २५, ४) ।
लम्बा इन्द्र-धनुष । ६ इरावती नदी का एत्तिक (शौ) देखो एत्तिअ% एतावत् (प्राकृ एयत देखा एकत (पउम १५, ५८,
समीपवर्ती देश। ७ इन्द्र का हाथी (हे १, एयण न [एजन कम्प, हिलन; 'निरयणं २०८)। एत्तुल (अप) ऊपर देखो (हे ४,४०८ कुमा)। भाणं' (पाव ४)।
एरिस बि [ईदृश] इस तरह का, ऐसा एत्तूण अ [द अधुना, इस समय (प्राकृ८०) एयणा स्त्री [एजना] १ कम्प। २ गति, (माचा; कुमार प्रासू २१) । एत्तो देखो इओ (महा)।
| चलन (सूम २, २, भग १७, ३) । एरिसिअ (अप) ऊपर देखो (पिंग)। २५
Jain Education Interational
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org