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परसग्गि- उस्सुख
उस्सग्गिवि [ उत्सर्गिन् ] उत्सर्ग - सामान्य नियम- का जानकार (पत्र ६४) । उसण वि [अवसन्न] निमग्न उस्सा (१४). उसण [दे] प्रायः, प्रायेण (राज) IV सहसा श्री [ललनिका] परिमाणविशेष, अरेका ६४ हिस्सा
(इक) 1
=
उस्सन्न देसो उस्सण्ण दे (सूत्र २, २, ६५; तंदु २७) । 'भाव पुं["भाव] बाहुल्यभाव ( घर्मंसं ७५६ ) 1
उन्नवि [उत्सन्न ] निज धर्म में घालसी साधु (१२) ।
पाइअसद्दमण
साद (भग) व उस्ससिनमाण (डा १०)
।
उस्ससिय वि[उच्छ्वसित] १ उबारा प्राप्त । २ उल्लसित (उत्त २० ) । उस्सा स्त्री [उस्रा ] गैया, गौ (दे १, ८६) उस्सा [दे] देखो आसा (ठा ४, ४) "चारण ["चारण] घोस के लम्ब से गति करने का सामर्थ्यंबाला मुनि (पव ६८ ) । उस्सार सक [ उत् + सारय् ] १ दूर करना, हटाना। २ बहुत दिन में पाठनीय ग्रन्थ को एक ही दिन में पढ़ाना । वकृ. उस्सारिंत ( वह १) संकृ. उस्सारिता (महा) उस्सारइदव्य (शौ) (स्वप्न २० ) IV उस्सार पुं [ उत्सार] अनेक दिन में पढ़ाने योग्य ग्रन्थ का एक ही दिन में अध्यापन । * कप्प [कल्प ] पाठन संबन्धी प्रचारविशेष (बृह १) | उस्सारण
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[ उस्मारक ] दूर करनेवाला । २ उत्सार-कल्प के योग्य (बृह १ ) 1 उस्सारण न [ उत्सारण] १ दूरीकरण । २ अनेक दिनों में पढ़ाने योग्य ग्रन्थ का एक ही दिन में अध्यापन 'अरिहइ उस्सारणं काउं' (बृह १ ) ।
उस्सारयवि [उत्सारित ] दूरीकृत, हटाया हुआ (संथा ५७ ) |
उस्सास [उच्छवास] १ उस ऊंचा श्वास (परह १) । २ प्रबल श्वास (धाव २ ) । नाम न [" नामन् ] उसाँस - हेतुक कर्म- विशेष (सम ६७) ।
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उस्पिण [उत्सेचन] १ वचन २ कूपादि से जल वगैरह को बाहर को खींचना (प्राचा) । ३ सिचन के उपकरण (प्राचा २) | उचिणा श्री [उत्सेचना ] देखो उरिसचण (उत्त ३०, ५) Iv
कि देखो उसक
हरिसकिया
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।
( दस ५, १, ६३ ) । उसक्क सक [ मुच्] छोड़ना, त्याग करना है
४,९१) 1
उस्सिक सक [ उत् + क्षिप् ] ऊंचा फेंकना। उस्किइ (हे ४, १४४ ) 1
उसपण न [उत्सर्पण] १ उन्नति, पोषण २ वि उन्नत करनेवाला, बढ़ानेवाला; 'कंदप्पदप्प उत्सपणा वयरगाई जंपए जा सों (सुपा २०६)1/
वि [ उत्क्षिप्त ] १ ऊँचा फेंका हुआ । २ ऊपर रखा हुआ (स ५०३ ) 1 उस्सन वि [उत्स्विन्न] विकारान्त को प्राप्त, चित्त किया हुआ (दस ५, २,२१) । उस्सिय वि [उच्छ्रित] उन्नत, ऊँचा किया हुधा (कम)
,
उसपणा श्री [उत्सर्पणा] उन्नति प्रभावना ( उप ३२६) ।
उस्सिय वि [ उत्सृत] १ व्याप्त । २ ऊँचा किया हुंधा (कप्प) ।
उसपना श्री [उत्सर्पणा] विख्यात करना, प्रसिद्धि करना (सम्मत्त १६६ ) । उस्सप्पिणी स्त्री [उत्सर्पिणी] उन्नत काल विशेष, दश कोटाकोटि-सागरोम-परिमित काल-विशेष, जिसमें सब पदार्थों की क्रमशः उन्नति होती है (सम ७२ ठा १, १ पउम २०, ६८) ।
उस्सिय वि[उत्सृत ] श्रहंकारी (उत्त २६, Yε) Iv
उस्सय पुं [उच्छ्रय] १ उन्नति, उच्चता (विसे ३४१) । २ अहिंसा ( एह २, १) । ३ शरीर (रान) 1
उस्सीस ] [] तकिया (सुपा ४३७ गाया १, १ श्रोध २३२) उस्सुआप एक [ उस्कयू ] जाकरित करना, उत्सुक करना। उस्सुनावेइ ( उत्तर ७१) 1V
उस्सयण न [उच्छ्रयण] श्रभिमान, गर्व उस्सासय वि [उच्छ्वासक ] उसांस लेने- उस्सुंक ? वि [उच्छुक्ल ] शुल्क-रहित, करवाला (विसे २७१५) ( सू १, २)।
उस्सर क [उत् + सृ] हटना, दूर जाना । उस्सरह (स्वप्न ६ ) ।
उस्सव सक [उत् + श्रि ] १ ऊँचा करना । २ खड़ा करना। उत्सवेहः संकृ. उस्सवित्ता (कम्प) प्रयोग उस्सविय (भाचा २, १) ।
उस्सुक्क ) रहित (कप्पः गाथा १, १ ) । उस्साह देखो उच्छाह (सूमनि ६२ ) । उस्सुक्क वि [उत्सुक ] उत्कण्ठित। उस्सुका [औत्सुक्य] अमुकता (भावक } उखड [उच्] मेरी स्वेच्छा-वग २२८ मेस ६५६ ९५७) पारी, निरश ( १४९ टी उस्सिंघिय वि [दे] प्राघ्रात, सुँघा हुआ (स २६०) । उस्सिंच तक [ उत् + सि] सिंचना, सिच् १ सेक करना । २ ऊपर सिंचना। ३ आक्षेप करना। ४ खाली करना 'पुराना नाम सिला' (घाचा २, ११, ११) - चति ( निचू १८ ) । वकृ. उस्सिंचमाण (STR, 8, 4) 1✓
उस्सुका वि [ उत्सुकयू ] उत्सुक करना, उत्कण्ठित करना । संकृ. उस्सुकावइत्ता (राज)।
उस्सव पुं [उत्सव ] उत्सव (प्रभि १९४) । उसवणवा श्री [उच्छ्रयणता] र
उस्सुगवि [उत्सुक ] उरकरि (१७१ २९ पह२, ३) |
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करना, इकट्ठा करना (भग) । उस्सस अक [ उत् + श्वस् ] १ उच्छ्वास लेना, श्वास लेना । २ उल्लसित होना । उस्स
उस्सुत वि [उत्सूत्र ] सूष-विरुद्ध सिद्धान्तविपरीत (वव १ उप १४६ टी) | उस्सुय देखो उस्सुग (भग ५, ४ प्रप) । उस्सु न [औत्सुक्य] उत्कएका, उत्सुकता
उरिसक्किअ वि [मुक्त] मुक्त, परित्यक्त (कुमा) 1
उस
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