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१८० पाइअसहमहण्णवो
उववीड-उवसाम (गाया १,१६; गउड)। २ वि. सहित, युक्त रहित (सूम १, ६; धर्म ३)। २ नष्ट, अपगतः | उवसज्जण न [उपसर्जन] १ अप्रधान, गौण 'गुणसंपनोववीमो' (विसे ३४११)।
'उवसंतरयं करेह (राय)। ३ पु. ऐरवत क्षेत्र (विसे २२६२)। ३ सम्बन्ध (विसे ३००५)।
के स्वनाम-धन्य एक तीर्थङ्कर-देव (पव ७)। उवसत्त वि [उपसक्त] विशेष प्रासक्तिवाला उववीड अ [उपपीड उपमर्दन, सिविणो
मोह पुं[ मोह] ग्यारहवाँ गुण-स्थानक वीडं प्रालिगणेण गाढं पीडियो' (रंभा)।
| (उत्त ३२) । (सम २६)।
उवसह पुं [उपशब्द सुरत-समय का शब्द उबवूह सक [उप + बंह ] १ पुष्ट करना ।
उवसंति स्त्री [उपशान्ति] उपशम (प्राचा)। (तंदु)। २ प्रशंसा करना, तारीफ करना। संकृ.
उवसंधारिय वि [उपसंधारित] संकल्पित उवसद्द पुन [उपशब्द] १ प्रच्छन्न शब्द । २ उबवूहेऊण (दसनि ३) । कृ. उबवूहेयन्त्र (निचू १)/
समीप का शब्द (तंदु ५०)। (दसनि ३)।
उवसंपज्ज [उपसं+ पद्] १ समीप में उवसप्प सक [ उप + सृप्] समीप जाना। उववूहण न [उपबृंहण] १ वृद्धि, पोषण
जाना । २ स्वीकार करना । ३ प्राप्त करना। संकृ. उवसप्पिऊण (महा: स ५२६) (पएह २,१)। २ प्रशंसा, श्लाघा (पंचा २)
उवसंपजइ (स १६१)। वकृ. उवसंपन्जंत उवसप्पि वि [उपसपिन] समीप में जानेउबवूहा स्त्री [उपबृंहा] ऊपर देखोः “उववूह
(वव १)। संकृ. उवसंपज्जिता, उवसंपजि- | वाला (भवि)। थिरीकणे वच्छल्लपभावणे अ8 (पडि)। त्ताणं (कप्प; उवा)। हेकृ. उवसंपजिउं
उवस प्पिय वि [उपसर्पित] पास गया हुआ उववूर्णिय वि [उपबृंहणीय] पुष्टि-कर्ता (बृह १)। (निचू ८)। स्त्री. पट्ट-विशेष, राजा वगैरह के
(पान)। उवसंपण्ण वि [उपसंपन्न] १ प्राप्त । २ भोजन-समय में उपभोग में आनेवाला पट्टा
स्वसम [उप + शम्] १ क्रोध-रहित
समीप-गत (धर्म ३)। (निचू ६)
होना। २ शान्त होना, ठंडा होना। ३ नष्ट उवसंपया स्त्री [उपसंपद् ] १ ज्ञान वगैरह
होना। उवसमइ (कप्पा कस महा)। कृ. उबबूहिय वि [उपबंहित] १ वृद्धि को प्राप्त, की प्राप्ति के लिए दूसरे गुर्वादि के पास जाना उवसमियव्य (कप्प)। प्रयो. उवसमेइ (विसे पृष्ट (स १५)। २ प्रशंसित (उप पू ३८६) (धर्म ३)। २ अन्य गुरु प्रादि की सत्ता का
१२८४), उवसमावेइ (पि ५५२)। कृ. उवउववृहिर वि [उपबंहिन् ] १ पोषक, पुष्टि- स्वीकार करना (ठा ३, ३)। ३ लाभ, प्राप्ति समावियव्य (कप्प) V कारक । २ प्रशंसक (सण)।
(उत्त २६) उववेय वि [उपेत] युक्त, सहित (णाया १,
उवसम पु [उपशम] १ क्रोध का अभाव, उवसंहर सक [उपसं+ हृ] १ हटाना, दूर १; औप वसु; सुर १, ३४; विसे REEM
क्षमा (प्राचा)। २ इन्द्रिय-निग्रह (धर्म ३)। करना। २ सकेलना, समेटनाः 'ता उवसंहर उवसंकम सक [उपसं+ क्रम् ] समीप
३ पन्द्रहवाँ दिवस (चंद १०)। ४ मुहूर्तइमं कोवं' (कुप्र २८५)। संकृ. 'उवसंहरिउं आना । वकृ. उवसंकमंत (दस ५, २,१०)।
विशेष (सम ५१)। °सम्म न ["सम्यक्त्व] नीसेसदेवमायं गो जाव' (धर्मवि १८)। उवसंखड सक [उपसं + कृ] राँधना,
सम्यक्त्व-विशेष (भग)। उपसंहरिय वि [उपसंहत] समेटा हुआ, | पकाना । कवकृ. उवसंखडिन्नमाण (आचा |
उवसमणा स्त्री [उपशमना] पात्मिक प्रयत्न२, १, ४, २)। 'वंतरेण य उवसंहरिया माया' (महा) ।
विशेष, जिससे कर्म-पुद्गल उदय-उदीरणादि उवसंखा स्त्री [उपसंख्या] यथावस्थित पदार्थउपसंहार पुं [उपसंहार] संकोचन, समेट
के अयोग्य बनाए जाय वह (पंच) ।। ज्ञान (सूम १, १२)। (द्रव्य १०)।
उवसमि वि [उपशमिन् ] उपशमवाला उवसंगह सक [उपसं + ग्रह. ] उपकार उवसंहार पुं [उपसंहार] १ समाप्ति । २ |
(विसे ५३० टी)। करना। कर्म. उवसंगहिजइ (स १६१)। उपनय (श्रा ३६) ।
उपसमिअ ' औपशमिक] कर्मों का उपउवसंघर सक [उपसं + ह] उपसंहार करना। उवसग्ग पुं[उपसर्ग] १ उपद्रव, बाधा (ठा |
शम (प्ररण ११३) IV उवसंघरमि (भवि)। १०)। २ अव्यय-विशेष, जो धातु के पूर्व में
उवसमिय वि [उपशमित] उपशम-प्राप्त उवसंघरिय देखो उवसंहरिय (भवि) जोड़े जाने से उस धातु के अर्थ की विशेषता
(भवि)। उवसंघिय वि [उपसंहृत] जिसका उपसंहार करता है (पएह २, २)।
उवसमिय वि [औपशमिक] १ उपशम से किया गया हो वह, समापित (विसे १०११) उवसग्ग वि [दे] मन्द, पाल सी (दे १,
होनेवाला। २ उपशम से संबन्ध रखनेवाला उवसंचि सक [उपसं+ चि] संचय करना। ११३) ।
(सुपा ६४८) संकृ. उवसंचिवि (सण)
उवसग्गिअ वि [उपसर्गित] हैरान किया | उवसाम सक [उप + शमय] १ शान्त उवसंठिय वि [उपसंस्थित] १ समीप में हुआ (सिरि १११७) ।।
करना । २ रहित करना। उवसामेइ (भग)। स्थित । २ उपस्थित (सण)।
उवसज्ज प्रक[उप+ सृज् ] पाश्रय करना। वकृ. उवसामेमाण (राज)। कृ. उवसामिउवसंत वि [उपशान्त] १ क्रोधादि विकार-। उवसजिजा (माचा २, ८, १) ।
यव्य (कप्प) । संकृ. उवसामइत्तु (पंच)।
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