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उवासग-उव्वट्टण पाइअसद्दमहण्णवो
१८३ उवासग वि [उपासक] १ सेवा करनेवाला। उविंद पुंन [उपेन्द्र] एक देव-विमान (देवेन्द्र सीनता (सम ३२) । कर वि [°कर] उपे२ पुं. जैन या बुद्ध दर्शन का अनुयायी गृहस्थ १४१)
क्षक, उदासीन (श्रा २८)। (धर्मसं १०१३) | उविक्ख सक [ उप + ईक्ष ] उपेक्षा करना,
उवेहा स्त्री [उत्प्रेक्षा] १ ज्ञान, समझ । २ उवासग वि [उपासक] १ उपासना करने- | अनादर करना। वकृ. उविक्खमाण (द्र |
कल्पना । ३ अवधारण, निश्चय (प्रौप)। वाला, सेवक । २ पुं. श्रावक, जैन गृहस्थ ।
उवेहिय वि [उपेक्षित] अनाहत, तिरस्कृत (उत्त २)। 'दसा स्त्री [°दशा] सातवाँ | उविक्खा स्त्री [उपेक्षा] उपेक्षा, अनादर
(उप १२६ सुपा १३५)। जैन अंग ग्रन्थ (सम १)। पडिमा स्त्री (काल)।
"उव्व देखो पुव्य (गा ४१४)। [प्रतिमा] श्रावकों को करने योग्य नियमउविक्खिय वि[उपेक्षित तिरस्कृत, अनाहत
उठवंत वि [उद्वान्त] १ वमन किया हुआ। विशेष (उत्त २) (सुपा ३६५)।
२ निष्क्रान्त, निर्गत (अभि २०६) उवासण न [उपासन] उपासना, सेवा (स उविक्खेव पुं [उद्विक्षेप] हजामत, मुण्डन
उव्वक्क सक [उद्+वम् ] १ बाहर निका५४३; मै ८६) (तन्दु)
लना २ वमन करना । हेकृ. उव्यक्किउं (सुपा उवासणा स्त्री [उपासना] १ क्षौर-कर्म, |
उवियग्ग वि [उद्विग्न] खिन्न, उद्वेग-प्राप्त हजामत वगैरह सफाई । २ सेवा, शुश्रूषाः |
उव्यक्क । वि [उदान्त] १ बाहर निकाला (राज)। 'उवासणा मंसुकम्ममाइया, गुरुरायाईगणं वा
उव्यक्किय हुआ (वव १)। २ वमन किया उवीव अक [उद्+विच् ] उद्वेग करना, उवासणा पज्जुवासरणया' (पावम)।
हुप्रा. खिन्न होना । उवीवइ (नाट)। उवासय देखो उवासग (सम ११६)।
'संतोसामयपारणं, काउं उब्वक्कियं हयासेण । | उवे देखो उवि। उवेइ, उति (प्रौप) । वकृ. उवासय पुं [उपाश्रय] जैन मुनियों का
जं गहिऊणं विरई, कलंकिया मोहमूढेरण' निवास-स्थान (उप १४२ टी) उर्वत (महा) । संकृ. उवेञ्च (सूत्र १, १४)।
(सुपा ४३५) ।। उवासिय वि [उपासित] सेवित (पउम ६८, |
उवेक्ख देखो उविक्ख। उवेक्खह (सुपा उव्वग्ग देखो ओवग्ग। संकृ. उव्वग्गिवि ४२)।
___३५४)। कृ. उवेक्खियव्व (स ६०)। (भवि) । उवाहण सक [उपा + हन] विनाश करना, उवेक्खिअ देखो उविक्खिय (गा ४२०) उव्वट्ट उभ [उद् + वृत, वत्तय ] १ मारना । वकृ. उवाहणंत (पएह १, २) | उवेञ्च देखो उवे।।
चलना-फिरना। २ मरना, एक गति से दूसरी उवाहणा देखो उवाणहा (अनुः णाया १, उवेय वि [उपेत १ समीप-गत । २ युक्त,
गति में जन्म लेना। ३ पिष्टिका आदि से १५) । सहित (संस्था ()
शरीर के मल को दूर करना। ४ कर्म-परउवाहि पुंस्त्री [उपाधि ] १ कर्म-जनित | उवेय वि [उपेय] उपाय-साध्य (राज)।
मारगों की लघु स्थिति को हटाकर लम्बी विशेषण (प्राचा)। २ सामीप्य, संनिधि
स्थिति करना। ५ पाश्व को चलाना-फिराना। उवेल्ल अक [प्र+सू] फैलना, प्रसारित होना।। (भग १, १)। ३ अस्वाभाविक धर्मः 'सुद्धोवि |
६ उत्पन्न होना, उदित होना। उब्वट्टइ उवेल्लइ (हे ४, ७७)। फलिहमणी उपाहिवसमो धरेइ अन्नत्त' (धम्म
(भग)। वकृ. उव्यटुंत, उव्वट्टमाण, उअत्तंत ११ टी)। उवेस अक [उप + विश ] बैठना। वकृ.
(भगः नाटः उत्तर १०७; बृह १)। संकृ. उवि सक [उप + इ] १ समीप आना । २ उवेसमाण (पिंड ५८६)।
उध्वट्टित्ता, उहटु, उव्वट्टिय (जीव १; स्वीकार करना। ३ प्राप्त करना। उविति
उवेह सक [उप + ईक्ष ] उपेक्षा करना, विपा १, १, प्राचा २, ७; स २०६)। (भग)। वकृ. उविंत (पि ४६३; प्रामा)
तिरस्कार करना, उदासीन रहना। उवेहइ | हेकृ. उव्वट्टित्तए (कस)। उविअ देखो अविअ = अपि च (स २०६)
(धम्म १६)। वकृ. उवेहंत, उवेहमाण (स उव्वट देखो उव्वट्टिय = उद्वृत्त (भग)। उविअ वि [उपेत] युक्त, सहित (भवि) ।
४६; ठा ६)। कृ. उवेयिव्व (सण)
उव्वट्ट वि [दे] १ नीराग, राग-रहित । २ उविअ न [दे] शीघ्र, जल्दी (दे १, ८६)। उवेह सक [उत्प्र + ईक्ष ] १ जानना, सम
गलित (दे १, १२६)।२ वि. परिकर्मित, संस्कारितः 'णाणामरिणकझना । २ निश्चय करना । ३ कल्पना करना।
उबट्टण न [उद्वर्तन] १ शरीर पर से मल णगरयणविमलमहरिहनिउणोवियमिसिमिसंतउहाहि । वकृ. उवेहमाण; 'उबेहमाणे अणु
वगैरह को दूर करना। २ शरीर को निर्मल विरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठसंठियपसत्यमाविद्धवेहमारणं बूया, उवेहाहि समियाए' (प्राचा)।
करनेवाला द्रव्य–सुगन्धि वस्तु (उवा; णाया वीरढलए' (गाया १, १)। संकृ. उवेहाए (प्राचा)।
१, १३) । ३ दूसरे जन्म में जाना, मरण । ४ उविंद [उपेन्द्र] कृष्ण (कुमा)। वजा उवेहण न [उपेक्षण] उपेक्षा, उदासीनता
पार्श्व का परिवर्तन (प्राव ४)। ५ कर्म-पर स्त्री ["वज्रा] ग्यारह प्रक्षरों के पादवाला (संबोध १० हित २३)।
माणुओं की ह्रस्व स्थिति को दीर्घ करना एक छन्द (पिंग)।
उवेहा स्त्री [उपेक्षा तिरस्कार, अनादर, उदा- (पंच)।
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