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Baff [उपहित] १ उपढौकित, प्रर्पित । २ निहित, स्थापित ( श्राचा; विसे ९३७) । ३ न. उपढौकन, अर्पण (निचू २० ) IV Tata [औपाधिक] माया से प्रच्छन्न विचरनेवाला ( खाया १, २) उपज सक [ उप + भुज् ] उपभोग करना, कार्य में लाना । उवहुंजइ (पि ५०७ ) । कवकृ. उहुज्जत (पि ५४६) । उवहुत्त बहुत देखी उपभुक्त (पाय से १०, ४५) । (पाश्र उवाइकम सक [ उपाति + क्रम् ] उल्लंघन करना। संकृ. उवाइकम्म ( श्राचा २, ८१) 1 V
उपासक [उपातिनी] इजारा सं उपाणिता (२२,२,७) वाइण सक [ उप + याच् ] मनौती करना, किसी काम के पूरा होने पर किसी देवता की विशेष प्राराधना करने का मानसिक संकल्प करना। हेकृ. 'जति णं श्रहं देवारप्पिया ! दारगं वा दारियं वा पयामि, ताणं श्रहं तुब्भं जायं च दायं च भागं च अक्खयहि च वड्डेस्सामि त्ति कट्टु श्रीवाइयं 'उचाइणित्तए' (विपा १, ७)
वाइसक [ उपा + दा] १ ग्रहण करना । २ प्रवेश करना हे. वाइणित्तए (डा ३) प्रयोतं
रणो संताएं वच्चा राहियाएं भविव्हाणं सम्भूतारण जिरणपरत्ताणं भावारणं श्रभिगमरादुपाए एवम उचारणा वित्तए' (गावा १, १२)
उवाइणाव सक [ अति + क्रम् ] १ उल्लंघन
करना। २ गुजारना, पसार करना । उवाइ
गावे । वकृ. उवाइणावेंत हॅकृ. उवाइणावेत्तए ( कस); उवाइणा वित्तए ( कप्प ); 'से गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा बहिया से णं संनिविट्ठ ं पेहाए कप्पs निग्गंधारण वा निम्गंधी वा तदिवस मिनखायरियाए गंतूरण पडिनियत्तए; नो से कप्पइ तं रर्याण तत्थेव उवाइणावेत्तए । जे खलु निग्गंथे वा निग्गंथी वा तं रर्याण तत्थेव उवाइणावेइ, वाणा या साइज से दुहबीक ममाणे श्रावज्जइ चउमासियं परिहारद्वाणं
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पाइअसद्दमद्दण्णवो
।
प्रग्धाइयं' ( कस); 'नो से कप्पड़ तं रर्याण उवाइणवित्त' (कप्प) IV वाणाचियवि [अतिक्रान्त]] १ उचित २ गुजारा हुआ, पसार किया हुआ, बिताया हुआ 'नो कप्पs निग्गंथाण वा निग्गथीण वा असणं वा ४ पढमाए पोरसीए पडिग्गाहेत्ता पच्छिमं पोरिसि उवाइरणावेत्तए । से य श्राहच उवाइणाविएसिया, तं नो अप्परगा भुंजेज्जा' ( कस) ।
उवागच्छ ) सक [ उपा + गम् ] समीप में उवागम आना । उवागच्छइ (भगः कप्प ) । भवि. उमागमिस्संति (घाचा २, ३, १२) संकृ. उवागच्छित्ता ) । गति (भग. कप्प . उवागत (कप ) 1 उवागम [ उपागम ] समीप में आगमन (राज)।
उवागमण न [ उपागमन ] १ समीप में आगमन । २ स्थान, स्थिति ( श्राचानि ३११) । - मम सियागय वि [उपागत] समीप में धावा हुआ ( आचा २, ३, १, २) २ प्राप्त, 'एदिवस जीवो पाग मलों (अ)
[उत्पादित] उपाड़ा हुआ (वि
१, ६)
वाया ? स्त्री [ उपानह् ] जूता (षड् ); उवाणहा । 'पुण्बमुत्तारियात्रो ज्याहाम्रो पएसु ठवियाश्रो' (सुपा ६१० सूझ १, ४, २, ६)। उवादा सक [ उपा + दा] ग्रहण करना । कर्म. उवादीयंति (भग)। संकृ. उवादाय, उदिता (भग) वह उपादीयमाण ( आचा २) । उवादाण न [ उपादान ] १ ग्रहण, स्वीकार । २ कार्यरूप में परिणत होनेवाला कारण । ३ जिसका ग्रहण किया जाय वह, ग्राह्मः
उवाइय देखो उवयाइय (गाया १, २ सुपा १० महा) ।
बाई श्री [त्याची ] पोताको नामक विद्या की प्रतिपक्षभूत एक विद्या (विये २४५४) उपाए [उपादेय ] ग्राह्य ग्रहण करने ? वि उवाएय योग्य (विसे; स १४८) ।
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उवहिय उवास
'नाश्रोवादाणे च्चिय मुच्छा लोभोति तो रागो' (विसे २९७० ) 1
उपादि वि [उपजग्ध] उपभुत (राज) I उवाय पुं [ उपाय ] १ हेतु, साधन (उत्त ३२) । २ दृष्टान्तः 'उवाओ सोसाघम्मेण य विधम्मेण य' (प्राचू १) ३ प्रतीकार ( ठा 8,3)11
उवाय सक [ उप + याच् ] मनौती करना । वकृ. उवायमाण (गाया १, २ १७) | [उपायन] भेंट उपहार -
राना ( उप २४५ सुपा २२४; ४१०, ग)
डायगाव देवी उपाइनाप या
कृ. ।
व उचायणावेत हे उपाय नावेत्तए (स) उपायणावित्तए (कण) 1 उवायाण देखो उवादाण (अच्चु १२ स २ विसे २ε७६) IV
[उपायात] समीप में माया
उवायाय
हुआ (निर १, १) ।
वारूढ वि [ उपारूढ़ ] थारूढ़ ( स ३३१) । उवालंभ सक [ उपा + लभ् ] उलाहना देना । उवालम्भ (कप्प ) । वकृ. उवालंभंत (१६,४१) उपाभित्ता (बृह ४) उपालंभणिज (मात १५५) । उवालंभ पुं [उपालम्भ] उलाहना (गाया १, १; मा ४) ।
उवालद्ध वि [ उपालब्ध] जिसको उलाहना दिया गया हो वह 'उवालद्धो य सो सिवो बंभरणो' (निचू १ माल १६७) । उवालह सक [ उपा+लभू] उलाहना देना । भवि. उवालहिस्सं ( प्राप) - उवावत [उपावृत्त] रहस्य जो लेटने से धम-युक्त हुआ हो (चार ७०) 1 चिदशौ [उपावृतित] उपयुक श्रश्व से युक्त (चारु ७० ) IV उवास सक [ उप + आस् ] करना, सेवा करना, सुसमा सुपरणं सुतवस्सियं' ( सूत्र १, ९) । वकृ.. उवासमाण (ठा ६) ।
उपासना
उवास पुं [ अवकाश ] खाली जगह, श्राकाश (ठा २, ४ ८ भग)
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