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उवदुअ-उवयारण
पाइअसहमहण्णवो उवद्दुअवि [उपद्रुत हैरान किया हुआ उवभुंजण न [उपभोजन] उपभोग (सुपा करना। उवयरेइ (सण)। कृ. उवयरियव्व (भत १०५)।
(सुपा ५६४) । उवधाउ पुं [उपधातु] निकृष्ट धातु (संबोध उवमुत्त वि उपमुक्त १
उवयर सक[उप+चर ] १ आरोप करना। किया हो वह (वव ३)। २ अधिकृत (उप पृ
। २ भक्ति करना । ३ कल्पना करना ४ चिकिउवधारणया स्त्री [उपधारणा] अवग्रह-ज्ञान । १२४)।
सा करना। कवकृ. उवयरिजंत (सुपा (गदि १७४)।
उवभो । पुं[उपभोग] १ भोजनातिरिक्त उवधारणया स्त्री [उपधारणा] धारणा, उवभोग भोग, जिसका फिर-फिर भोग किया उवयरण न [उपकरण] साधन, सामग्री; 'माए धारण करना (ठा ८)।
जाय जैसे-वस्त्र-गृहादिः 'उवभोगो उ पुणो पुणो घरोवारणं अज हु गत्यि ति साहियं तुमए' उवधारिय वि [उपधारित] धारण किया उवभुजइ भवरणवलयाई (उत्त ३३, अभि (काप्र २६ गउड)। २ उपकार (सत्त ४१ हुआ (भग)।
३१)। २ जिसका एक बार भोग किया जाय टी) उवनंद पुं [उपनन्द] स्वनाम-ख्यात एक जैन | वह, प्रशन, पान वगैरह (भग ७, २; पडि)। उवयरिय वि [उपकृत] १ उपकृत । २ उपमुनि (कप्प) ।
उवभोग पुं[उपभोग] १ एक बार भोग, - कार (वजा १०)। उवनंद संक [उप + नन्द] अभिनन्दन करना। | आसेवन । २ अन्तरंग भोग (श्रावक २८४)। उवयरिय वि [उपचरित] पारोपित (विसे कवकृ. उवनंदिजमाण (कप्प) IV
३ धारण करना (ठा ५,३ टी—पत्र ३३८) २८३)। उवनगर देखो उवनयर (सुख २, १३) उवभोग्गा वि [उपभोग्य] उपभोग-योग्य उवयरिया स्त्री [उपचारिका] दासी (उप पू उवनयर देखो उवणयर (सुपा ३४१) । उवभोज (राज; बृह ३)।
३८७)। उवनिक्खित्त देखो उचणिक्खित्त (कस)।
उवमा स्त्री [उपमा] १ सादृश्य, दृष्टान्त (अणुः उवया सक [उप + या] समीप में जाना। लवनिक्खेव सक [उपनि + क्षेपय] १
उवः प्रासू १२०)। २ सत्य (ठा १०)। ३ । उवयाई (सून १, ४,१,२७)। उवयंति धरोहर रखना । २ स्थापन करना। कृ. उव
खाद्य-पदार्थ-विशेष (जीव ३)। ४ 'प्रश्नव्या- | (विसे १४१) निक्खेवियव्य (कस)
करण' सूत्र का एक लुप्त अध्ययन (ठा १०)। उवनिग्गय देखो उवणिग्गय (णाया १, १)।
उवयाइय वि [उपयाचित] १ प्रार्थित, अभ्य
५ अलङ्कार-विशेष (विसे ६६६ टी)। ६ । उवनिबंधण न [उपनिबन्धन] १ संबन्ध । ।
थित । २ न. मनौती, किसी काम के पूरा होने प्रमाण-विशेष, उपमान-प्रमाण (विसे ४७०)M २ वि. संबन्ध-हेतु (विसे १६३६) ।
पर किसी देवता की विशेष प्राराधना करने उबमाण न [उपमान] १ दृष्टान्त, सादृश्य । | उवनिमंत देखो उवणिमंत । उवनिमंतेइ, |
का मानसिक संकल्प (ठा १० गाया १,८)। २ जिस पदार्थ से उपमा दी जाय वह (दसनि उवनिमंतेमि (कस, उवा)।
उवयाण न [उपयान] समीप में गमन (सूप
१)। प्रमाण-विशेष (सूत्र १,१२)। उवनिविट्ठ वि [उपनिविष्ट] समीपस्थित
उवमालिय वि [उपमालित ] विभूषित, (राय २७)।
उवयार पुं[उपकार] भलाई, हित (उव उवनिहिय वि [औपनिधिक] देखो उवणिसुशोभित
गउड वजा ५८) 'अमलामयपडिपुन्न, कुवलयमालोवमालियमुहं च। हिय (पएह २, १)।
उवयार पुं [उपचार] १ पूजा, सेवा, आदर, कणयमयपुराणकलसं, विलसंतं पासए पुरो' उवन्नत्थ वि [उपन्यस्त स्थापित (स ३१०)।
भक्ति (स ३२, प्रति ४)। २ चिकित्सा,
(सुपा ३४) उवन्नास [उपन्यास] निवेदन (दसनि १,
शुश्रूषा (पंचा ६)। ३ लक्षणा, शब्द-शक्तिउवमिय वि [उपमित] १ जिसको उपमा दी
विशेष, अध्यारोपः 'जो तेसु धम्मसद्दो सो गई हो वह । २ जिसकी उपमा दी गई हो उपप्पदाण न [उपप्रदान] नीति-विशेष,
उवयारेण, निच्छएण इह' (दसनि १)। ४ वह (प्रावम)। ३ न. उपमा, सादृश्य (विसे उपप्पयाण दान-नीति, अभिमत अर्थ का ।
व्यवहार; 'गिउरणजुत्तोवयारकुसला' (विपा १, ६८५)। दान (विपा १, ३; गाया १,१)।
२)। ५ कल्पना; 'उवयारो खित्तस्स विणिउवमेअ वि [उपमेय] उपमा के योग्य (मै उवप्पुय वि [उपप्लुत] उपद्रुत, भय से व्याप्त
गमणं सरूवरो नत्यि' (विसे)। ६ आदेश ७३)। (राज)
(प्रावम)। उवय पुं[दे] हाथी को पकड़ने का गड्ढा उवभुंज सक [ उप+भुज् ] उपभोग करना, |
उवयारग वि [उपचारक] सेवा-शुश्रूषा करने(पास)। काम में लाना । उवभुंजइ (षड्)। वकृ.
वाला (निचू ११) उव जंत (उप पृ १८०)। कवकृ. उअहुउवय देखो ओवय । वकृ. उवयंत (कप्प)।
उवयारण न [उपकारण अन्य-द्वारा उपकार जंत, उवभुज्जत (से २,१० सुर ८,१६१)। उवय (अप) देखो उदय (भवि)
करना; 'उवयारणपारणासु विणो पउंजिसंकृ. उवभुंजिऊण (महा)।
| उवयर सक [उव+कृ] उपकार करना, हित । यन्वों' (पएह २, ३)।
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