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१६४ पाइअसद्दमण्णवो
उप्पाड - उप्पीलिय उप्पाड सक [उत् + पाटय् ] १ ऊपर | [ पूर्व प्रथमपूर्व, ग्रन्यांश-विशेष, बारहवें | ८, १७५; १२, ८७); 'उप्पिच्छमंथरगईहिं' उठाना। २ उखाड़ना, उन्मूलन करना। उप्पा- जैन अङ्ग-ग्रन्थ का एक भाग (सम २६) IV (भत्त ११६)। डेह (पएह १,१ स १५, काल)। कृ. उप्या- उप्पायग वि [उत्पादक] १ उत्पन्न करने- उप्पिण देखो उप्पण । वकृ. उप्पिरिणत (सुपा डणिज (सुपा २४६) । संकृ. उप्पाडिय वाला। २ पुं. त्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, कीट- ११)IV (नाट) विशेष (वव ८)
| उपिपत्थ वि [दे] १ त्रस्त, भीत (दे १, उप्पाड सक[उत् + पादय् ] उत्पन्न करना। उप्पायण न [उत्पादन] १ उत्पादन, उपार्जन १२६ से १०, ६१; स ५७४; पुफ्फ ४४३; संकृ. उप्पाडिऊण (विसे ३३२ टी)। (ठा ३,४) । २ वि. उत्पादक, उपार्जक (पउम गउड); "कि कायब्वविमूढ़ा सरणविहूणा उप्पाड पुं [उत्पाट] उन्मूलन, उत्खनन । ३०, ४०)।
भयुप्पित्था' (सुर १२, १६०)। २ कुपित, 'नयरणोप्पाडो' (उप १४६ टी ६८६ टो) उपायणया। स्त्री [उत्पादना] १ उपार्जन, क्रुद्ध । ३ विधुर, प्राकुल (दे १, १२६;
उप्पायणा उत्पन्न करना। जैन साधु की | पा) उप्पाडण न [उत्पाटन] १ उत्थापन, ऊपर
भिक्षा का एक दोष (ओघ ७४६ ठा ३, ४, | उप्पित्थ वि [दे] स्वास-युक्त (गीत) (राय उठाना । २ उन्मूलन, उत्खनन (स २६६; पिण्ड १)।
७७ टी) राज)।
उप्पायय वि [उत्पादक] उत्पन्न-कर्ता (सुख | उप्पिय सक [उत् + पा] १ प्रास्वादन उपाडिय वि [उत्पाटित] १ ऊपर उठाया |
२, २५)।
करना । २ फिर-फिर स्वास लेना। वकृ. हुया (पान प्रारू)। २ उन्मूलित (आक)M
उप्पाल सक [कथ् ] कहना, बोलना। उप्पा. उप्पियंत (पएह १, ३-पत्र ५५; राज) ।। उप्पाडिय वि [उत्पादित] उत्पन्न किया हुआ लइ (हे ४, २) । उप्पालसु (कुमा)। उप्पिय वि [अर्पित] अर्पण किया हुआ 'उप्पाडियरणागारणं खंदगसीसारण तेसि नमो'
उप्पाव सक [उत् + प्लावय ] १ लैंचाना, (हे १, २६६)। (भाव १३) IV
तैराना । २ कुदाना, उड़ाना। उप्पावेइ (हे | उप्पियण न [उत्पान] फिर-फिर स्वास लेना उप्पादअ वि [उत्पादक] उत्पन्न कर्ता (प्रयौ २, १०६) । कवकृ. उप्पियमाण (उवा) M (राज)। १७)। उप्पास सक [ उत्प्र + अस् ] हँसी करना। |
उप्पियमाण देखो उप्पाव उत्पादीअमाण देखो उपाय = उत् + पादय् । उप्पासिति (सुख १, १६)
उप्पिलण न [उत्सावन] लाँघना (पिंड ४२२)। उपाय सक [उत् + पादय् ] उत्पन्न करना, उप्पाहल न [दे] उत्कंठा, उत्सुकता (पास)।
उप्पिलाव देखो उप्पाव। उप्पिलावेइ । वकृ. बनाना । उष्पाएहि (काल) । वकृ. उप्पाएत,
उप्पिलावंत; 'जे भिक्खू सरणं नावं उप्पिउप्पि सक[ अपेय ] देना। उप्पिउ (कप्प)M लावेइ. उप्पिलावंत वा साइज्जई' (निचू १८) उप्पायंत (सुर २, २२, ६, १३)। संकृ.
उपि अ [उपरि] ऊपर; 'कहि णं भंते ! जोइ- उप्पीड पुंदे. उत्पीड] समूह, राशि (से ४, उप्पाएत्ता (भग)। हेकृ. उप्पाइत्ता, उप्पा
सिया देवा परिवसंति ? गोयमा ! उप्पि दीव- ३७ ए; उप्पाएत्तए (राज, पि ४६५, रणाया
) समुदाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढ़वीए' (जीव १, ४)। कवकृ. उप्पादीअमाण (शौ)
उत्पीडण न [उत्पीडन] १ कस कर बांधना। (नाट) IV
३ णाया १, ६ठा ३, ४ प्रौप)
२ दबाना (से ८, ६७)।। उप्पाय धुन [उत्पात १ उत्पतन, ऊध्र्व-गमनः उम्पिगलिआ स्त्री [दे] हाथ का मध्य भाग,
उप्पील सक [उत् + पीडय] १ कस कर 'नं सग्गं गंतुमणा सिखंति नहंगणुप्पायं' करोत्संग (दे १, ११८) IV
बाँधना। २ उठवानाः 'सएणं वा गावं (सुपा १८०)। २ आकस्मिक उपद्रव; 'पव
| उम्पिजल न [दे] १ सुरत, संभोग । २ रज, उप्पीलावेज्जा (पाचा २, ३, १, ११)। हणं च पासइ समुहमज्झे उप्पाएण छम्मासे धूली। ३ अपकीत्ति, अपयश (दे १, १३५) उप्पीलवेज्जा (पि २४०)। भमंतं ताहे अणेण तं उत्पायं उवसामियं' उप्पिजल वि [उत्पिजल] अति-पाकुल, उप्पील पुं[दे] १ संघात, समूह (दे १, (महा)। ३ माकस्मिक उपद्रव का प्रतिपादक | व्याकुल (कप्प)
१२६; सुपा ६१, सुर ३, ११६, वज्जा ९०B शास्त्र, निमित्त-शास्त्र-विशेष (ठा ; सम ४७;
उप्पिजल अक [ उत्पिञ्जलय् ] आकुल की पुफ्फ ७३; धम्म १२ टी); 'हुयासणो दहे परह १,४)। निवाय पुं["निपात चढ़ना | तरह आचरण करना। वकृ. उम्पिजलमाण
सव्वं जालुप्पीलो विरणासए' (महा)। २ और उतरना (स ४११) (कप्प)।।
स्थपुट, विषमोन्नत प्रदेश (दे १, १२६) उपाय पुं [उत्पाद] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव (सुपा | उप्पिच्छ [दे] देखो उप्पित्थः 'प्राहित्थं उप्पीलण न [ उत्पीडन ] पीड़ा, उपद्रव ६ कुमा)। पव्वय पुं[पर्वत] एक प्रकार उप्पिच्छं च पाउल रोसभरियं च', 'भीयं दुय- (स २७.)। के पर्वत, जहां प्राकर कई व्यन्तर-जातीय देव- मुप्पिच्छमुत्तालं च कमसो मुणेयन्वं' (जीव ३); | उप्पीलिय वि [उत्पीडित] कस कर बांधा देवियां क्रीड़ा के लिए विचित्र प्रकार के शरीर 'हत्थी ग्रह तस्स सवडहुत्तो पहाविमो पाय- हमा, उप्पीलियचिधपट्टगहियाउहपहरणा' (पएह बनाते हैं (सम ३३, जीव ३)। पुव्व न रुप्पिच्छो', 'रक्खससेन्नपि पायरुप्पिच्छे (पउम । १, ३, विपा १, २) ।
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