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उप्पइअ-उप्पाएत्तए पाइअसद्दमण्णवो
१६३ उप्पइअ वि [उत्पतित] ऊँचा गया हुआ, बिना शास्त्राभ्यासादि के ही होनेवाली बुद्धि, को चौरासी लाख से गुणने पर जो संख्या उड़ा हुप्रा; 'सेवि य ागासे उप्पइए' (उवा स्वाभाविक मति (ठा ४, ४; पाया १,१) लब्ध हो वह (ठा २, ४)। सुर ३,६६)। २ उन्नत, ऊँचा (आचा)। उप्पन्न देखो उप्पण्ण (उवा: सुर २, १६०) उप्पला स्त्री उित्पला] १एक इन्द्राणी, काल ३ उद्भूत, उत्पन्न (उत्त २)। ४ न. उत्पतन, उप्पय सक [ उत् + पत्] उड़ना, कूदना।।
नामक पिशाचेन्द्र की एक अग्र-महिषी (ठा उड़ना (ोप)। उप्पयइ (महा)। वकृ. उप्पयंत, उप्पयमाण
४, १)। २ इस नाम का 'ज्ञाताधर्मकथा' का उप्पइअ वि [उत्पाटित] उत्थापित, उठाया (उप १४२ टी; गाया १,१६) । संकृ. उप्प
एक अध्ययन (गाया २, १)। ३ स्वनाम हुआ; 'खुडिउप्पइअमुणालं दळूण पिनं व इत्ता (प्रौप)। कृ. उप्पइअव्व (से ६,७८)।
ख्यात एक श्राविका (भग १२, १)। ४ एक सिढिलवलनं एलिरिण' (से १, ३०) हेकृ. उप्पइउं (सुर ६, २२२)।
पुष्करिणी (जीव ३) उप्पय देखो उपव। वकृ. उप्पअंत (से ५, | उप्पलिणी स्त्री [उत्पलिनी] कमलिनी, कमल उप्पड ( देखो उप्पय उत् + पत् ।।
का गाछ या पौधा (पराग १)IV उप्पंक वि [दे] १ बहु, अत्यन्त । २ पुं. पङ्क, उप्पय पुं [उत्पात] १ उत्पतन, ऊँचे जाना,
उप्पल्ल वि [दे] अध्यासित, आरूढ़ ( षड् )। कीचड़, काँदो । ३ उन्नति (दे १, १३०)। कूदना, उड्डयन । २ उत्पत्ति; 'प्रवट्ठिए चले
उप्पव सक [उत् + प्लु] १ लाँघना, पार ४ समूह, राशि (दे १, १३०; पाम गउड; मंदपडिवाउप्पयाई य' (विसे ५७७)। 'निवय
करना, तैरना। २ ऊँचा जाना, उड़ना । वकृ. स ४३७)IV पुं[निपात] १ ऊँचा-नीचा होनाः
उप्पवंत, उप्पवमाण (से ५,६१, ८,८६)। उप्पंग पुं[दे] समूह, राशिः 'खरपवणुद्धय सायरतरंगवेगेहिं हीरए नावा।
उप्पवइय वि [उत्प्रव्रजित जिसने दीक्षा 'एवपल्लवं विसरणा, पहिया गुरुकुल्लोलवसुट्ठियनंगरनियरेण धरियावि ॥
छोड़ दी हो वह, साधु होकर फिर गृहस्थ पेच्छंति चूअरुक्खस्स। अरणवरयतरंगेहि उप्पयनिवयं कुणंतिया वहई'
बना हुमा (स ४८५) V कामस्स लेहिउप्पंगराइभं (सुर १३, १९७)। २ नाट्य-विधि का एक
उप्पह पुं[उत्पथ] उन्मार्ग, कुमार्गः 'पंथाउ हत्थभल्लं व ॥' (गा ५८५) । प्रकार (जीव ३) IV
उप्पहं नेति (निचू ३ से ४, २६; हेका | उप्पयण न [उत्पतन] ऊँचा जाना, उड्डयन उप्पज्ज प्रक [उत् + पद्] उत्पन्न होना ।
२५६) । जाइ वि [ यायिन् उलटे रास्ते (ठा १०; से ६, २४) । उप्पजति (कप्प)। वकृ. उप्पज्जत, उप्पज
जानेवाला, विपथ-गामी (ठा ४, ३)TV उप्पयण न [उत्प्लवन] जल को लाँघना, माण (से ८,५५, सम्म १३४; भगः विसे
उप्पा स्त्री देखो उप्पाय- उत्पाद (ठा १तैरना (से ५, ६०) ३३२२)
पत्र १६ ठा ५, ३-पत्र ३४६)।। उप्पयणी स्त्री [उत्पतनी] विद्या-विशेष (सूत्र उप्पड सक [उत् + पत्] उड़ना, ऊँचा
२, २, २७) ।
उप्पाइ वि [ उत्पादिन ] उत्पन्न होनेवाला जाना, कूदना (प्रामा)
(विसे २८१९)। उप्परि (अप) देखो उवरि (हे ४, ३३४, उप्पड [उत्पट] श्रीन्द्रिय जन्तु-विशेष, क्षुद्र पिंग)।
उप्पाइत्ता देखो उप्पाय = उत् + पादय ।। कीट-विशेष (राज)V उप्परिवाडि, डी स्त्री [उत्परिपाटि, टी]
उप्पाइत्तु वि [उत्पादयितु] उत्पादक, उत्पन्न उप्पडिअ देखो उप्पइअ (नाट)। उलटा क्रम, विपर्यास, विपर्ययः 'उप्परिवाड़ी
करनेवाला (ठा ७) उप्पण सक [ उत् + पू) धान्य वगैरह को | वहणे चाउम्मासा भवे लहुगा' (गच्छ १)।
| उप्पाइय न [औत्पातिक] भूकंप आदि सूप आदि से साफ-सुथरा करना। कर्म. 'साली | उप्परोप्पर अ [उपयु परि] ऊपर-ऊपर (स
उत्पातों का सूचक शास्त्र (सूत्र १, १२, ६)।
उप्पाइय वि [उत्पादित] उत्पन्न किया हुआ, वीही जवा य लुब्वंतु मलिज्जंतु उप्पणिज्जंतु | १४०)।
'उप्पाइयाविच्छिएणकोउहलत्ते (राय)। ये (पएह १, २)
उप्पल न [उत्पल] १ कमल, पद्म (गाया १,
१; भग)। २ विमान-विशेष (सम ३८)। उप्पणण न [उत्पवन सूप आदि से धान्य
| उप्पाइय वि [औत्पातिक] १ अस्वाभाविक,
कृत्रिमः 'उप्पाइयपव्वयं व चंकमत'। २ पाकवगैरह को साफ-सुथरा करना (दे १,१०३) ३ संख्या-विशेष, 'उप्पलंग' को चौरा . लाख
स्मिक, अकस्मात होनेवाला: 'उप्पाइया वाही' उप्पण्ण वि [उत्पन्न] उत्पन्न, संजात, उद्भूत
से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह (ठा २,
(राज)। ३ न. अनिष्ट-सूचक आकस्मिक उपद्रव, (भग नाट)। ४)। ४ सुगन्धि द्रव्य-विशेषः 'परमुप्पलगंधिए'
उत्प, 'भो भो नावियपुरिसा सकन्नधारा समुउप्पत्त वि [दे] १ गलित । २ विरक्त
(जं ३)। ५ पुं. परिव्राजक-विशेष (प्राचू | (षड् )
जया होह। दीसइ कयंतवयणं व भीममुप्पाइयं १)। ६ द्वीप-विशेष । ७ समुद्र-विशेष (पएण
१५)। "वेंटग पुं[वृन्तक] आजीविक उप्पत्ति वि [उत्पत्ति] उत्पत्ति, प्रादुर्भाव
जेए' (सुर १३, १८६)
उप्पाए (उव) मत का एक साधु-समाज (प्रौप)।
उप्पाएंत देखो उपाय = उत्+पादय। उप्पत्तिया स्त्री [औत्पत्तिकी] बुद्धि-विशेष, | उप्पलंग न [उत्पलाङ्क] संख्या-विशेष, 'हुहुय' उप्पाएत्तए)
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