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उद्देह-उद्धरय पाइअसहमण्णवो
१६१ उद्देह पुं [उद्देह] भगवान् महावीर का एक उद्धण वि [दे] उद्धत, अविनीत ( षड् )M (जी ५१); 'जेण उद्धरिया विजा, आगासगमा
गण-साधु समुदाय (ठा है; कप्प) उद्धत्थ वि [दे] विप्रलब्ध, वञ्चित (दे १, | महापरिएगाओ' (पावम) । ३ आकृष्ट, खींच। उद्देहलिया स्त्री [उद्देहलिका] वनस्पति-विशेष | ६६)।
हुआ। ४ निष्कासित, बाहर निकाला हुआ; (राज)IV
उद्धदेहिय न [और्वदेहिक] अग्नि-संस्कार 'उद्धरियसव्वसल्ल-' (पंचा १६)। ५ जीर्ण उद्देहिया ।स्रो [दे] उपदेहिका, दीमक, | आदि अन्त्येष्टि क्रिगा (स १०६)
वस्तु का परिष्कार करना; 'जिणमंदिरं न उद्देही त्रीन्द्रिय जन्तु विशेष (जी १६
उद्धम सक [उद्+ हन] १ शंख वगैरह । उद्धरिय' (विवे १३३) ।। स ४३५; प्रोष ३२३); 'उवदेहीइ उद्देही'
फूकना, वायु भरना। २ ऊँचा फेंकना, | उद्धरिअ वि [दे] अदित, विनाशित (षड् )।' (दे १,६३)V
उड़ाना । कवकृ. उद्धम्मंताणं संखाणं सिंगाणं उद्धल [दे] दोनों तरफ को अप्रवृत्ति (षड् )। उद्दोहग वि [उद्घोहक] घातक, हिंसक |
संखियाणं खरमुहीणं' (राय); 'पायालसहस्स- उद्धव [उद्धव] ऊधो, श्रीकृष्ण का चाचा, (पएह १, ३) IV
वायवसवेगसलिलउद्धम्ममाणदगरयरयंधकार मित्र और भक्त (रुक्मि ४६) । उद्ध, देखो उड्ढ़ (से ३, ३३; पि ८३; महा:
(रयरणागरसागर)' (पएह १, ३, प्रौप) IVउद्धव वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुपा (दे १, हे २, ५६ ठा ३, २)।
उद्धर सक [उद् + ह] १ फँसे हुए को उद्धअ वि [उद्धत] १ उन्मत्त (से ४, १३,
निकालना, ऊपर उठाना ।२ उन्मूलन करना। उद्धविअ वि [दे] अघित, पूजित (दे १, पान)। २ गर्वित, अभिमानी (भग ११,
३ दूर करना । ४ खोंचना । ५ जीर्ण मन्दिर १०७) १०)। ३ उत्पाटित (णाया १, १)। ४ |
वगैरह का परिष्कार-संस्कार करना। ६ उद्धा । सक [उद् + धाव] १ दौड़ना, अतिप्रबल; 'उद्धततमंधकार-' (परह १,३) किसी ग्रंथ या लेख के अंश-विशेष को दूसरी
| उद्धाअ वेग से जाना। २ ऊँचे जाना। उद्धअ देखो उद्धरिअ = उद्धृतः ‘पावल्लेण पुस्तक या लेख में अविकल नकल करना।
उद्धाइ (पि १६५) । वकृ. उद्धंत, उद्धाअंत, उवेच्च व उद्धयपयधारणा उ उद्धारों' (वव भवि. उद्धरिस्सइ (स ५६६)। वकृ. पइनगरं
उद्धायमाण (कप्पा से ६, ६६, १३, ६१, १०)/
पइगामं पायं जिणमंदिराई पूयंतो, जिन्नाई प्रौप) उद्धअवि [दे] शान्त, ठंढा (षड् )
उद्धरंतो' (सुपा २२४);
उद्धाअ अक [ ऊर्ध्याय ] ऊँचा होना। वकृ. उद्धंत देखो उद्धा ।
'जयइ धरमुद्धरंतो भरणीसारियमुहग्गचलणेण। उद्धाअमाण (से १३, ६१) । उद्धंस सक [ उत् + धृष्] १ मारना। २
रिणयदेहेण करेण व पंचंगुलिणा महाकुम्मो। उद्धाअ वि [ऊद्धाव] उद्घावित, ऊँचा गया आक्रोश करना, गाली देना । उद्धंसेइ (भग
(गउड)। हुआः 'छिएणकडए वहंत उद्घारिणअत्तगरुड१५) । उद्धं सेंति (गाया १, १६)IV
संकृ. उद्धरिउं, उद्धरिऊण, उद्धरित्ता, मग्गिप्रसिहरे' (से ६, ३६)।उद्धंस सक [ उद् + ध्वंस् ] विनाश करना।
उद्धरिन्तु, उद्धटुटु (पंचा १६ प्रारू); उद्धाअ ' [दे] १ विषमोन्नत प्रदेश । २ संकृ. उद्धंसिऊण (स ३६२)।
'तं लयं सव्वसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलया' समूह । ३ वि. थका हुआ, श्रान्त (दे १, उद्धंसण न [उद्धर्षण] १ आक्रोश, निर्भर्त्सन । (उत्त २३; पंचा १६); 'बाहू उद्धट्टु कक्ख
टूटु कक्ख- १२४) २ वध, हिंसा (राज)।
मणध्वजे (सूत्र १, ४); 'तसे पारणे उद्धटु उद्धाइअ वि [उद्धावित] १ फैला हुआ, उर्द्धसणा स्त्री [उद्धर्षणा] ऊपर देखो (ोध पादं रीइज्जा' (आचा २, ३, १, ४) iv विस्तीर्ण, प्रसृत (से ३, ५२)। २ ऊँचा ३८ भा); 'उच्चावयाहिं उद्धं पणाहि उद्धंसेंति, उद्धर (अप) देखो उद्धर (भवि) ।। दौड़ा हुआ (से २, २२) (गाया १, १६)
उद्धरण न [उद्धरण] १ ऊपर उठाना। २ | उद्धार पुं [उद्धार] १ त्राण, रक्षण (कुमा)। उद्धंसिय वि [उद्धर्षित] आष्ट, जिसपर फंसे हुए को निकालना (गउड); 'दौणुद्धरणम्मि | २ ऋण देना, उधार देना (सुपा ५६७; धा
आक्रोश किया गया हो वह (निचू ४) धणं न पउत्त' (विवे १३५) । ३ उन्मूलन।। १४)। ३ अपहरण (अण) । ४ अपवाद उद्धच्छवि वि [दे] विसंवादित, अप्रमाणित ४ अपनयन (सूत्र १, ४, ६)IV
(राज)। ५ धारणा, पढ़े हुए पाठ को नहीं (दे १, ११४)IV
उद्धरण वि [दे] उच्छिष्ट, जूठा (दे १, १९६) भूलनाः 'पाबल्लेण उवेच च व उद्धयपयधारणा उद्धच्छविअ वि[दे] सज्जित, तैयार (दे | उद्धरिअ वि [उद्धृत] १ उत्पाटित, उत्क्षिप्तः | उ उद्धारो' (वव १०)। 'पलिओवम न १, ११६)
'हक्खुत्तं उच्छूढं उक्खित्त-उप्पाडिनाई उद्धरिश्र | [पल्योपम] समय का एक परिमारण उद्धच्छिअ वि [दे] निषिद्ध, प्रतिषिद्ध (दे (पान) । २ किसी ग्रन्थ या लेख के अंश- (अणु) । समय पुं [°समय] समय-विशेष १, १११)।
विशेष को दूसरे पुस्तक या लेख में अविकल (अणु) । सागरोवम न [°सागरोपम] उद्धटू टु देखो उद्धर । नकल कर देना
समय का एक दीर्घ परिमाण (मणु)।V उद्धड वि [उद्धृत] उठा कर रखा हुआ 'एसो जीववियारो, संखेरूईण जाणणा-हे। उद्धरय वि [उद्धारक] उद्धार-कारक (कुप्र (धर्म ३)।
संखित्तो उद्धरिमो, रुंदामो सुय-समुद्दामो। २)।
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