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पाइअसद्दमहण्णवो
असिइ-असोग पित्त] (से ३, ४२)। हर वि [धर] असील वि [अशील] १ दुःशील, असदा- | असुह न [अशुभ] १ अमंगल, अनिष्ट (सुर तलवार-धारक, योद्धा (से ६,१८)। हारा चारी (पएह १, २)। २ न. असदाचार, । ४, १६३) । २ पाप-कर्म (ठा ४, ४)। ३ देखो धारा (उव)।
अब्रह्मचर्य । मंत वि [वत् ] १ अब्रह्मचारी वि. खराब, असुन्दर (जीव १; कुमा)। असिइ (अप) देखो असीइ (सण)। (मोघ ७७७)। २ असंयत (सून १, ७)। । णाम न [नामन] अशुभ फल देनेवाला असिण न [अशन] भोजन, खाना; 'अग्ग- असु पुं. ब. [असु] १ प्राण (स ३८३)। कर्म-विशेष (सम ६७)। पिंडं परिदृविजमाणं पेहाए, पुरा असिणा इना २ न. चित्त । ३ ताप (प्रातः वृष ५१)। असुह न [असुख दुःख (ठा ३, ३)। प्रवहारा इवा (पाचा २, १, ५, १)। असु देखो अंसु (प्राप्र)।
असूअ सक[असूय् ] असूया करना । असूअसित्थ न [असिक्थ आटा लगे हुए हाथ असुइ वि [अशुचि १ अपवित्र, अस्वच्छ, एहि (मै ७)। या बर्तन का कपड़े से छना हुआ धोवन | मलिन (प्रौपः वव ३)। २ न. अमेध्य, विष्ठा | असूया स्त्री [असूचा] १ सूचना का प्रभाव। (पडि)। (ठा ; प्रासू १६६)।
२ दूसरे के दोषों को न कह कर अपना ही असिद्ध वि [असिद्ध] १ अनिष्पन्न । २ तर्क- असुइ वि [अश्रुति] शास्त्रश्रवण-रहित (भग | दोष कहना (निचू १०)। शास्त्र प्रसिद्ध दुष्ट हेतु (विसे २८२४)।
असूया स्त्री [असूया] असूया, असहिष्णुता असिय वि [अशित] भुक्त, खादित (पामः | असुईकय वि [अशुचीकृत अपवित्र किया । (दस)। सुपा २१२)।
हुआ (उप ७२८ टी)।
| असूरिय वि [असूर्य] १ सूर्यरहित, अन्धअसिय वि [असित] १ कृष्ण, श्वेतरहित | असुग पुं[असुक] देखो असु = असु (हे १, कारमय स्थान । २ पुं. नरक-स्थान (सूम १, (पान)। २ अशुभ (विसे)। ३ प्रबद्ध, प्र. १७७)। यन्त्रित (सूत्र १, २, १); 'सिया एगे अणु- | असुज्झत वि [अदृश्यमान नहीं दिखाता असेव्व देखो असिव (प्राप्र)। गच्छंति, असिया एगे अणुगच्छति' (प्राचा)। हुआ, 'अन्नपि जं असुज्झतं । भुंजतएण क्ख पुं [क्ष यक्ष-विशेष (सण)। रत्ति' (पउम १०३, २५)।
(गउड)। असिय न [दे] दात्र, दाँती (दे १, १४)। असुणि वि [अश्रोत न सुननेवाला, 'अलि
असेस वि [अशेष] निःशेष, सर्व (प्राप)। असियव्व देखो अस = अश् ।
यपयंपिरि अणिमित्तकोवणे असुरिण सुणसु मह वयणं' (वजा ७२)।
| असो)[अशोक] १ देव-विशेष (राय असिलेसा स्त्री [अश्लेषा] नक्षत्र-विशेष
असोग ८१)। २ पुंन. एक देवविमान असुद्ध वि [अशुद्ध] १ अस्वच्छ, मलिन । (सम ११)। २ न. मैला, अशुचि । विसोय पुं[विशो
(देवेन्द्र १४२) । ३ शक्र आदि इन्द्रों का एक असिलोग पुं [अश्लोक] प्रकीति, अजस
प्राभाव्य विमान (देवेन्द्र २६३)। वडिंसय धक] भंगी, मेहतर (सुर १६, १६५)। (सम १२)।
पुंन [वतंसक सौधर्म देवलोक का एक असुभ देखो असुह = अशुभ (सम ६७ भग)। असिव न [अशिव १ विनाश । २ असुख ।
विमान (राय ५६)। असुय वि [अश्रुत न सुना हुआ (ठा ४, ३ देवतादि कृत उपद्रव (प्रोध ७)। ४ मारी ४)। णिस्सिय न [निश्रित शास्त्र-श्रवण
असोग पुं [अशोक १ सुप्रसिद्ध वृक्ष-विशेष रोग (वव ४)। के बिना ही होनेवाली बुद्धि-ज्ञान (रादि)।
(प्रौप)। २ महाग्रह-विशेष (ठा २, ३)। असिविण पुं [अस्वप्न ] देव, देवता | पुव्व वि [पूर्व] पहले कभी नहीं सुना
हरा रंग (राय)। ४ भगवान् मल्लिनाथ का (प्रामा)। हुपा ( महा; गाया १,१; पउम ६५,१४)।
चैत्य-वृक्ष (सम १५२) । ५ देव-विशेष (जीव असिव्व देखो असिव (वव ७ प्राप्र)।
३)। ६ न. तीर्थ-विशेष (ती १०)। ७ असुय वि [असुत] पुत्ररहित (उत्त २)। असिसुई स्त्री [अशिश्वी] शिशुरहित स्त्री
यक्ष-विशेष (विपा १, ३)। ८ वि. शोक(प्राकृ २८)। असुर ' [असुर] १ दैत्य, दानव (पान)।
रहित । चंद पुं[चन्द्र] १ राजा श्रेणिक २ देवजाति-विशेष, भवनपति और व्यन्तर असिह वि [अशिख] शिखारहित (वव ४)।
का पुत्र, राजा कोणिक (आवम)। २ एक देवों की जाति (पएह १, ४)। ३ दास-स्था- प्रसिद्ध जैनाचार्य (साधं ७७)। ललिय पुं असीइ स्त्री [अशीति संख्या-विशेष, अस्सी, नीय देव (आउ ३६)। कुमार पुं [कुमार]
[°ललित] चतुर्थ बलदेव का पूर्व-जन्मीय ८० (सम ८८)। म वि [तम अस्सीवाँ,
भवनपति देवों की एक अवान्तर जाति (ठा नाम (सम १५३) । वण न [°वन] अशोक ८० वाँ (पउम ८०, ७४)।
१, १; महा)। राय पुं [राज] असुरों वृक्षों वाला वन (भग)। वणिया स्त्री असीइग वि [अशीतिक] अस्सी वर्ष की का इन्द्र (पि ४००)। वंदि [बन्दिन] [वनिका ] अशोक वृक्ष वाला बगीचा उम्र वाला (तंदु १७)। राक्षस (से ६५०)।
(णाया १, १६)। सिरि [श्री] इस असीम वि [असीमन्] निस्सीम, 'असीमंत- असुरिंद ' [असुरेन्द्र] असुरों का राजा, - नाम का एक प्रख्यात राजा, सम्राट अशोक भत्तिराएण (उप ७२८ टो)।
इन्द्र-विशेष (णाया १, ८; सुपा ७७)। (विसे ८६२)।
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