________________
भामा आराहेत्ता, आरा संक. आरा- आपलङ्गन करना । प्रारुण आ + श्लिष् ]
आरभड-आरूढ
पाइअसहमहण्णवो आरभड न [आरभट] १ नृत्य का एक भेद आराडि स्त्री [आराटि] चीत्कार, चिल्लाहट | आरिय वि [आकारित] आहूत, बुलाया (ठा ४, ४) । २ इस नाम का एक मुहूर्तः । (सुख २, १५)।
हुआः 'प्रारिप्रो अागारिनो वा एगट्ठा' 'छच्चेव य आरभडो सोमित्तो
आराडी स्त्री [दे] देखो आरडिअ (दे १, (आव) ।। पंचभंगुलो होई (गणि)।
आरिया देखो अजा = आर्या (प्रारू)। आरभड न [आरभट एक तरह की नाट्य- आराम पुं [आराम] बगीचा, उपवन (औप; | आरिल्ल वि [दे] अर्वाक् उत्पन्न, पहले जो विधि (राय ५४) । 'भसोल न [भसोल] पाया १,१)।
उत्पन्न हुआ हो (दे १, ६३) । नाट्यविधि-विशेष (राय ५४)।' आराम पुंन [आराम] बगीचा, उपवनः 'पारा- आरिस वि [आर्ष] ऋषि-सम्बन्धी (कुमा) । आरभडा स्त्री [आरभटा] प्रतिलेखना-विशेष माणी (आचा २, १०, २) ।
आरिहय देखो आरहंत (दस १, १ टी)V (ोघ १६२ भा)।
आरामिअ पुं[आरामिक] माली (कुमा) आरुग्ग देखो आरोग्ग = प्रारोग्यः 'पारुग्गआरभिय न [आरभित] नाट्यविधि-विशेष आराव पुं [आराव] शब्द, आवाज (स ५७७; बोहिलाभं समाहिवरमुत्तमं दितु' (पडि)। (राय) IV गउड)।
आरु? वि [आरुष्ट] क्रुद्ध, रुष्ट (पउम ५३, आरय वि आरत] १ उपरत । २ अपगत आराह सक [आ + राधय् ] १ सेवा १४१) (सून १, १५)
करना, भक्ति करना । २ ठीक-ठीक पालन | आरुण्ण (अप ) सक [आ + श्लिष् ] आरय वि [आऽरत] उपरत, सर्वथा निवृत्त
करना । पाराहइ, पाराहेइ (महा: भग)। आलिङ्गन करना । पारुण्णइ (प्राकृ ११६) (सूत्र १, ४, १, १, १, १०, १३)।
वकृ. आराहंत (रयण ७०)। संकृ. आरा- आरुभ देखो आरुह =ा + रुह । वकृ. आरव पुं [आरव] शब्द, आवाज, ध्वनि
हित्ता, आराहेत्ता, आराहिऊण (कप्पा आरुभमाण (कस)IV (सरण)
भगः महा)। हेकृ. आराहिङ (महा) IV आरुवणा देखो आरोवणा (विसे २६२८) आरव पुं [आरब] इस नाम का एक प्रसिद्ध आराह बि [आराध्य पाराधन-योग्य (पारा |
आरुस सक [आ + रुष् ] क्रोध करना, रोष म्लेच्छ-देश (पएह १, १) ।
११)।
। करना । संक. आरुस्स (सूत्र १,५)V आरव । वि[आरब अरब देश में उत्पन्न,
आराहग वि [आराधक] १ आराधन करने- आरुसिय वि [आरुष्ट] क्रुद्ध, कुपित (गाया आरवगअरब देश का निवासी । स्त्री. वी वाला। २ मोक्ष का साधक (भग ३,१) १,२) । (गाया १, १) ।
आराहण न [आराधन] १ सेवना (पारा आरुह सक [आ + रुह. ] ऊपर चढ़ना, आरविंद वि [आरविन्द ] कमल-सम्बन्धी ११)। २ अनशन (राज)।
ऊपर बैठना। आरुहइ (षड् ; महा)। (गउड)।
आराहणा स्त्री [आराधना] १ सेवा, भक्ति। प्रारुहेइ (भग)। वकृ. आरुहंत, आरुहमाण आरस सक [आ + रस् ] चिल्लाना, बूम | २ परिपालन (णाया १, १२, पंचा ७)। (से ५, १६; श्रा३६)। संकृ. आरुहिऊण, मारना । वकृ. आरसंत (उत्त १९)। हेकृ. ३ मोक्ष-मार्ग के अनुकूल वर्तन (पक्खि)। आरुहिय (महा नाट)। हेकृ. आरुहिउं आरसिङ (काल) IV
४ जिसका पाराधन किया जाय वह (पारा| (महा) आरसिय न [आरसित] १ चिल्लाहट: बूम । | १)V
आरुह वि [आरुह] उत्पन्न, उद्भूत, जातः २ चिल्लाया हुआ (विपा १, २) । आराहणा स्त्री [आराधना] अावश्यक, साम- 'गामारुह म्हि गामे, आरसिय पुं [आदर्श दर्पण (कहावली)। यिक आदि षट्-कर्म (अणु ३१)IV
____ वसामि नअरट्टिई ण माणामि ।
णापरिमाणं पइणो हरेमि आरह देखो आरभ । प्रारहइ (षड् ) । संकृ.| आराहणा स्ना [आराधना] भाषा का एक
जा होमि सा होमि' (गा ७०५)। प्रकार (दस ७) iV आरहिअ (अभि६०)।
आरुहण न [आरोहण] ऊपर बैठना (णाया आरहंत । वि [आर्हत] अर्हन का, जिन- आराहिय वि [आराधित] १ सेवित, परिआरहतिय । देव सम्बन्धीः 'प्रारहंतेहिं (दस
१, २, गा ६३०) सुपा २०३; विपा १, ७ पालित (सम ७०)। १ अनुरूप, योग्य (स
गउड) ६, ४, ४ पव २----गाथा १७०) V ६२३)। आरा स्त्री [आरा] लोहे की सलाई, पैने में | आरिट वि [दे] यात, गत, गुजरा हुआ
आरुहण न [आरोहण] पारोपण, ऊपर
चढ़ाना (पव १५५; राय १०६) डाली जाती लोहे की खीली (पएह १,१; (षड्)V | आरिय न [आत मागमन (राय १०१)।
आरुहिय वि [आरोपित] १ स्थापित । २ स ३८)
| ऊपर बैठाया हुआ (से ८, १३)V आरा म [आरात् ] १ अर्वाक् , पहले (दे | आरिय देखो अजायं। (भगः षड् |
आरुहियो वि [आरूढा १ऊपर चढ़ा हया १, ६३) । २ पूर्व-भाग (विसे १७४०) ।। सुपा १२८; पउम १४, ३०; सुर ८, ९३)M
आरूढ (महा)। २ कृत, विहितः 'तीए आराइअ वि दे] १ गृहीत, स्वीकृत । २ | आरिय वि [आरित] सेवित, 'आरिमो पाय- पुरमो पइराणा आरुहिया दुक्करा मए सामि' प्राप्त (दे १,७०)।
रिमो सेवितो वा एगट्ठत्ति' (माचू)।V (पउम ८, १६१)IV
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org