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उक्कुज्ज-उक्खंडिअ
पाइअसहमहण्णवो उक्कुज प्रक [उत् + कुब्ज्] ऊँचा होकर कत्थइ सुवरणं, कत्थई रुप्पयं, कत्थइ मरिण- (पएह १, १)। २ वि. जोर से चिल्लानेनीचा होना । संकृ. उक्कुन्जिय (प्राचा)। मोत्तियपवालाई' (महा)।
वाला (राज)। उकुन्जिय न [उत्कूजित] अव्यक्त शब्द
उक्कोट्टिय वि [दे] अवरोध-रहित किया उक्कोसण न [उत्क्रोशन] १ क्रन्दन । २
हुमा, घेरा उठाया हुअा (स ६३९)। निभर्सन, तिरस्कार; उक्कुट न [उत्कुष्ट] वनस्पति का कूटा हुमा उकोड न [दे] राज-कुल में दातव्य द्रव्य, 'उकोसणतजगताडणामो चूर्ण (प्राचा निचू १, ४)। राजा आदि को दिया जाता उपहार (वव
अवमाणहीलणामो य। उक्कुट वि [उत्कृष्ट] ऊँचे स्वर से प्राकुष्ट १ टी)।
मुणिणो मुरिणयपरभवा उक्कोडा स्त्री [दे] घूस, रिशवत (दे १, १२;
दढप्पहारिव्व विसहंति' (उव)। पराह १, ३, विपा १, १)।
उक्कोसा स्त्री [उत्कोशा] कोशानामक एक उक्कुडुग । वि [उत्कुटुक] प्रासन-विशेष,
प्रसिद्ध वेश्या (धर्म वि १७)। उक्कुड्य , निषद्या-विशेष (भग ७, ६; भोध १५६ भाः गाया १,१)। स्त्री. उक्कुडुई | वाला, घुसखोर (णाया १, १; प्रौप)। | उक्कोसिअ वि [उस्कोशित] भत्सित, (ठा ५, १)। सिणिय वि [rसनिक] उक्कोडी स्त्री [दे] प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि (दे
तिरस्कृत, दुतकारा हुमा (उप पू ७८)। उत्कुटुक-प्रासन से स्थित (ठा ५, १) १,६४)।
उक्कोसिअवि[उत्कर्षिन] देखो उक्कोस = उक्कुद प्रक [उत् + कू] कूदना, उछलना। उक्कोय वि [उत्कोप प्रखर, उत्कट (सण) स्कृष्ट (कप्पः भत्त ३७)। उकुद्दइ (उत २७, ५)।
उक्कोयण देखो उक्कोवण (भवि)। उक्कोसिअ [उत्कौशिक] १ गोत्र-विशेष उक्कुरुआ देखो उक्कुरुडिया (ती ११)। उक्कोया स्त्री [उत्कोचा] १ घूस, रिशवत । का प्रवर्तक एक ऋषि । २ न. गोत्र-विशेष; उक्कुरुड पुं देखो उक्कुरुडी (कुप्र ५५)। २ मूर्ख को ठगने में प्रवृत्त धूर्त पुरुष का, 'रस्स एं प्रज्जवइरसेणस्स उक्कोपियगोत्तस्स उक्कु रुड पुं[दे] राशि, ढेर (दे १, ११०)।
समीपस्थ विचक्षण पुरुष के भय से थोड़ी (कप्प)। उक्कुरुडिगा। स्त्री [दे] पूरा, कूड़ा डालने
देर के लिए अपने कार्य को स्थगित करना | उक्कोसिअ वि [दे] पुरस्कृत, प्रागे किया उक्कुरुडिया की जगह (उव ५६३ टी विपा (राज)।
हुमा (षड्)। उक्कुरुडी ) १, १, णाया १, २,दे १, उक्कोल पुं[दे] घाम, धूप, गरमो ( दे १, उक्कोसिया स्त्री [उत्कृष्टि] उत्कर्ष, माधिक्य
८७)। उक्कुस सक [गम] जाना, गमन करना। उक्कोवण न [उक्कोपन] उद्दीपन, उत्तेजन; उक्कोस्स देखो उक्कोस = उत्कृष्ट (विसे उक्कुसइ (हे ४, १६२)। 'मयणुक्कोवणे' (भवि)।
५८७)। उक्कुस वि [उत्कृष्ट] उत्तम, श्रेष्ठ (कुमा)। उक्कोविअ वि[उत्कोपित अत्यंत कुद्ध किया | उक्ख सक [उक्ष 1 सींचना (सूम २, उक्कूइय न [उत्कूजित] अव्यक्त महा-ध्वनि हुमा (उप पृ ७८)।
२, ५५)। (पएह १,१)।
उक्कोस सक [उत् + क्रुश] १ रोना, | उक्ख [उक्ष] १ संबन्ध (राज)। २ जैन उक्कूल वि [उत्कूल १ सन्मार्ग से भ्रष्ट
चिल्लाना । २ तिरस्कार करना। वकृ. साध्वियों के पहनने के वन-विशेष का एक करनेवाला। २ किनारे से बाहर का। ३ न. उक्कोसंत (राज)।
अंश (बह १)। चोरी (पएह १, ३)।
उक्कोस वि [उत्कर्ष] उत्कृष्ट, प्रधान, मुख्य | उक्ख देखो उच्छ = उक्षन (पाम)। उक्कूब प्रक [उत् + कूज ] भव्यक्त भावाब
(पंचा १, २)।
उक्खइअ वि [उत्खचित व्याप्त, भरा हुमा करना, चिल्लाना। वक. उक्कूवमाण उक्कोस पु [उत्कर्ष] १ प्रकर्ष, अतिशयः । (से १, ३३)। (विपा १, निर ३, १)।
'उक्कोसजहन्ने अंतमुहत्तं चिय जियंति (जी | उक्खंड सक [उत् + खण्डय ] तोड़ना, उक्केर पुं[उत्कर] १ समूह, राशि, ढेर | ३८ पोप) । २ गर्व, अभिमान (सूम १, २, | टुकड़ा करना । वकृ. उक्खंडत (नाट)।(कुमाः महा)। २ करण-विशेष, कर्मों की| २. २९: सम ७१ ठा ४.४-पत्र २७४।
२,२६सम ७१, ठा ४,४-पत्र २७४) । उक्खं ड दे] १ संघात, समूह । २ स्थपुट, स्थित्यादि को बढ़ाना (विसे २५१४)। ३ उक्कोस वि [उत्कृष्ट] उत्कृष्ट, अधिक से | विषमोलत प्रदेश (दे १, १२६)। मिन्न, एरण्ड के बीज की तरह जो अलग
अधिक; 'सुरनेरइयाण ठिई उकोसा सागराणि
| उक्खंडण न [उत्खण्डन] उत्कर्तन, विच्छेदन किया गया हो वह (राज)।
तित्तीस' (जी ३६); 'कोसतिगं च मणुस्सा (विक २८)। उक्केर पुं[दे] उपहार, भेंट (दे १, ६६)। उकोससरीरमाणेणं' (जी ३२); 'तमो वियड
उक्खंडिअ वि [उत्खण्डित] खण्डित, छिन्न उक्केल्लाविय वि [दे] उकेनाया हुमा, तीनो पडिगाहित्तए, तं जहा-उक्कोसा, खुलवाया हुमा: 'राइणा उक्केलियाई चोल्ल
मज्झिमा, जहएणा' (ठा ३; उव)। उक्खंडिअ वि [दे] प्राकान्त, दवाया हुमा याई, निरूपियाई समन्तमो, जाब विट्ठ | उक्कोस [उत्क्रोश १ कुरर, पशि-विशेष (से १, ११२)।
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