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उग्घाड-उच्चय
पाइअसहमहण्णवो
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उग्घाड सक [ उद् + घाटय् ] १ खोलना। उग्घुस सक [मृज् ] साफ करना, मार्जन स्त्री [विचिका] ऊँचा-नीचा करना, जैसे२ प्रकट करना । ३ बाहर करना । उग्घाडइ करना । उग्घुसइ (हे ४, १०५)।
तैसे रखनाः (हे ४, ३३)। उग्घाडए (महा)। संकृ उग्घुस सक [उद् + घुष] देखो उग्घोस। 'कह तंपि तुइ ण णानं जह सा उग्घाडिऊण (महा)। कृ. उग्घाडिअव्व संकृ. उग्घुसिअ (नाट)।
प्रासंदिप्राण बहुप्राणं। (श्रा १६)। कवकृ. उग्घाडिज्जत (से ५, उग्घुसिअ वि [मृष्ट] माजित, साफ किया | १२)। हुआ (कुमा)।
दसणलेहला पडिया' उग्घाड पुं[उद्घाट] प्रकट, प्रकाशः “किंतु उग्घोस सक [ उद + घोषय ] घोषणा
(गा ६६७)। कमो बहुएहि उग्घाडो निययकम्माणं' (सिरि
करना, ढिढोरा पिटवाना, जाहिर करना। |वाय पुं [वाद] प्रशंसा, श्लाघा (उप ७२८ ५२८)।.
उग्घोसेह (विपा १, १) । वकृ. उग्घोसेमाण | टी) । देखो उच्चा।। उग्घाड देखो उग्घाड = उद् + घाट्य । हेकृ.
(विपा १, १; पाया १, ५)। कवकृ. | उच्चइअ वि [उच्चयित] एकत्रीकृत, इकट्ठा 'तं जिणहरस्स दारं केरणवि नो सक्कियं
उग्घोसिज्जमाग (विपा १, २ ।। __ किया हुआ (काल)। उघाडेउँ' (सिरि ५२८) ।
उग्घोस पुं [उद्घोष] नीचे देखो (स्वप्न | उच्चंडिय वि [दे] ऊँचा चढ़ाया हुआ (हम्मीर उग्घाड वि [उद्घाट] १ खुला हुआ, २१)IV
२८)।V अनाच्छादित (पउम ३६, १०७)। २ थोड़ा
उग्घोसणा स्त्री उद्घोषणा] डुग्गी पिटवाना, उच्चंतय पु [उच्चन्तग] दन्त-रोग, दाँत में बन्द किया हुआः 'उग्घाडकवाडउग्घाडणाए'
ढिंढोरा पिटवा कर जाहिर करना (विपा होनेवाला रोग-विशेष (राज)। (प्राव ४)। ३ व्यक्त, प्रकट । ४ परिपूर्ण,
उच्चपिअ विदे] १ दीर्घ, लम्बा, आयत (दे अन्यूनः एत्थंतरम्मि उग्घाडपोरिसोसूयगो उग्घोसिय वि [मार्जित] साफ किया हुआ,
| १,११६)। २ आक्रान्त, दबाया हुआ, रोंदा बली पत्तो' (सुपा ६७) ।
'उग्धोसियसुनिम्मलं व आयसमंडलतलं' (पएह । हुमाः 'सीसं उच्चपिन' (तंदु)।
२, ५)। उग्घाडण न [उद्घाटन] १ खोलना (पाव
उच्चडिअ वि [दे] उत्क्षिप्त, ऊँचा फेंका हुआ उग्घोसिय वि [उद्घोषित] जाहिर किया | ४)। २ बाहर करना, बाहर निकालना (उप पृ ३६७) हुआ, घोषित (भवि)।
उच्चत्त वि [उत्त्यक्त] पतित, त्यक्त (पास) IV उग्घाडणा स्त्री [उद्घाटना] ऊपर देखो उघूण वि [दे] पूर्ण, भरपूर ( षड्)।
उच्चत्तवरत्त न [दे] १ दोनों तरफ का स्थूल (प्राव ४) । उचिय वि [उचित योग्य, लायक, अनुरूप
भाग। २ अनियमित भ्रमण, अव्यवस्थित उग्घाडिअ वि [उद्घाटित] १ खुला हुआ। (कुमाः महा)। ण्णु वि [s] विवेकी
विवर्तन (दे १, १३६)। ३ दोनों तरफ से (उप ७६८ टी)। २ प्रकटित, प्रकाशित (से २, ३७)
ऊँचा-नीचा करना (पान) उग्घायण न [उद्घातन] १ नाश, विनाश
उच्च न [दे] नाभि-तल (दे १,८६) । | उच्चत्थ वि [दे] दृढ़, मजबूत (दे १, ६७)। (प्राचा)। २ पूज्य-स्थान, उत्तम जगह । ३
उच्च । वि [उच्च, क, उच्चस्] १ ऊँचा उच्चदिअ वि [दे] मुषित, चुराया हुआ
| उच्चअ (कुमा)। २ उत्तम, उत्कृष्ट (ह २, । (षड) IV सरोवर में जाने का मार्ग (प्राचा २, ३)
१५४ सूत्र १, १०)। च्छंद वि उग्घार पुं [उद्घार] सिञ्चन, छिड़काव
उच्चप्प वि [दे] प्रारूढ़, ऊपर बैठा हुआ (दे [च्छन्दस् ] स्वैर, स्वेच्छाचारी (पराह 'विरिणतरुहिरुग्धारं निवडियो धरणिवट्टे
१, १००)। १,२)। णागरी देखो 'नागरी (कप्प)। (स ५६८)।
त्त न [व] १ ऊँचाई (सम १२ जी २८)।
उञ्चय सक [उत् + त्यज ] त्याग देना. उग्घिट। वि [उघृष्ट] संघट, 'नमिरसुर- २ उत्तमता (ठा ४,१)। त्तभयग, त्तभ
छोड़ देना । कृ. उञ्चयणिज (पउम ६६, उग्घु? किरोडुग्घिट्ठपायारवि' (लहुअ ४;
यय पुं [त्वभृतक] जिससे समय और से ६, ८०)।
वेतन का इकरार कर यथासमय नियत काम उच्चय पुं [उच्चय] १ समूह, राशिः 'रयरणोउग्घुट्ठ वि [उद्देष्ट] घोषित, उद्घोषित (सुर लिया जाय वह नौकर (राजा ठा ४, १)। च्चयं विसालं' (सुपा ३४ कप्प)। २ ऊँचा १०, १४सण); 'अमरवहुग्घुट्ठजयजयारवं' 'त्तरिया स्त्री [तरिका] लिपि-विशेष ढेर करना (भग ८, ६)। ३ नीवी, स्त्री के (महा)।
(सम ३५) । थवणय न [स्थापनक] कटी-वस्त्र की नाड़ी (पास)। बंध पुं उग्घुट वि [दे] उत्प्रोञ्छित, लुप्त , दूरीकृत, लम्बगोलाकार वस्तु-विशेष, 'धएणस्स णं
[°बन्ध] बन्ध-विशेष, ऊपर ऊपर रख कर विनाशित (दे १, ६६); 'उरघालिरवेणीमुह- अपगारस्स गीवाए अयमेयारूवे तवरूवलावन्ने
चीजों को बाँधना (भग ८, ६) थणलग्गुग्घुट्ठमहिरा जगप्रसुमा' ( से ११, होत्था, से जहानामए करगगोवा इवा कुंडिया- | उच्चय पुं[अवचय] इकट्ठा करना, एकत्री१०२)
गीवा इवा उच्चत्थवणए इवा' (अनु)। वचिआ, करण (दे २, ५६)।
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