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पाइअसद्दमण्णवो
उत्तण-उत्तर
उत्तण वि [उत्तृण] तृणवाली जमीन, | उत्तम्मिअ वि [उत्तान्त] खिन्न, दिलगीर (जं ४)। कोडि स्त्री [कोटि संगीतशास्त्र'खित्तखिलभूमिवल्लराई उत्तणघडसं कडाई (दे १, १०२; पात्र)
प्रसिद्ध गान्धार-ग्राम की एक मूच्र्छना (ठा डझंतु' (पएह १, १)।।
उत्तर प्रक [उत् + तृ] १ बाहर निकलना । ७)। "गंधारा स्त्री [गान्धारा] देखो उत्तणुअ वि [उत्तनुक] अभिमानी, गर्विष्ठ २ सक. पार करना। उत्तरिस्सामो (स पूर्वोक्त अथं (ठा ७)। गुण पुं [गुण] (पाप)। १०१)। वकृ. उत्तरंतः
शाखा गुण, अवान्तर गुण (भग ७, ३)। उत्तत्त विउत्ता] अति-तप्त, बहुत गरम | 'पेच्छति प्रणिमिसच्छा पहिला
'चावाला स्त्री [चावाला] नगरी-विशेष (सुपा ३७)
हलिअस्स पिट्ठपंडुरिअं । (प्रावम)। चूल[°चूड] गुरु-वन्दन का एक उत्तत्त वि [दे] अव्यासित, प्रारूढ़ (षड्) धूअं दुद्धसमुदुत्तरंतलच्छिं
दोष, गुरु को वन्दन कर बड़े आवाज से 'मत्थउत्तत्थ वि [उत्वस्त] भय-भीत, त्रास-प्राप्त
विप्र समाहा' (गा ३८८); एण वंदामि' कहना (धर्म २)। चूलिया स्त्री (पएह १, ३; पात्र)।
'उत्तरंताग य मरूं, खंघवारो तिसाए मरिउ- | [चूलिका] देखो अनन्तर-उक्त अर्थ (बृह ३; उत्तद्ध देखो उत्तरद्ध (पिंग) 11
मारतो' (महा)। संकृ. उत्तरित्तु (वि ५७७)। गुभा २५)। ड्ढ न [°धि] पिछला प्राधा हेकृ. उत्तरित्तए (पि ५७८)।,
भाग उत्तरार्ध (जं ४)। दिसा स्त्री ["दिश्] उत्तप्प वि [दे] १ गवित, अभिमानी ( दे १, १३१; पात्र) । अधिक गुणवाला (दे. १३१)। उत्तर अक [अव + त] उतरना, नीचे पाना ।
उत्तर दिशा (सुर २, २२८) । द्ध न [1]
पिछला आधा भाग (पिंग) । पगइ, °पयडि वकृ. उत्तरमाण, 'उत्तरमाणस्स तो विमाउत्तप्प वि [उत्तप्त] देदीप्यमान (राज)। गायो' (सुपा ३४०)। उत्तर वि [उत्तर]
स्त्री [प्रकृति कर्मों के अवान्तर भेद (उत्त उत्तम पुं [उत्तम] एक दिन का उपवास १ श्रेष्ठ, प्रशस्त (पउम ११८, ३०) । २
३३: सम ६६) । पञ्चस्थिमिल्ल [पा(संबोध ५८) प्रधान, मुख्य (सून १, ३)। ३ उत्तर-दिशा
श्चात्य] वायव्य कोण (पि) । पट्ट पुं उत्तम वि [उत्तम] १ श्रेष्ठ, प्रशस्त, सुन्दर
[प] बिछौना के ऊपर का वस्त्र (ोघ में रहा हुआ (जं १)। ४ उपरि-वर्ती, (कप्पः प्रासू ६) । २ प्रधान, मुख्य (पंचा ४)। उपरितन (उत्त २)। ५ अधिक, अतिरिक्त
१५६ भा)। पारणग न [पारणक] ३ परम, उत्कृष्टः 'उत्तमकट्ठपत्त' (भग ७,६)। 'अट् ठुत्तर--' (प्रौप; सूत्र १, २)। ६
उपवासादि व्रत की समाप्ति, पारण (काल)। ४ अन्त्य, अन्तिम (राज)। ५ पुं. मेरु-पर्वत अवान्तर, भेद, शाखा; 'उत्तरपगई' (कम्म
पुरच्छिम, 'पुरस्थिम पुं [पौरस्त्य] (इक)। ६ संयम, त्याग (दसा ५)। ७ १)। ७ ऊन का बना हुआ वस्त्र, कम्बल
ईशान कोण, उत्तर और पूर्व के बीच की राक्षस वंश का एक राजा, स्वनाम-ख्यात एक वगैरह (कप्प)। ८ न. जवाब, प्रत्युत्तर (वव
दिशा (गाया १,१; भगः पि६०२)। लंकेश (पउम ५, २६४)। "ट्ठ पुं[ 2] १)। ६ वृद्धि (भग १३, ४)। १० पुं.
'पोढवया स्त्री [प्रौष्टपदा] उत्तरा भाद्रपदा १ श्रेष्ठ वस्तु । २ मोक्ष (उत्त २)। ३ मोक्षऐरवत क्षेत्र के बाईसवें भावी जिनदेव का
नक्षत्र (सुज ४)। फग्गुणी स्त्री [फाल्गुनी] मार्ग: 'जीवा ठिया परमट्टम्मि' (पउम २, नाम (सम १५४) । ११ वर्षा कल्प (कप्प)।
उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्र ( कप्पू: पि ६२) । ८१)। ४ अनशन, मरण (प्रोष ७)।
१२ एक जैन मुनि, आर्य-महागिरि के प्रथम बलिस्सह पुं[बलिस्सह] १ एक प्रसिद्ध पण वि [f] लेनदार (नाट)।
शिष्य (कप्प)। कंचुय पुं[कञ्चक] जैन साधु (कप्प) । २ उत्तर बलिस्सह नामक उत्तम वि [ उत्तमस् ] अज्ञान-रहित, बस्तर-विशेष (विपा १, २)। करण न स्थविर से निकाला हुआ एक गण, भगवान् 'तिविहतमा उम्मुक्का, तम्हा ते उत्तमा हुति' [°करण उपस्कार, संस्कार,विशेष-गुणाधान; महावीर का द्वितीय गण--साधु-संप्रदाय (आवनि ५५; कप्प)।
'खंडियविराहियाणं,
(कप्प; ठा ६)। भदवया स्त्री [भाद्रपदा] उत्तमंग न [उत्तमाङ्ग] मस्तक, सिर (सम
मूलगुणाणं सउत्तरगुरणाएं। नक्षत्र-विशेष (ठा ६)। मंदा स्त्री [°मन्दा] ५०; कुमा)।
उत्तरकरणं कोरइ, जह
मध्यम ग्राम की एक मूर्छना (ठा ७) । उत्तमा स्त्री [उत्तमा] १ ‘णायाधम्मकहा' सगड-रहंग-गेहाणं' (प्राव ५) 'महुरा स्त्री [°मथुरा] नगरी विशेष (दंस)। का एक अध्ययन (णाया २,१)। २ इन्द्राणी
कुरा स्त्री ["कुरु] स्वनाम-ख्यात क्षेत्र-विशेष, वाय पुं [वाद] उतरवाद (आचा)। (णाया २, १ठा ४, १)
'उत्तरकुराए णं भंते ! कुराए केरिसए प्रागार- विक्किय, वेत्रिय वि वैक्रिय उत्तमा नी [उत्तमा] पक्ष की प्रथम रात्रि
भावपाडोयारे पएणत्ते' (जीव ३)। कुरु स्वाभाविक-भिन्न वैक्रिय, बनावटी वैक्रिय (सुज्ज १०, १४)।
[कुरु] १ वर्ष-विशेषः ‘उत्तरकुरुमाणु- (कम्म १: कप्प)। "साला स्त्री [शाला] उत्तम्म अक [उत् + तम्] खिन्न होना, सच्छरावो (पि ३२८ सम ७०%, पएह १, १ क्रीडा-गृह । २ पीछे से बनाया हुमा घर । उद्विग्न होना । उत्तम्मइ (स २०३)। वकृ. ४; पउम ३५, ५०) । २ देव-विशेष (जं २)। ३ वाहन-गृह. हाथी-घोड़ा आदि बाँधने का उत्तम्मतः उत्तम्ममाण (नाट)। संकृ. 'कुरुकूड न [ कुरुकूट] १ माल्यवंत पर्वत स्थान, तबेला (निचू ८)। साग, साहय उत्तम्मिअ (नाट)।
| का एक शिखर (ठा ६)। २ देव-विशेष | वि [साधक] विद्या, मन्त्र वगैरह का
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