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उत्तरओ- उत्ताल
सावन करनेवाले का सहायक (सुपा १५१; २६६) देखो उत्तरा । /
उत्तरओ [ उत्तरतः ] उत्तर दिशा की तरफ (ठाः भग) ।
उत्तरंग न [ उत्तरङ्ग] १ दरवाजे का ऊपर का काg (कुमा) । २ वि. चपल, ( मुद्रा २६८ ) ।
चंचल
उत्तरकुरु पुं.. [ उत्तरकुरु] १ देवभूमि स्वर्ग (स्वप्न ६० ) । २ स्त्री. भगवान् नमिनाथ की दीक्षा शिविर (विचार १२९)
उत्तरण न [ उत्तरण] १ उतरना, पार करना (ठा ५, स ३६२) | २ अवतरण, नीचे आना (ठा १० ) 1
उत्तरणवरंडियास्त्र [ दे ] उडुप, जहाज, डोंगी (दे १. १५२) ।
उत्तर
पाइअसद्दमहण्णवो
उत्तरिज [उत्तरीय] चादर, उत्तरिया प्रा१, २४८) 'जरवि उत्तरियं (सुपा ५४६),
रियवि [उत्तीर्ण] १ उत्तरानी आया हुआ (सुर ६, १५९ ) । २ पार पहुँचा हुआ (महा)
उत्तरिय वि [ औतरिक, औतराह] देखो उत्तर (ठा १० विसे १२४५) । उत्तरिह वि [औत्तराद] उत्तर दिशा या काल में उत्पन्न या स्थित, उत्तर-सम्बन्धी, उत्तरीय; ग्रह उत्तरिल्लरुयगे' (सुपा ४२; सम १००; भग) ।
उत्तरीअ देखो उत्तरिय = उत्तरीय (कुमाः हे १,२४८ महा) 1
उत्तरीकरण न [उत्तरीकरण] उत्कृष्ट बनाना, विशेष शुद्ध करना; 'तस्स उत्तरीकरणेणं' ( पडि ) । उत्तरोड [उत्तरौध] १ ऊपर का मोठ (पि ३६७) । २ श्मश्र ू, मूँछ (राज) ।
पुं [ दे] विटप, अंकुर (दे १,
[उत्तरक्रियिक] उत्तर वैक्रियनामक लब्धि से सम्पन्न (पंच २, २०)। उत्तरसँग देखो उत्तरा-संग (पव १८) ル उत्तरा स्त्री [उत्तरा] १ उत्तर दिशा (ठा १ = ) । २ मध्यम ग्राम की एक मूच्र्छना (ठा ७) । ३ एक दिशा-कुमारी देवी (ठा ४ दिगम्बर-मत प्रवर्तक प्राचार्य शिवभूति की स्वनाम ख्यात भगिनी (विसे) । ५ अहिच्छत्रा नगरी की एक वापी का नाम (ती) गंदा स्त्री ['नन्दा] एक दिक्कुमारी देवी (राज)। पह पुं [पथ ] उत्तरदिशा-स्थित देश, उत्तरीय देश ( २ ) । फग्गुणी देखो उत्तरफग्गुणी (सम ७ इक) "भहवया देखो उत्तर- भद्दवया (सम ७; इक) । यण न ["यण] उत्तरायण सूर्य का उत्तर दिशा में गमन, माघ से लेकर छ: महीना (सम ५३ ) "यया स्त्री ["यता ] गान्धार-ग्राम की एक मूच्र्छना (ठा ७) । वह देखो पह (महा; उब १४२ टी) । संग पुं [संग] उत्तरीय वस्त्र का शरीर में न्यास-विशेष, उत्तरासण (कप्पः भगः धौप ) । समा स्त्री [समा] मध्मम ग्राम की एक मुच्छेना (ठा ७) । साढा श्री [च]वशेष (समस नक्षत्र E; 1/ "हुत्त न [भिमुख ] १ उत्तर की तरफ । २ वि. उत्तर दिशा की तरफ मुँह किया हुआ (प्रोघ ६५०; श्रव ४)
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उत्तल ११६) ।
उत्तव वि[ उक्तवत् ] जिसने कहा हो वह (पि५६९)
उत्तस अक [ उत् + बस् ] १ त्रास पाना, पीड़ित होना । २ डरना, भयभीत होना । वकृ. उत्तसंत (सुर १, २४६ १०,२२० ) I उत्तसिय वि [उत्त्रस्त] १ भयभीत । २ पीड़ित (सुर १,२४६) ।
उत्ता सक [ उत् + ताडय् ] १ ताड़ना,
ताड़न करना। २ वाद्य बजाना । कवकृ. 'उताडिता दरिया कुडवाएं' (राय)
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उत्तारण न [उत्ताडन] १ ताड़ना करना (कुमा) । २ वाद्य बजाना (राज) उत्तान वि[उत्तान ] १ उन्मुख, ऊध्वं - मुख (पंचा १०) २ चित्ता ६ ठा ४, ४) । ३ विस्फारित 'उत्तारणरणयरणपेच्छरिगज्जा पासादीया दरिसणिज्जा' (नौप ) । ४ निपुण, धकुशल 'उत्ताराम न साहए धम्मं (चम्म ८) 'साइय [शायिन ] चित सोनेवाला (रूस) । उत्ताणअ । ऊपर देखो ( भगः गा ११०; उत्ताणग कस) ।
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उत्तणपत्तव व [दे] एएड-सम्बन्धी (पती बरह) (दे१, १२० ) 1
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उत्ताणि वि [उत्तानित ] १ चित्त किया हुआ (से ६, ८९ गा ४६० ) । २ चित्त सोनेवाला (दसा ) 1/
उत्तार सक [ अव + तारय् ] नीचे उतारना । वकृ. उत्तारेमाण (ठा ५) उत्तर सक [ उत् + तारय् ] १ पार पहुँचाना। २ बाहर निकालना। ३ दूर करनाः 'देहो नईए खित्तो, तो एए जइ नो उत्तारिंता तो हं मरिऊरण' (सुपा ३५७; काल ) उत्तार पुं [उत्तार ] १ उतरना, पार करना; 'असोप्रो संसारो पडिसोश्रो तस्स उत्तारों' (दस २) उत्तारा (उपर ३२) २ परित्याग ( १०४२)उतारनेवाला, पार करानेवाला
सलहे
जाजरामरणसागरोत्तारे । विपणम्मिगुणापर !
खगमवि मा काहिसि पमायं' ( प्रासू १३४) । उत्तरपुं [दे] आवास-स्थान, गुजराती में 'उतारों (सिरि ७०० ) 1
उत्तारण न [उत्तारण] १ उतारना २ दूर करना। ३ बाहर निकालना । ४ पार करना 'ताज मोहमहाग्रहिविसवेगा फुरंति तुह बाढं । तातार सम्हा
जसं कुरा भए । (सुपा ५५७; विसे १०४०) । उत्तारयवि [ उत्तरक] पार उतारनेवाला (स ६४७)
उत्तारिअवि [उत्तारित ] १ पार पहुँचाया हुआ। २ दूर किया हुआ । ३ बाहर निकाला हुआ 'तेरावि उत्तारियो भूमिविवराम्रो' (महा) 1
उत्ताल वि [उत्ताल ] १ 'महानू, बड़ा 'उत्ताल - तालवा बहि दिनमाला (सुपा ५०२ ) । २ उतावला, शीघ्रकारी; 'कवि उत्तालो अप्पडिले हियसेज्जं गिरहंतो' (सुपा ६२०) उद्धत ( १,१०१४ तल ताल विरुद्ध गान का एक दोष; 'गायंतो मा
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