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उत्थंघ-उदग
पाइअसद्दमण्णवो
उत्थंघ पुं [उत्तम्भ] ऊर्ध्व-प्रसरण, ऊँचा 'अच्छुक्कुत्थरियमहल्लवाह
उत्थुभण न [अवस्तोभन] अनिष्ट को शान्ति फैलाना (से ६, ३३)।
भरनीसहा पडिया' (सुपा २०)। | के लिए किया जाता एक प्रकार का कौतुक, उत्थंघण न [उत्तम्भन] ऊपर देखो (गउड)।। २ उत्थित, उठा हुमा (दे ७, ६२)। थू-थू आवाज करना । (बृह १) । उत्थंघि वि [उत्तेपिन् ] ऊँचा फेंकना | उत्थल न [उत्स्थल] १ ऊँची धूल राशि, उद न [उद] जल, पानी; 'अवि साहिए दुवे (गउड)।
उन्नत रजःपुञ्ज (भग ७, ६ टी)।२ उन्मार्ग, वासे सीमोदं अभोच्चा निक्खंते (प्राचा; उत्थंचिअ वि [उन्नमित] ऊँचा किया हुआ, कुपथ (से ८, ६)IV
भग ३, ६)। उल्ल ओल्ल वि [f] उन्नत किया हुआ (कुमा) ।
उत्थलिअ न [ दे] १ घर, गृह । २ वि. पानी से गीला। (ोघ ४८६; पि १६१) । उत्थंघिअविरुद्ध] रोका हा (कुमा)।
उन्मुख-गत, ऊँचा गया हुआ (दे १. १०७ गत्ताभ न [ग भ] गोत्र-विशेष उत्थंघिअवि [उत्तम्भित] उत्थापित, उठाया स १८०)।
(ठा ७) । उत्थल्ल अक [उत् + शल्] उछलना, | उदइग देखो ओदइय (अणु) ।। हुआ (से ५, ६०)।
कूदना। उत्थल्लइ (पड् ) उत्थंभि वि [उत्तम्भिन्] १ आघात-प्राप्त,
उदइल्ल वि [उदयिन् ] उदयवान्, उन्नतिउत्थल्लपत्थल्ला स्त्री [दे] दोनों पावों से अवलम्बन करनेवाला
शील, 'सिरिअभयदेवसूरी अपुव्वसूरो सयावि परिवर्तन, उथल-पुथल (दे १, १२२)। 'धारिज्जइ जलनिहीवि
उदइल्लो' (सुपा ६२२)। उत्थल्ला स्त्री [दे] १ परिवर्तन (दे १, १३)। __कल्लोलोत्थंभिसत्तकुलसेलो।
उदक उदङ्क जल का पात्र विशेष, जिससे २ उद्वर्तन (गउड)। नहु अन्नजम्मनिम्मित्र
जल ऊँचा छिड़का जाता है (जं २)। उत्थल्लिअ वि [उच्छलित] उछला हुआ, सुहासुहो कम्म-परिणामो॥
उदंच सक [उद् + अञ्च् ] ऊंचा जाना 'उत्थल्लिअं उच्छलिग्रं (पान) (प्रासू १२७) ।
। (कुमा)। उत्थाइ वि [उत्थायिन् ] उठनेवाला (दे ८ | उत्थंभिअ वि [उत्तम्भित] १ अवलम्बित ।
उदंचण प [उदश्चन] १ ऊँचा फेंकना। १९) २ रुका हुआ, स्तम्भितः 'अइपीणत्थरणउत्थं
१ वि. ऊँचा फेंकनेवाला (अणु)। उत्थाइय वि [उत्थापित] उठाया हुआ, भिप्रारगणे सुप्ररण सुसु मह वप्रण (गा | 'पब्वत्थाइयनरवरदेसे दंडाहिवं ठवइ महणं'
| उचिर वि [उदश्चित] ऊँचा जानेवाला ६२४)। ३ बन्धन-मुक्त किया हुआ (स
(कुमा)V (सुपा ३५२)IV ५६८)
उदंत पुं[उदन्त हकीकत, समाचार, वृत्तान्त; उत्थाण न [उत्थान] १ वीर्य, बल, पराक्रम
'रिणअमेऊरण कइबलं बीमोदंतो व राहवस्स उत्थंभिर देखो उत्तंभि (वज्जा १५२) । (विसे २८-२६) । २ उत्थान, उत्पत्तिः
उवरिणो ' (से ४,५५; स ३०; भग) / उत्थग्घ [६] संमर्द, उपमर्द (दे १, ९३) 'वंछावाही प्रसज्झो न नियत्तइ अोसहेहि कएहिं। तम्हा तीउत्थाणं निरुभियब्बं हिएसीहि'
उदंप पुं [उदृप्त] कृष्णराज पुत्र उदय (नलउत्थप्पण देखो उट्ठयण (कुप्र ११७) ।
(सुपा ४०४) दव० रास० ऋषिवर्धन) उत्थय देखो उत्थइय (कप्प); 'निवडंति
उत्थामिय (अप) वि [उत्थापित] उठाया उद्ग पुन [उदक] जल पानीः 'चत्तारि तणोत्थयकूपियासु तुंगावि मायंगा' (उप | हुआ (भवि)।
उदगा पएणत्ता' (ठा ४; जी ५)। २ ७२८ टी)V
वनस्पति-विशेष (दस ८, ११)। ३ जलाशय उत्थार सक[आ + क्रम् ] आक्रमण करना, उत्थर सक [आ + क्रम् ] आक्रमण
(भग १, ८)। ४ पुं. स्वनाम-ख्यात एक दबाना । उत्थारइ (हे ४, १६० षड् ) करना। संकृ. उत्थरिवि (अप) (भवि)
जैन साधु । ५ सातवें भावी जिनदेव (सूम उत्थार देखो उच्छाह = उत्साह (हे २, ४८० | उत्थर सक [अव + स्तु] १ आच्छादन करना,
२, ७)। गब्भ पुं [ग] बादल, षड्) ढकना । २ पराभव करना। वकृ. उत्थरंत,
अभ्र (भग २, ५) । दोणि स्त्री [°द्रोणि] उत्थरमाण (पराह १, ३; राज)। उत्थारिय वि [आक्रान्त] आक्रान्त, दबाया
१ जल रखने का पात्र-विशेष, ठंढा करने के हुमा; 'उत्थारिअनंतरंगरिउवग्गों' (कुमा; सुपा उत्थर । सक [उत् + स्तु] आच्छादन
लिए गरम लोहा जिसमें डाला जाता है वह ५४६ ) ।। उत्थल्ल करना (?)। उत्थरइ, उत्थल्लइ
(भग १६, १)। २ जो अरघट्ट में लगाया (प्राकृ ७५) । उत्थिय देखो उद्रिय (हे ४,१६, पि ३०)
जाता है वह छोटा घड़ा (दस ७)। पोग्गल उत्थरिअ वि [आक्रान्त] आक्रान्त, दबाया |
उत्थिय देखो उत्थइअ (पंचा८ ) । न [पौद्गल] बादल, मेघ (ठा ३, ३)। हुआ; 'उत्थरिमोवग्गिनाई अक्कत' (पान;
उत्थिय वि [तीर्थिक मतानुयायी, दर्शना- | मच्छ पुं[मत्स्य] इन्द्र-धनुष का खण्ड, भवि)। नुयायी (उवाः जीव ३)।
उत्पात-विशेष (भग ३, ६)। माल पुंस्त्री उत्थरिय विदे] १ निस्सृत, निर्गत ( स | उत्थिय वि [यूथिक] यूथ-प्रविष्ट, 'पएण- [ माल जल का ऊपर चढ़ता तरंग, उदक४७३)। उत्थिय- (उवाः जीव ३)IV
शिखा, वेला (ठा १०; जीव ३) । वत्थि स्त्री
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