________________
उक्खेविअ-उग्गाल
पाइअसद्दमण्णवो
१४३
उक्खेविअ वि [उत्क्षेपित] जलाया हुआ उग्गमइ (वजा १६)। उग्गमेज (काल)। उग्गह पुं[अवग्रह] परोसने के लिए उठाया (घूप) (भवि) IV
वकृ. उग्गमंत, उग्गममाण (सुपा ३८; | हुआ भोजन (सूम २, २,७३) । उक्खोडिअ वि [उत्खो टित] १ उत्क्षिप्त, | पएण १)
उग्गहण न [अवग्रहण] इन्द्रिय द्वारा होनेउड़ाया हुआ (पास)। २ छिन्न, उखाड़ा उम्गम [उद्गम] १ उत्पत्ति, उद्भव
वाला सामान्य ज्ञानः 'प्रत्याणे उग्गहरणं हुमा (दे १, १०५; १११) 'तत्थुरगमो पसूई पभवो एमाई होति एगट्ठा'
प्रवग्गह' (विसे १७९) उग अक [उत् + गम्] उदित होना। (राज)। २ उदया 'सूरुगमो (सुर ३, उग्गहिअ वि [रचित] १ निर्मित, विहित उगइ (नाट)IV
२५०) । ३ उत्पत्ति से सम्बन्ध रखनेवाला (कुमा)।.. उग (अप) वि [उद्गत उदित (पिंग)।
| उग्गहिअ वि [अवगृहीत] १ सामान्य रूप उगाहिअ वि [दे] उत्क्षिप्त, फेंका हुआ १०)।
से ज्ञात । २ परोसने के लिए उठाया हुमा (षड्) ।
(ठा १)। ३ गृहीत । ४ आनीत । ५ मुख में उगुणपन्न श्रीन [एकोनपश्चाशत् ] ऊनप
| उग्गमण न [उद्गमन] उदय (सिरि ४२८० सुज्ज)।
प्रक्षिप्त; 'तिविहे उग्गहिए पएणत्ते;-जं च चास, ४६ (सुज्ज १०, ६ टी)।
उग्गिरणहइ, जं च साहरइ, जं च मासगम्मि | उग्गमिय वि [उद्गमित] उपार्जित (निन् उगुणवीसा स्त्री [एकोनविंशति उन्नीस,
पक्खिवति (वव २, ८)। २)। १६ (सुज्ज १०, ६ टी)
उग्गहिअ वि[दे] निपुरण-गृहोत, मच्छी तरह उगुणुत्तर न [एकोनसप्तति] उनहत्तर, ६६ | उग्गय वि [उद्गत] उत्पन्न, जात (पाव
लिया हुआ दि १, १०४)। 'उगुणुत्तराई' (सुज्ज १०, ६ टी)। ३) । २ उदित, उदय-प्राप्त (सुर ३, २४७)।
उग्गा सक [उद् + गै] १ ऊँचे स्वर से गान उगुनउइ स्त्री [एकोननवति नवासी, ८६ ३ व्यवस्थित (राज)।
करना । २ वर्णन करना। ३ श्लाघा करना; (कम्म ६, ३०)। उग्गह सक [रचय ] रचना, बनाना, निर्माण
'उग्गाइ गाइ हसइ, उगुसीइ स्त्री [एकोनाशीति] उनासी, ७६ करना । करना । उग्गहइ (हे ४,६४)।
असंवुडो सय करेइ कंदप्पं । उग्गह सक [ उद् + ग्रह ] ग्रहण करना। गिहिकज्जचिंतगो वि य, उग्ग प्रक [उद् + गम्] उदित होना। उग्गहेइ (भग) । संकृ. उग्गहित्ता (भग)।
प्रोसन्ने देइ गेएहइ वा (उव) । उग्गे (पिंग)। वकृ. उग्गंत; 'देव ! पणयजउग्गह [अवग्रह] इन्द्रिय द्वारा होनेवाला
वकृ. उग्गायंत (सुर ८, १८६)। कवकृ. णकल्लाणकंदुट्टविसट्टणुग्गंतमिह-(?हि)। राणुसामान्य ज्ञान-विशेष (विसे)। २ अवधारण,
उग्गीयमाण (पउम २, ४१)। गारिणो' (धर्मा ५) निश्चय (उत्त)। ३ प्राप्ति, लाभ (पाचू)।
उग्गाढ वि [उद्गाढ] १ प्रति गाढ़, प्रबल उग्ग सक [उद् + घाटय् ] खोलना। उग्गइ ४ पात्र, भाजन (पंचा ३)। ५ साध्वियों (उप ९८६ टीः सुपा ९४)। २ स्वस्थ, (हे ४, ३३) ।
का एक उपकरण (मोघ ६६६; ६७६) । ६ उग्ग वि [उप] १ तेज, तीव्र, प्रबल (पउम योनिद्वार (बृह ३) । ७ ग्रहण करने योग्य उग्गामिय वि [उद्गमित] ऊपर उठाया हुआ, ८३, ४)। २ पुं. क्षत्रिय की एक जाति, वस्तु (पएह १, ३)। ८ आश्रय, पावास- ऊँचा किया हुआ (सुख १, १४)। जिसको भगवान् प्रादिदेव ने आरक्षक-पद पर स्थान, वसति (प्राचा); 'पाहापडिरूवं उग्गहं | उग्गायंत देखो उग्गा ।। नियुक्त की थी (का ३, १)। वई स्त्री मोगिन्हित्ता' (णाया १, १)। ६ वह वस्तु, उग्गार पुं[उद्गार १ वचन, उक्ति ते [वती] ज्योतिः-शास्त्र-प्रसिद्ध नन्दा-तिथि जिसपर अपना प्रभुत्व हो, अधीन चीज (बृह उग्गाल पिसुणा जे ण सहति णिग्गुणा की रात (जं ७)। "सिरि पु [श्रीक] ३)। १० देव या गुरु से जितनी दूरी पर परगुणुग्गारे' (गउड)। २ शब्द, पावाज, राक्षस वंश का एक राजा, स्वनाम-ख्यात एक रहने का शास्त्रीय विधान है उतनी जगह, ध्वनिः 'तियसरहपेल्लियघणो राहदुंदुहिबहललंकेश (पउम ५, २६४)। सेण पुं[सेन] मर्यादित भू-भाग, गुर्वादि की चारों तरफ की गजिउग्गारो', 'अहिताडियकंसुग्गारझंझणामथुरा नगरी का एक यदुवंशीय राजा (णाया शरीर-प्रमाण जमीन; 'अरणजाएगह मे मिउ- पडिरवाहोयो' (गउड)। ३ डकार। ४ वमन, १, १६ अंत)।
ग्गह' (पडि)। गंत, गंतग न [नन्त, प्रोकाई (नाटः कस); 'जिणझारणालणउग्गंठ सक [उत् + ग्रन्थ ] खोलना, गाँठ | क] जैन साध्वियों का एक गुह्याच्छादक डझंतमयणधूमुग्गारेणं पिव'"केसकलावेणं
खोलना । संकृ. उग्गंठिऊण (हम्मीर १७)। वस्त्र, जांधिया, लँगोट: 'छादंतोग्गहणंत' | (स ३१३; निचू १०)। ५ जल का छोटा उग्गंध वि [उद्गन्ध] अत्यन्त सुगन्धित
(बृह ३)। पट्ट, पट्टग पुन [°पट्ट, क] प्रवाह; 'उग्गालो छिछोली' (पान)। ६ (गउड)।।
देखो पूर्वोक्त अर्थः 'नो कप्पइ निग्गंथाणं रोमन्थ, पगुरानाः 'रोमंथो उग्गालो (पास)।।
उगाहणंतगं वा उग्गहपट्टगं वा धारित्तए वा उग्गाल पु[दे. उद्गाल] पान की पिचकारी उम्गम होना। उग्गच्छदि (शौ) (नाट) परिहरित्तए वा' (बृह ३)।
(पव ३८)।
आरक्षक-पद पर
थी (ग,
[ती
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org