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उक्कंठिय-उक्करिस पाइअसहमहण्णवो
१३९ उक्कंठिय वि[उत्कण्ठित] उत्सुक (गा उक्कान्छा स्त्री [उत्कच्छा] छन्द-विशेष | उक्कनाह [दे] उत्तम प्रश्व की एक जाति उक्कंठिर ५४२: सुर ३, ८६ पउम ११, (पिग)।
(सम्मत्त २१६) उक्कंठुलय) ११ वज्जा.)।
उक्कच्छिा स्त्री [औपकक्षिकी ] जैन कस सक उत+क्रम] ऊँचा जाना । उक्कंड वि [उत्कण्डित] खूब छटा हुआ, | साध्वियों को पहनने का वस्त्र-विशेष
२ उलटे क्रम से रखना। वकृ. उक्कमंत विशेष करिडत (पिंड १७१)। (ोघ ६७७)।
(मावम)। संकृ. उक्कमिऊणं (विसे उक्कंडय सक [उत्कण्टय] पुलकित करना, उक्कज्ज वि [दे] अनवस्थित, चञ्चल (षड्)।
३५३१) 'दियसेवि भूप्रसंभावणाए उक्कटयंति अंगाई' उक्कट्टि स्त्री [अपकृष्टि] अपकर्ष, हानि |
उक्कम पुं [उत्क्रम] उलटा क्रम, विपरीत (गउड)। (वुन १)।
क्रम (विसे २७१)। उक्कंडय वि [उत्कण्टक] पुलकित, रोमाञ्चित | उक्कट्ठि स्त्री [उत्कृष्टि] उत्कर्ष, 'महता
उक्कमण न [उत्क्रमण] ऊध्वं गमन । २ (गउड)। उक्कट्ठिसीहणादकलकलरवेणं' (सुज्ज १९
बाहर जाना (समु १७२)। उक्कंडा स्त्री [दे] घूस, रिशवत (दे १,
पत्र २७८) । देखो उक्किट्टि।
उक्कमित वि [उपक्रान्त १ प्रारब्ध । २ १२) उक्कड वि [उत्कट] १ तीव्र, प्रचण्ड, प्रखर
क्षीण; 'प्रभागमितम्मि वा दुहे, महवा उक्कमिते उक्कंडिअ वि [दे] १ आरोपित। २ खण्डित (गदि; महा)। २ विशाल, विस्तीर्ण (कप्प;
भवंतीए । एगस्स गती य भागती, विदुमं ता सुर १, १०६)। ३ प्रबल (उवाः सुर ६,
सरणं ण मन्नइ।' (सूम १, २, ३, १७)। उक्त वि [उत्क्रान्त] ऊँचा गया हुआ | .१७२ )।
उक्कर सक [नन् + कृ] खोदना। कवकृ. (भवि)। °उक्कड देखो दुक्कड (उप ६४६)
उक्करिज्जमाण (आवम)। उक्कंति । स्त्री [दे देखो उक्कंदा (दे १, उक्कडिय वि [दे] तोड़ा हुमा, छिन्न (पाप)।
उक्कर पु[उत्कर] १ समूह, संघातः 'सक्कउक्कडिय देखो उक्कुडय (कस)। उक्कंती८७)। उक्कड्ढ़ सक [उत् + कर्षय ] उत्कृष्ट करना,
रुक्कररसड्ढे' (सुपा ५१८)। २ कर-रहित, उक्कंद वि [दे] विप्रलब्ध, ठगा हुआ, वञ्चित बढ़ाना। उक्कड्ढए (कम्म ५, ६८ टी )।--
राज-देय शुल्क से रहित (णाया १, १)। उक्कड्ढग पुंअपकर्षक] १ चोर की एक- उक्करड देखो उक्कर = उत्कर; 'कस्सावि उक्कंदल वि [उत्कन्दल] अंकुरित (गउड)
जाति-जो घर से धन प्रादि ले जाते हैं। उत्तरीयं गहिऊरण को अ उक्करडो' उक्कदि । श्री [दे] कूपतुला (दे १, ८७) ।। २ जो चोरों को बुलाकर चोरी कराते हैं । ३ |
(सिरि ७६५) उक्कंदी।
चोर की पीठ ठोकने वाले, चोर के सहायक उक्करड [दे] १ अशुचि राशि। २ जहाँ उक्कंप प्रक [उत् + कम्प्] कांपना, (पएह १, ३ टी)।
मैला इकट्ठा किया जाता है वह स्थान (श्रा हिलना।
उक्कड्ढिय वि [उत्कर्षित] १ उत्पाटित, | २७; सुपा ३५५) ।। उक्कंप पुं[उत्कम्प] कम्प, चलन ( सण;
उठाया हुआ । २ एक स्थान से उठा कर | उक्करिअ वि [दे] १ विस्तीर्ण, भायत । २ गा ७३५ )। अन्यत्र स्थापित (पिंड ३६१)
आरोपित। ३ खण्डित (षड्)। उक्कंपिय वि [उत्कम्पित] १ चञ्चल किया | उक्कण्ण वि [उत्कर्ण] सुनने के लिए उत्सुक | उक्करिअ वि [उत्कीर्ण] खोदित, खोदा हुआ (राज) । २. न. कम्प, हिलन ; (से ६, १६)
हुमा: 'टंकुक्करियव्व निचलनिहित्तलोयणा' 'णीसासुक्कंपिप्रपुलइएहिं जाणंति णचिउं उक्कत्त सक[उत् + कृत्] काटना, कतरना। (महा)।। धएगा। अम्हारिसीहि दिठे, पिसम्मि वकृ. उक्कत्तंत (सुपा २१६)।
उक्करिद (शौ) वि [उत्कृत] ऊँचा किया अप्पावि वीसरिमो' (गा ३६१)। उक्कत्त वि [उत्कृत्त] कटा हुआ, छिन्न
हुआ (स्वप्न ३६)। उक्कंपिय वि [दे] धवलित, सफेद किया
(विपा १, २)। उक्कत्तण न [उत्कर्त्तन] काट डालना, छेदन
उक्कारया स्त्री [उत्करिका] जैसे एरण्ड के हुआ (कप्प)।
बीज से उसका छिलका अलग होता है उस (पुफ्फ ३८४)। उक्कंबण न [दे.अवकम्बन] काठ पर काठ उक्कत्तिय देखो उक्कत्त = उत्कृत्त (पउम
तरह अलग होना, भेद-विशेष (भग ५, ४)।के हाते से घर की छत बाँधना, घर का ५६, २४)।
उक्कारस सक [उत्+कृष्] १ खींचना । संस्कार-विशेष (बृह १)। उक्कत्थण न [उत्कथन] उखाड़ना (पएह
२ गर्व करना, बड़ाई करना । वकृ. उक्करिसंत उक्कंबिय वि [दे. अवकम्बित] काठ से १,१)।
(से १४, ६) बाँधा हुमा (राज)।
| उक्कप्प पुं[उत्कल्प शास्त्र-निषिद्ध आचरण | उक्करिस देखो उक्कस्स = उत्कर्ष (उव; उक्कच्छ वि [उत्कच्छ] स्फुट, स्पष्ट (पिंग) (पंचभा) ।।
| विसे १७६६)
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