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रिसन [ उत्कर्षण] १ उत्कर्षं, बड़ाई, महत्व । २ स्थापन, प्राधान 'उम्मिल्लइ लायरणं
परयच्छायाए सक्कय वयाणं ।
सनकसनकारकरि
पययस्सवि पहावो ॥' (गउड) 1 उक्करिसिय वि [उत्कृष्ट ] सोच निकाला हुमा, उन्मूलित ( से १४, ३) ।
उक्कल देखो उक्कड (ठा ५, ३) । उक्कल अक [ उत् + कलू ] उत्कट रूप से बरतना । उक्कलइ (सुख २, ३७) । उक्कल वि[स्कल] १ धर्म-रहित २ न. चोरी (परह १, ३, टी) । २ पुं. देश-विशेष, जिसको प्राजकल frent man 'उड़िया' या 'उड़ीसा' कहते हैं (बो७८)। उक्कलंच एक [ उत् + लम्ब] फाँसी लटकाना । उक्कलंबे मि ( स ε३) ।
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उक्कलंबण न [ उल्लम्बन] फाँसी लटकाना । ( स ३५८) ।
उकला देखो उक्कलिया (उत्त ३६, १३८) । उक्कयि [] उबला हुआ गुजराती में "उसे"; "उसिणोदगं विसिय विचार २१७ ) ।
कलिया स्त्री [उत्कलिका] १ लता, मकड़ी एक प्रकार का कीड़ा जो जाल बनाता है; 'उक्क लियडे' (कप्प ) । २ नीचे की तरफ बहनेवाला वायु (जी ७) । ३ छोटा समुदाय, समूह - विशेष (ठा ३, १ ) । ४ लहरी, तरंग (राज)। ५ ठहर-ठहर कर तरंग की तरह चलनेवाला वायु (धाचा)। उक्कस सक [गम् ] जाना, गमन करना । उक्कसइ (हे ४, १६२; कुमा) । प्रयो. उसने वह उक्सायंत (१०)। उक्कस देखो ओकस । वकृ. उक्कसमाण (क) देश [क्कसित (मावा २, ३, १,१२ ) ।
उक्कस देखो उक्कुस ( कुमा) । उक्कस देखो उक्कस्स = उत्कर्ष (सूम १, १, ४, १२); 'तवस्सी इक्कसो' (दस ५, २, ४२) । अक्सन [कर्षण] अभिमान करना
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पाइअसहमणव
( सूम १, १३ ) । २ ऊँचा जाना। ३ निवर्तन, निवृत्ति । ४ प्रेरणा (राज) ।
[उत्कशायिन्
उक्साइ वि [कशाविन] सत्कारादि के उक्किवि [उत्कृष्ट] उत्तम (दे १, १२८ दं २६ ) । २ फल का शस्त्र द्वारा लिए उत्कण्ठित (उा ३) । किया हुआ टुकड़ा ( दस ५, १, ३४ ) । उक्कि िश्री [उत्कृष्टि] हर्षध्वनि माद की आवाज (प्रौपः भग २, १) । देखो कट्ठ
उक्साइ वि [उत्कषायिन् ] प्रबल कषायवाला (उत्त १५) । उक्कस्स क [ अप+कृष्] १ ह्रास प्राप्त होना, हीन होना । २ फिसलना, गिरना, पैर रपटने से गिर जाना । वकृ. उक्करसमाण (ठा ५) 1
उक्किगवि [ उत्कीर्ण] १ खोदित, खोदा हुधा (१८२) २ (२) । ५,
उक्रस पुं १ [क]] गर्न अभिमान ( उसिपि [स्कृत] कटा हुआ (से १, १४, २) २ भतिशय उता ५१) । उत्तिण न [ उत्कीर्त्तन] १ कथन ( पउम (भवि)। ११८६३२ प्रशंसा वाचा ( १)। उक्षितिय [उत्कीर्त्तित] कपित, कहा
हुधा (सुज्ज २० टी) ।
उक्करस वि[व] उ ज्यादा १ उत्कृष्ट से ज्यादा 'उस्काठिया ( ११ ) 'उक्कस्सा उदीरणया' (कम्मप १६६ ) । २भिमानी( १, १)। उक्का श्री [का] १ लुका, धाकाश से जो एक प्रकार का अंगार का गिरता है (घोष ३१० भा जी ६) । २ छिन्न-मूल दिग्दाह (धा) अग्नि-पिए (ठा ) ४ आकाश-वह्नि (दस ४) । मुह पुं ["मुख ] १ अन्तद्वीप - विशेष । २ उसके निवासी लोक (ठा ४, २) । वाय पुं [पात ] तारा का गिरना, लूका गिरना । (भग ३, ६) । उक्का स्त्री [दे] कूप-तुला (दे १, ८७) । उक्काम सक [ उत् + क्रामय् ] दूर करना, पीछे हटाना 'उस्कामति जीवं धम्मायो | तेरा ते कामा' (सन १ प ८०) । उरिया देखो उक्करिया (पण ११ मास ७) ।
उकालिय वि [ उत्कालिक ] वह शास्त्र, जिसका अमुक समय में ही पढ़ने का विधान न हो (ठा २, १) । उक्कास देखो उक्करस उत्कर्ष (भग १२, ५) ।
उक्कास वि [दे] उत्कृष्ट, ज्यादा से ज्यादा ( षड् ) । उक्कासिअ वि [दे] उत्थित, उठा हुधा (दे १, ११४) । उक्कि
[उत्कृष्ट] ज्यादा पत्र वि १ ( १५ ) । २ पुंन. इमली भादि के पत्तों का
उक्करिसण – उक्कुक्कुर
समूह ( दस ५, १, ३४) । ३ लगातार दो दिन का उपवास (संबोध ५८ ) ।
१ उत्कृष्ट,
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[कर्ण] १ चचित उपसि 'दोन्नायशरीरे (संदु २१) २ चोदा उखिर तक [+] सोनापा (सन २ १७) । [उत् कृ]
पर अक्षर वगैरह का शस्त्र से लिखना । उक्कर (पि ४००)। किरणगन रणग न [उत्करणक] अक्षत प्रादि से बड़ाना, बचावा, वर्षापन 'पुप्फारहगाई किरलगाई पूर्ववतेवि सरकारि (धर्मनि ४९) । उरि देखो उकरिअ उत्की या १४; सुपा ५१८ ) ।
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उकीर देखो उशिर उनकीरवि (पशु)। व. उक्कीरमाण (भरणु) । उकीरिअ देखो उकरिअ उत्की (उप ३१५) ।
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उक्कीलिय न [ उत्क्रीडित] उत्तम क्रीड़ा (TOW EX, X)I उनि [स्फीति] कीलक से नियंत्रित, 'उक्कीलिउब्व परिभिउब्व सुन्नुव्व मुस्की (सुपा ४०५) । उक्कुंचण न [उत्कुलन] ऊँचे चढ़ाना ( सू २,२,६२)
=
[दे] मत्त उन्मत्त (२१, ६१) । क्र मक [उत् + स्था] उठना, खड़ा होना । उक्कुक्कुरइ (हे ४, १७, षड् ) ।
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