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१२२ पाइअसद्दमहायो
आवदि-आवासिय आवदि स्त्री [आवृति] आवरण (संक्षि ) ६, ७)। पविट्ठ वि [प्रविष्ट] श्रेणी से | कालेणं तेणं समएणं उत्तरड्ढभरहे वासे बहवे आवन्न देखो आवण (पउम ३४, ३०; णाया व्यवस्थित (भग)। बाहिर विबाद्य] मावाडा णाम चिलाया परिवसंति' (जं ३) ।। १,२: स २५६; उबर १६०)v विप्रकीर्ण, श्रेणि-बद्ध नहीं रहा हुआ (भग)M आवाणय न [आपाणक] दूकान, “भिन्नाई आवय पुं[आवर्त] देखो आवत्तः 'कि ति- आवलिय वि [आवलिन] वेष्टित (सूअनि आवाणयाई' (स ५३०)V कम बारसावयं' (सम २१)V २००)।
आवाय पुन [आपात] अभ्यागम, प्रागमन आवय देखो आवड । वकृ. आवयंत, आवय- आवली स्त्री [आवली] १ पंक्ति, श्रेणी (पव ११११ टी)।1 माण (पउम ३३, १३ रणाया १, १,८)IV (पाप)। २ रावण की एक कन्या का नाम | आवाय देखो आवाग (था २३)V आवया स्त्री [आपगा] नदी (पानः स (पउम ६, ११)IV
आवाय पुं [आपात] १ प्रारम्भ, शुरूआत ६१२)IV
आवस सक [आ + वस् ] रहना, वास | (पान; से ११, ७५) । २ प्रथम मेलन (ठा आवया स्त्री [आपद्] आपदा, विपद्, दुःख | करना। पावसेजा (सूत्र १, १२) । वकृ. ४, १)। ३ तत्काल, तुरंत (श्रा २३)। ४ (पानः धरण ४२);
'पागारं आवसंता वि' (सूत्र १, ६)। पतन, गिरना (श्रा २३) । ५ सम्बन्ध, संयोग 'न गणंति पुबनेहं, न य
आवसह पुं [आवस] १ घर, आय, (उवः कस)।। नीई नेय लोय-प्रववायं । स्थान (सून १, ४)। २ मठ, संन्यासियों आवाय पुं [आवाप] १ आवा, मिट्टी के पात्र नय भाविप्रावयाओ, पुरिसा का स्थान (पराह, हे २, १८७)।V
पकाने का स्थान । २ पालवाल। ३ प्रक्षेप, महिलाण आयता' (सुर २, १८६) आवसहिय पुं[आवसायिक] १ गृहस्थ, गृही | फेंकना। ४ शत्रु की चिन्ता । ५ बोना, वपन आवर सक [आ + वृ] आच्छादन करना, - (सूम २, २)। २ संन्यासो (सूप्र २,७) V| (श्रा २३)। ढकना। कर्म. आवरिजइ (भग ६, ३३)। आवसिय वि [आवश्यक] १ अवश्य-कर्तव्य, | आवायण न [आपादन] सम्पादन, (धर्मसं कवकृ. आवरिजमाण (भग १५)। संकृ. आवस्सग जरूरो। २ न. सामयिकादि धर्मा
१०६८)IV आवरित्ता (ठा)। आवस्सय नुठान, नित्य-कर्म (उब; दस १००
आवाल देखो आलवाल (धर्मवि १६,११२)। आवरण न [आवरण] १ आच्छादन करनेएंदि)। ३ जैन ग्रन्थ-विशेष, आवश्यक सूत्र
आवाल न [दे] जल के निकट का प्रदेश वाला, ढकनेवाला, तिरोहित करनेवाला (सम (आवम) । णुअंग पुं[नुयोग] प्राव
आवालय (दे २,७०)।। ७१ गाया १, ८)। २ वास्तु-विद्या (ठा
श्यक सूत्र को व्याझ्या (विसे १)V आवाव देखो आवाय = पावाप । “ता स्त्री
आवस्सय पुंन [आपाश्रय] १-३ ऊपर [कथा] रसोई सम्बन्धी कथा, वि. कथा शेष आवरणिज्ज वि आवरणीय] १ आच्छा- देखो। ४ प्राधार, आश्रय (विसे ८७४) ।। (ठा ४,२) दनीय । २ ढकनेवाला, पाच्छादन करनेवाला आवस्सिया स्त्री आवश्यकी] सामाचारी- | आवास पुं[आवास] १ वास-स्थान (Or (ौप) विशेष, जैन साधु का अनुरान-विशेष (उत्त
पान)। २ निवास, अवस्थान, रहना (पराह आवरिय वि [आवृत] आच्छादित, तिरो- २६) 11
१, ४ प्रौप)। ३ पक्षि-गृह, नीड (वव १, हितः 'आवरिप्रो कम्मेहि' (निचू १) IV आवह सक [आ+ वह.] धारण करना, १)। ४ पड़ाव, डेरा (सुपा २५६; उप पृ आवरिसण न [आवर्पण] छिड़कना, सिंचन वहन करनाः 'थेवोवि गिहिपसंगो जइगो | १३०)। पव्वय पुं [ पर्वत रहने का
सुद्धस्स पंकमावहई (बृह १)।
पर्वत (इक)।
(उव); 'णो पूयणं आवरिसण न [आवर्पण] सुगंध जल को वृष्टि तवसा आवहेजा (सू १, ७)।
आवास । देखो आवस्सय = आवश्यक (पि
आवासग, ३४८ अोघ ६३८ विसे ८५०) (अणु २५).V आवह वि [आवह ] धारण करनेवाला
आवासणिया स्त्री [आवासनिका] प्रावासआवरेइया स्त्री [दे] करिका, मद्य परोसने (आचा)।V
स्थान (स १२२)। का पात्र-विशेष (दे १, ७१)।। आवा सक [आ + पा] १ पीना। २ भोग
आवासय न [आवासक] १ आव. आवलग न [आवलन] मोड़ना (पएह १, में लाना, उपभोग करना । हेकृ. 'वंतं इच्छसि
जरूरी । २ नित्य-कर्तव्य धर्मानुष्ठान (हे ., आवेळ, सेयं ते मरणं भवे (दस २, ७) TV
४३, विसे ८५८)। ३ पुं. पक्षि-गृह, नी: आवलि स्त्री [आवलि] १ पङ्क्ति, श्रेणी आवाइया स्त्री [आवापिका] प्रधान होम, |
(वव १,१) । ४ वि. संस्काराधायक, वासक । (महा) ।२ पुं. एक विद्यार्थी का नाम (पउम 'पत्थुयाए पक्खावाइयाए' (स ७५७) ।
५ आच्छादक (विसे ८७५)।V ५, ६५)IV
आवाग [आपाक] पावा, मिट्टी के पात्र आवासि वि [आवासिन् ] रहनेवाला, आवलिआ स्त्री [आवलिका] १ पंक्ति, श्रेणी पकाने का स्थान (उप ६४८ विसे २४६ ‘एगंतनियावासी' (उब)।। (राय)।२ क्रम, परिपाटी (सुज १०)। ३ | टी) TV
आवासिय वि [आवासित] संनिवेशित, समय-विशेष, एक सूक्ष्म काल-परिमाण (भग | आवाड पुं[आपात] भीलों की एक जाति,'तेणं पड़ाव डाला हुआ (सुपा ४५६; सुर २, १)।
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