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इंद-इक्कण पाइअसहमहण्णवो
१३१ द्वीप-विशेष । ४ न. विमान-विशेष (इक)। इंदाणी स्त्री [इन्द्राणी] १ इन्द्र की पत्नी (सुर| इंदियालीअ देखो इंद-जालिअ न भवामि 'याल देखो जाल (महा)। रह पुं[रथ] १, १७०)। २ एक राज-पत्नी (पउम ६, अहं खयरो नरपुंगव ! इंदियालीओ (सुपा विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम २१६)
२४३)। ५, ४४)। राय [राज] इन्द्र (तित्य)। इंदासणि पुं [इन्द्राशनि] एक नरक-स्थान इंदिर पुं [इन्दिर ] भ्रमर, भमरा, भौंरा लट्रि स्त्री [यष्टि] इन्द्र-ध्वज (णाया १, (देवेन्द्र २६)।
'झंकारमुहरिदिराई' (विक्र २६)IV १)। लेहा स्त्री [ लेखा] राजा त्रिकसंयत इंदिदिर इन्दिन्दिर] भ्रमर, भमरा, भौंरा इंदिरा स्त्री [इन्दिरा] लक्ष्मी (सम्मत्त २२६)" की पत्नी (पउम ५, ५१)। वजा स्त्री (पाम दे १,७६)iv
इंदीवर न [इन्दीवर] कमल, पद्म (पउम १०, [°वना] छन्द-विशेष का नाम, जिसके एक
इंदिय पुन [इन्द्रिय] १ आत्मा का चिह्न, ज्ञान पाद में ग्यारह अक्षर होते हैं (पिंग)। वसु के साधन-भूत इन्द्रिय--श्रोत्र, चक्षु, घ्राण,
इंदु ([इन्दु चन्द्र, चन्द्रमा (पान) स्त्री [°वसु] ब्रह्मराज की एक पत्नी (राज)। जिह्वा, त्वक और मनः 'तं तारिर्स नो पयलेंति
इंदुत्तरवडिंसग न [इन्द्रोत्तरावतंसक] देव- । वाय पुं[वात] एक माएडलिक राजा इंदिया' (दसचू १, १९ ठा ६)। २ अंग,
विमान-विशेष (सम ३७) । (भवि) । वारण पुं [°वारण] इन्द्र का
शरीर के अवयव; 'नो निग्गंथे इत्थीरणं इंदियाई इंदुर पुंस्त्री [उन्दुर] चूहा, मूषक (नाट) हाथी, ऐरावत (कुमा)। 'सम्म पु[शर्मन]
मणोहराई मरणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता इंदोकत न [इन्दुकान्त] विमान-विशेष (सम स्वनाम-ख्यात एक ब्राह्मण (आवम) । साम
भवई' (उत्त १६)। अवाय पुं[पाय] इन्द्रियों णिय पुं[सामानिक] इन्द्र के समान ऋद्धि
द्वारा होनेवाला वस्तु का निश्चयात्मक ज्ञान-विशेष इंदोव देखो इंद-गोव (पायः दे १, ७६) । वाला देव (महा)। 'सिरी स्त्री [°श्री] राजा
(पएण १५)। ओगाहणा स्त्री [विग्रहणा] इदोवत्त पुं[दे] इन्द्रगोप, कीट-विशेष (दे १, ब्रह्मदत्त की एक पत्नी (राज)। सुअ पुं
इन्द्रियों द्वारा उत्पन्न होनेवाला ज्ञान-विशेष [सुत] इन्द्र का लड़का, जयन्त (दे ६,१६)।
(पएण १५)। जय पुं[जय] १ इन्द्रियों | इंद्र देखो इंद = इन्द्र (पि २६८) । 'सेणा स्त्री [°सेना] १ इन्द्र का सैन्य । २
का निग्रह, इन्द्रियों को वश में रखना; 'अजि- इंध न [चिह्न] निशानी, चिह्न (हे १, १७७; एक महानदी (ठा ५, ३)। णु देखो धणु
इंदिएहि चरणं, कटुं व घुणेहि कीरइ असारं । | २, ५०; कुमा)। (हे १, १८७) । उह न [rयुध] इन्द्रधनु
तो धम्मत्थीहि दव, जइअव्वं इंदियजयम्मि' इंधण न [इन्धन] १ इंधन, जलावन, लकड़ी (णाया १,१) । उहप्पभ पुं[युधप्रभ]
(इंदि ४)। २ तपो-विशेष (पव २७०)। "ट्ठाण वगैरह दाह्य-वस्तु (कुमा)। २ अस्त्र-विशेष वानरद्वीप का एक राजा (पउम ६, ६६)।
न [ स्थान] इन्द्रियों का उपादान कारण, (पउम ७१, ६४) । ३ उद्दीपन, उत्तेजन (उत्त मिअ पुं [मय] राजा इन्द्रायुधप्रभ का
, जैसे श्रौत्रेन्द्रिय का आकाश, चक्षु का तेज वगैरह १४)। ४ पलाल, पुआल, तृण वगैरह, जिससे पुत्र, वानरद्वीप का एक राजा (पउम ६,६७)N
(सूम १,१)। णिवत्तणास्त्री ["निर्वर्त्तना] फल पकाये जाते हैं (निचू १५)। साला स्त्री इंद पुन [इन्द्र] एक देवविमान (देवेन्द्र १४१)
इन्द्रियों के आकार की निष्पत्ति (परण १५)।। [शाला] वह घर, जिसमें जलावन रक्खे इंद वि [ऐन्द्र] १ इन्द्र-संबन्धी (णाया १, °णाण न [ज्ञान] इन्द्रिय-द्वारा उत्पन्न ज्ञान, | जाते हैं (निचू १६) TV १)। २ न. संस्कृत का एक प्राचीन व्याकरण
प्रत्यक्ष ज्ञान (वव १०)। स्थ पुं[र्थि] इंघिय वि [इन्धित] उद्दीपित, प्रज्वलित (बृह (आवम) ।
इन्द्रिय से जानने योग्य वस्तु, रूप-रस-गन्ध इंदगाइ पुं[दे] साथ में संलग्न रहनेवाले
वगैरह (ठा ६) । पजत्ति स्त्री [पर्याप्ति] इक न [दे] प्रवेश, पैठ 'इकमप्पए पवेसणं' कीट-विशेष (दे १, ८१)। शक्ति-विशेष, जिसके द्वारा जीव धातुओं के (विसे ३४८३)
. इंदग्गि पुंदे] बर्फ, हिम (दे १,८०)। रूप में बदले हुये आहार को इन्द्रियों के रूप में इक्क देखो एक्क (कुमाः सुपा ३७७; दं ४०) इंदग्गिधूम न [दे] बर्फ, हिम (दे १,८०)। परिणत करता है (पएण १)। "विजय पुं
पाम प्रासू १०० कसः सुर १०, २१२ श्रा इंदड्ढलअ [दे] इन्द्र का उत्थापन (दे १, [विजय] देखो 'जय (पंचा १८)। विसय
१० दं २१, रयण २ श्रा, पउम ११, ८२)
[विषय देखो त्थ (उत्त ५)
३२) इंदमह वि [दे] १ कुमारी में उत्पन्न । २ न. इंदिय न [इन्द्रिय लिंग, पुरुष-चिह्न (धर्मसं | इक्कड पुं[इक्कड] तृण-विशेष (पएह २; ३; कुमारता, यौवन (दे १, ८१)। ९८१)।
पराग १) । इंदमहकामुअ ' [दे. इन्द्रमहकामुक] | इंदियाल देखो इंद-जाल (सुपा ११७; महा)। इक्कड वि [ऐक्कड] इकड़ तृण का बना हुआ कुत्ता, श्वान (दे १, ८२, पान)
इंदियाल देखो इंद-जालि: 'तूह कोउयत्थ- (पाचा २, २, ३, १४).v इंदा स्त्री [इन्द्रा] १ एक महानदी (ठा ५,३)। इंदियाल मित्थं विहियं मे खयरइंदियालेण' इक्कण वि. [दे] चोर, 'चुरानेवाला (दे १,८०);
२ धरणेन्द्र की एक अग्र-महिषी (गाया २) (सुपा २४२); 'जह एस इंदियाली, दंसह 'बाहुलयामूलेसुं रइयायो जगमऐकणाप्रो उ। इंदा स्त्री [ऐन्द्री] पूर्व-दिशा (ठा १०)। | खणनस्सराई रूवाई' (सुपा २४३.)V । बाहुसरियाउ तोसे (स ७६)
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