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पाइअसहमण्णवो
ईसर [ईश्वर] अणिमा श्रादि माठ प्रकार ईसाण पुं [ ईशान ] अहोरात्र का ग्यारहवाँ के ऐसे सम्पन्न (धर २५ ) । (१०, १३) ।
ईसरियन [देश्यये] वैभव, प्रभुता, ईधरपन ( म ० ६३ ) 1/ ईसा भी [ईषा] लोकपालों की अप्रमाद
ईसाणा श्री [रेशानी] ईशान कोण १०) ।
१
थियों की एक पार्थदा (२, २)
नेन्द्र की एक परिषद् (जीव ३) एक काष्ठ (दे २, ६६) ।
ईसा स्त्री [ईर्षा] ईर्ष्या, द्रोह (गउड)। रोस [ष] क्रोध, गुस्सा (कप्पू) । ईसाइय वि [ईर्ष्यायित ] जिसको ईर्ष्या हुई हो वह (सुपा ६१) ।
।
२ पिशा ३ हल का
ईसाण [ईशान] १
शेषरा
देवलोक (सम २ ) । २ दूसरे देवलोक का इन्द्र (ठा २, ३ ) । ३ उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा, ईशान कोण (सुपा ९८ ) । ४ मुहूर्तविशेष (सम ५१) । ५ दूसरे देवलोक के निवासी देव (ठा १० ) । ६ प्रभु, स्वामी (विसे) । वडिंग न [वतंसक] विमानविशेष का नाम (सम २५ ) ।
[3] प्राकृत वर्णमाला का परचम अक्षर, स्वर - विशेष ( प्रामा) । २ उपयोग रखना, क्यांस करना 'उति उपयोगकर २११८) ३ गतिक्रिया (धानम
(विसे
[3] निम्नोक्तं भय का सूचक अव्यय - १ संबोधन, भ्रामन्त्रणं । २ कोप- वचन, क्रोधोक्ति । ३ मनुकम्पा, दया। ४ नियोग,
। प्राश्वयं । ६ हुकुम ५ विस्मय, घाव मंगीकार स्वीकार । ७ प्रश्न, पृच्छा (हे २, २१७ ) ।
उ [तु] इन भय का सूचक प्रव्यय-१ विशेषण । २ कारण ( वब १) । --
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ईसाणी स्त्री [पेशानी]ईशान कोण २
।
विद्या-विशेष (पउम ७, १४१)। ईसालु वि [ई] ईर्ष्या द्वेषी (महा मा ६३४ प्राप्त) ( पचम ३६, ४५) । ईसास देखो इस्सास; 'ईसासठ्ठाण' (निरपि |
(डा
ह स्वी. 'णी
१६२) ।
ईसि [ ईषत् ] १ थोड़ा, अल्प (परण २६) २वशेष सिद्धिक्षेत्र - भूमि (सम २२ ) । पब्भार वि ['प्राग्भार] थोड़ा अवनत (पंचा १८ ) । पब्भारा स्त्री [प्रागभारा ] पृथिवीविशेष सिद्धि-क्षेत्र (ठा सम २२ ) । ईसिअ न [ ईष्यित ] १ ईर्ष्या, द्वेष (गा ५१० ) । २ वि. जिसपर ईर्ष्या की गई हो वह (दे २, १६) ।
ईसिअ न [दे] १ भील के सिर पर का पत्र -
।। इम सिरिपाइअसमद्दण्णवे ईधाराइसकललो रणाम चउत्यो तरंगो समत्तो ॥
उ
उम्र [तु] इन भय का द्योतक भव्यय - १ समुच्चय, धौर (कप्प)। २ अवधारण, निश्चय ( भावम) ३ किन्तु परन्तु (डा ३ १) ४ नियोग, प्राज्ञा । ५ प्रशंसा । ६ विनिग्रह। ७ शंका की निवृत्ति ()। पादपूत के लिए भी इसका प्रयोग होता है (उब)। देखो उब 'उपो को (षद् २, १,६०)।
[[]] निम्नोमय का सूचक प्रायय१ ऊँचा 'मे' (धानम) २ चिप ऊष्वंः 'उकर्मत' । रीत, उलटा 'उकम' (विसे)। ३ प्रभाव, रहितता; 'उकर' (गाया १, १ ) । ४ ज्यादा,
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ईसर - उअ
पुट, भीलों की एक तरह की पगड़ी। २ वि. वशीकृत, वश किया हुमा (दे १, ८४) । ईसि देखो ईसि (महा सुर २ १६० ? ईस पि १०२ ) ।
ई
तक [ई] १ देखना। २ विचारना । ३ चेष्टा करना । ईहए (विसे २६१)। ईमान (उड सुपा विसे २५०) 'नाईदि ईहण न [ईहन ] नीचे देखो (प्राचू १) । ऊण मनु' (पच विये २५७ ) IV
स्त्री [हा] १ विचार, ऊहापोह, विमर्श (खाया १, १ सुपा ५७२२ प्रयत्न (प्रोघ ३ ) । ३ मति- ज्ञान का एक भेद (पण १५ ठा ५) । ४ इच्छा ( स ६१२) । मिग, "मिय [ग] १ वृक, भेड़िया (खाया १,१ भग ११, ११) । २ नाटक का एक मेद (राय)।
ईहा स्त्री [ईक्षा] प्रवलोकन, विलोकन (प्रौप)। ईहिय वि [ईहित] चेष्टित (सूम १, १, ३ ) २, विचारिता-विषयकृत (विसे २५७) ।
विशेष: 'उयोविय' (७ बिले ३५७२)। उअ म [दे] विलोकन करो, देखो (दे १, ८६ टी. हे २, १११) ।
उअ भ [ उत] इन अर्थों का सूचक अव्यय१ विकल्पना २
नम ३ प्रश्न, पृच्छा । ४ समुच्चय । ५ बहुत, प्रतिशय (हे १, १७२)
।
उअ [दे] ऋजु, सरल (षड् ) । उन देतो उब (गा ५० से ६६) उअ न [उद] पानी, जल । सिंधु वु ['सिन्धु ] समुद्र, सागर (पि ३४० ) ।
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