________________
आहिय-इइ पाइअसहमहण्णवो
१२९ निर्मित (पास)। "गि [ग्नि अजि- आहुइ स्त्री [आहुति १ हवन, होम (गउड)। वधू के प्रवेश होने पर जो जिमाने का उत्सव होत्रीय ब्राह्मण (पउम ३५, ५)।
२ होम का पदार्थ, बलि (स १७)। किया जाता है वह (पाचा २, १, ४)। आहिय वि [आहित] १ व्याप्त, 'अचिरेणा- आहुंदुर पुंदे] बालक, बच्चा (दे १, | आहेय वि [आधेय] १ स्थाप्य । २ प्राश्रित हिमो एस जलोयरवाहिणा' (कुप्र ४३)।२ आहुंदुरु J६६)।
(विसे ६२४) जनित, उत्पादित। ३ प्रथित, प्रसिद्धि-प्राप्त आहुड न [दे] १ सीत्कार, सुरत समय का आहेर देखो आहीर (विसे १४५४) 10 (सू १, २, २, २६)। ४ सर्वथा हितकारी शब्द । २ परिणत, विक्रय, बेचना (दे १,७४) आहेवश्च न [आधिपत्य] नेतृत्व, मुखियापन (सूत्र १ २, २, २७) ।
| आहुड अक [दे] गिरना। पाहुडइ (दे १, (सम ८६)।। आहिय वि [आख्यात] कहा हुआ, प्रति- ६६)
आहेवण न [आक्षेपण] १ माक्षेप । २ क्षोभ पादित, उक्त (परण ३३; सुज १६) V आ हुडिअ वि [दे] निपतित, गिरा हुआ (दे उत्पन्न करना (पएह १,२) आहियार पुं [अधिकार] अधिकार, सत्ता, १, ६६)।
आहोअ देखो आभोग (से १, ४६ ६, ३) हक (पउम ५५, ८)। आहुण सक [आ + धु] कंपाना, हिलाना ।
गा ८८ गउड) V आहिवत्त देखो आहिपत्त (काल) | कवकृ. आहुणिज्जमाण (णाया १, ६)TV
आहोअ देखो आभोय = प्रा+ भोजय । आहिसारिअ वि [अभिसारित] नायक-बुद्धि | आहुणिय वि [आधुनिक] १ आजकल का, |
संकृ. आहोइऊण (स ५५) ।। से गृहीत, पति-बुद्धि से स्वीकृत (से १३,१७) नवीन । २ पुं. ग्रह-विशेष (ठा २, ३) आहीर [आहीर] १ देश-विशेष (कप्प)। आहुत्त न [दे. अभिमुख सम्मुख, सामने | आहाइ
| आहोइअ वि [आभोगित] ज्ञात, दृष्ट (स २ शूद्र जाति विशेष, अहीर (सूस १, १)। 'कुमरोवि पहाविमो तयाहुत्तं' (महा भवि) V १५)' ३ इस नाम का एक राजा (पउम ६८, ६४)। आहूअ वि [आहूत] बुलाया हुआ (पास) आहोइअ वि [आभोगिक ] उपयोग ही श्री.री-अहीरिन (सुपा ३६०)।
आहूअ पुं[आहूक] पिशाच-विशेष (इक) M जिसका प्रयोजन हो वह, उपयोग-प्रधान आहु सक [आ+ हवे] बुलाना। कृ. आहु- आहूअ वि [आभूत] उत्पन्न, जातः 'माहूमो |
आभूत उत्पन्न, जातः 'पाहूमो (कप्प)v णिज (मौप)।
से गब्भो' (वसु)।
| आहोड सक [ ताडय् ] ताड़न करना, पिटना आहु [आ + हु] दान करना, त्याग करना । आहेउं देखो आहा=पा+पा।
आहोडइ (हे ४, २७)। कृ. आहुणिज्ज (णाया १, १)।
आहेड । पुंन [आखेट, क] शिकार, | आहोरण [आधोरण] हस्तिपक, महावत आहु म [आहु] अथवा, या (नाट) आहेडग मृगया (सुपा १९७; स ९७ (पामः स ३६६) IV आहु [दे] घूक, उल्लू (दे १, ६१) । आहेडय दे)।
आहोहि वि [आधोवधिक] प्रवधिआहु देखो आह = बज ।
आहेडिय वि [आखेटिक] मृगया-सम्बन्धी, आहोहिय । ज्ञानी का एक भेद, नियत क्षेत्र आहुइ वि [आहोत्] दाता, त्यागी (णाया | 'माहेडियभसणेण' (सम्मत्त २२६) IV को अवधिज्ञान से देखनेवाला (भगः सम १, १)
आहेण न [दे] विवाह के बाद वर के घर ६६)
'इम पाइअसहमहण्णवे आयाराइसहसंकलणो ।
बिइमो तरंगो समत्तो।
इ[इ] १ प्राकृत वर्णमाला का तृतीय स्वर- वर्ण (प्रामा) । २-३ वाक्यालङ्कार और पादपूर्ति में प्रयुक्त किया जाता अव्यय (कप्प; हे २, ११७ षड् ) इ देखो इइ (उवा)।
इ सक [] १ जाना, गमन करना। २ जानना । एइ, एंति (कुमा)। वकृ. एंत (कुमा)। संकृ. इच्चा (प्राचा)। हेल. इत्तए, "एत्तए (कप्पः कस)। इअहरा देखो इयरहा (प्राकृ ३७)।।
इइम [इति] इन अयों का सूचक अव्यय१ समाप्ति (प्राचा)। २ अवधि, हद (विसे)। ३ मान, परिमाण (पव ८४)। ४ निश्चय (निचू २,१५)। ५ हेतु, कारण (ठा ३)। ६ एवम, इस तरह, इस प्रकार (उत्त २२)। देखो इति।।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org