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आव-आवत्ति पाइअसहमहण्णवो
१२१ यावजीव, जीवन-पर्यन्त (आव)। कहा स्त्री आवजण न [आवर्जन] १ संमुख करना। आवण्ण वि [आपन्न] १ आपत्ति-युक्त । २ [कथा] जीवन-पर्यन्त, 'धरणा प्रावकहाए २ प्रसन्न करना (आचू )। ३ उपयोग, प्राप्त (गा ४६७)। सत्ता स्त्री [सत्त्वा] गुरुकुलवासं न मुंचंति' (उप ६८१)। कहिय ख्याल । ४ उपयोग-विशेष । ५ व्यापार-विशेष | गर्भिणी, गर्भवती स्त्री (अभि १२४) । वि [कथिक] यावजीविक, जीवन-पर्यन्त (विसे ३०५१) ।
आवण्ण वि [आपन] आश्रित (सूत्र १, १, रहनेवाला (ठा ६; उप ५२०) ।
आवज्जिय वि [आवजित] १ प्रसन्न किया | १, १६) आव पुं[आप] १ प्राप्ति, लाभ (पएह २,
हुआ। २ अभिमुख किया हुआ (महा. सुर ६, आवत्त सक [आ + वृत् ] आना, 'नावत्तइ १)। २ जल का समूह। बहुल न [ बहुल]
३१; सुपा २३२)। करण न [°करण] नागच्छइ पुणो भवे तेण अपुरणरावित्ति' (चेइस देखो आउ-बहुल (कस)V व्यापार-विशेष (प्राचू )IV
३५६)। आव सक [आ+या] आना, प्रागमन करना |
आवन्जिय देखो आउजिय = प्रातोद्यिक आवत्त प्रक [आ+ वृत्] १ परिभ्रमण 'वणवसिराणवि निच्चं आवइ निद्दासुहं ताण' (कुमा)
करना । २ बदलना । ३ चक्राकार घूमना । ४ (सुपा ६४७) । आवेइ (नाट)। आवंति (संग
आवज्जीकरण न [आवर्जीकरण] उपयोग- सक. पठित पाठ को याद करना। धुमाना।
विशेष या व्यापार-विशेष का करना, उदीर- आवत्तइ (सूक्त ५१) । वकृ. अत्तमाण, १६२) आवआस सक [उप + गूह. ] आलिंगन
पावलिका में कर्म-प्रक्षेप रूप व्यापार (प्रौपः आवत्तमाण (हे १, २७१, कुमा)IV करना । आवासइ (प्राक ७४)IV विसे ३०५०)
आवत्त पुंआवर्त] १ चक्राकार परिभ्रमण आवइ स्त्री [आपद्] आपत्ति, विपत्, संकट आवट्ट अक [आ + वृत्] १ चक्र की तरह (स्वप्न ५६)। २ मुहूर्त-विशेष (सम ५१)। (सम ५७ सुपा ३२१; सुर ४, २१५; प्रासू घूमना, फिरना । २ विलीन होना। ३ सक..
३ महाविदेह क्षेत्रस्थ एक विजय (प्रदेश) का शोषण करना, सुखाना। ४ पीड़ना, दुःखी | नाम (ठा २, ३)। ४ एक खुरवाला पशु५, १५६) IV करना। पावट्टइ (हे ४, ४१६ सून १, ५, |
विशेष (पएह १, १)। ५ एक लोकपाल का आवंग [दे] अपामार्ग, वृक्ष विशेष, लटजीरा
२)। वकृ. आवट्टमाण (से ५, ८०) नाम (ठा ४, १)। ६ पर्वतविशेष (ठा)। आवट्ट देखो आवत्त (प्राचाः सुपा ६४ सूम
७ मरिण का एक लक्षण (राय)। ८ ग्रामआवंडु वि [आपाण्डु] थोड़ा सफेद, फीका
विशेष (आवम)। शारीरिक चेष्टा-विशेष, (गा २६५) ।
कायिक घ्यापार-विशेष; 'दुवालसावत्ते कितिआवट्टणा स्त्री [आवर्तना] प्रावर्तन (प्राकृ आवंडुर वि [आपाण्डुर] ऊपर देखो (से ६, |
कम्मे' (सम २१)। कूड न [कूट] पर्वत७४)IV
आवट्टिआ स्त्री [दे] १ नवोढ़ा, दुलहिन । २ . विशेष का शिखर-विशेष (इक)। आवंत देखो जावंत; 'मावती के यावंती लोगंसि
यंत वक परतन्त्र स्त्री (दे १,७७) ।
[यमान दक्षिण की तरफ चक्राकार घूमनेसमणा य माहणा य' (प्राचा १, ४, २, ३; १, ५, २, १, ४, पि ३५७)V
वाला (भग ११, ११)।V आवड देखो आवत्त = प्रावत्तं (राय ३०)। आवग्गण न [आवल्गन] अश्व पर चढ़ने की
आवड सक [आ + पत्] १ आना, आगमन | आवत्त पुंन [आवत्त] १ एक तरह का जहाज
करना । २ आ लगना । वकृ. आवडत (प्रासू (सिरि ३८३)। २ न. लगातार २५ दिनों कला (भवि) ।।
का उपवास (संबोध ५८)। आवच्चेन्ज वि [अपत्यीय] अपत्य-स्थानीय
आवडण न [आपतन] १ गिरना (से ६, आवत्त न [आतपत्र] छत्र, छाता (पान)। (कप्प) IV आवज देखो आओज्ज (हे १, १५६) IV ४२) । २ पा लगना (स ३८४)
आवत्तण न [आवर्तन] चक्राकार भ्रमण (हे आवणवीहि स्त्री [आपणवीथि] १ हट्ट-मार्ग,
२,३०)। पेढ़िया स्त्री [°पीठिका] पीठिकाआवज अक [अ+ पद्] प्राप्त होना, लागू होना। आवजइ (कस)। कृ. आवजियव्व बाजार । २ रथ्या-विशेष, एक तरह का मुहल्ला
विशेष (राय) (परह २, ५)IV (राय १००)।
आवत्तय पुं[आवर्तक] देखो आवत्त । १० आवज सक [आ + वर्ज.] १ संमुख
आवडिअ वि [आपतित] १ गिरा हुआ | वि. चक्राकार भ्रमण करनेवाला (हे २, ३०)। करना। २ प्रसन्न करना; 'आवजंति गुणा |
(महा) । २ पास में आया हुआ (से १४, ३)। आवत्ता स्त्री [आवर्ता] महाविदेह-क्षेत्र के खलु अबुहंपि जणं अमच्छरिय' (स ११)।
आवडिअ वि [दे] १ संगत, संबद्ध (दे १, | एक विजय (प्रदेश) का नाम (इक) V आवज सक [आ+ पद्] प्राप्त करना ।
७८, पात्र) । २ सार, मजबूत (दे १,७८) आवत्ति स्त्री [आपत्ति] १ दोष-प्रसंग, 'सव्वप्रावजई (उत्त ३२, १०३)। आवज्जे (सूत्र
आवण पु[आपण] १ हाट, दूकान (णाया विमोक्खावत्ती' (विसे १६३४)। २ आपदा, १, १,२,१६, २०), आवज्जसु (सुख २,९) १, १, महा) । २ बाजार (प्रामा)IV कष्ट । ३ उत्पत्ति (विसे ६६)
वापोत्यपादक आवणिय पुं[आपणिक सौदागर, व्यापारी | आवत्ति स्त्री [आपत्ति प्राप्ति (धर्मसं आवजन (पिंड ४३८)। (पाम)।
४७३)
वि [आपतित] १
रनाः 'आवजति गा
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