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आलप्प-आलीढ
पाइअसद्दमहण्णवो
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आलप्प वि [आलाप्य] कहने के योग्य, | आलाणिय वि [आलानित नियन्त्रित, मज- पित्तए (कस)। वकृ. आलिंपंत। प्रयो. निर्वचनीयः ‘सदसदणभिलप्पालप्पमेगं प्रणेगं' | बूती से बाँधा हुआ: 'दढ़भुयदंडालाणियकमला- आलिंपावंत (निचू ३)(लहुअ८)IV
करिणी निवो समरसीहो (सुपा ४)IV आलिंपण न [आलेपण] १ लेप करना, विलेआलभ सक [आ + लभ् ] प्राप्त करना । आलाव पुं [आलाप] १ संभाषण, बातचीत पन (रयण ५५) । २ जिसका लेप होता है पालभिजा (उवर ११)IV
(था ६)। २ अल्प भाषण (ठा ५)। ३ | वह चीज (निचू १२) IV आलभण न [आलभन] विनाशन (धर्मसं प्रथम भाषण (ठा ४) । ४ एक बार की उक्ति | आलिगा देखो आवलिआ (पंच ५, १४५) । ८८२) (भग ५, ४)।
आलिन्त न [आलित्र] जहाज चलाने का आलभिया स्त्री [आलभिका] नगरी-विशेष आलावक देखो आलाग (सुज ८)। काठ-विशेष (पाचा २, ३, १, ६)।। (उवा, भग ११, २)।
आलावग पुं [आलापक] पैरा, पैराग्राफ, आलित्त वि [आलित] खरण्टित, खरड़ा हुआ, आलय पुन [आलय] गृह, घर, स्थान (महा; | परिच्छेद, ग्रन्थ का अंश-विशेष (ठा २, २) । लिपा हुपा (पिंड २३४) IV गा १३५)।
आलाबण न [आलापन] बांधने का रज्जु | आलित्त वि[आदता१चारों ओर से जला आलय पुन [आलय] बौद्धदर्शन-प्रसिद्ध | आदि साधन, बन्धन-विशेष। बंध पुं[°बन्ध]
हुप्रा, 'जह आलित्ते गेहे कोइ पसुत्तं नरं तु विज्ञान-विशेष (धर्म ६६५, ६६६, ६६७) MM बन्ध-विशेष (भग ८, ६) V
बोहेजा' (वव १,३; गाया १,१,१४)। २ आलयण न [दे वास-गृह, शय्या-गृह (दे १, | आलावण न [आलापन] आलाप, संभाषण
न. आग लगनी, आग से जलना; 'कोट्टिमघरे ६६, ८, ५८)V (वजा १२४)
वसंते आलित्तम्मि वि न डज्झई' (वय ४)। आलव सक[आ + लप्] १ कहना, बात- आलावणी स्त्री [आलापन] वाद्यविशेष (वजा |
आलिद्ध वि [आश्लिष्ट] प्रालिगित (भग १६, चीत करना । २ थोड़ा या एक बार कहना।
८०)IV वकृ. आलवंत (गा ११८, अभि ३८), आल- आलास पुं[दे] वृश्चिक, बिच्छू (दे १,६१)
३. सुर ३, २२२)TV
.. वमाण (ठा ४)। आलविऊण (महा), आलाहि देखो अलाहि ( षड् )।
आलिद्ध वि [आलीढ] चखा हुआ, प्रास्वादित आलि पुं[अलि भ्रमर, भमरा, भौंरा (पडि)
न (से ६, ५६) IV आलविय (नाट)।
आलिसंदग पुंदे. आलिसन्दक] धान्यआलवण न [आलपन] संभाषण, बातचीत,
आलि देखो आली (रायः पा) । वार्तालाप (प्रोघ ११३, उप १२८ टी श्रा आलिंग सक [आ + लिङ्ग] आलिङ्गन |
विशेष (ठा ५, ३; भग ६, ७) IV १६ दे १, ५६; स ६६) IV
करना, भेंटना, गले लगाना। आलिंगइ | आलिसिंदय पु [दे. आलिसिन्दक] ऊपर
(महा) । संकृ. आलिंगिऊण (महा)। हेव. देखो (ठा ५, ३)। आलवाल न [आलवाल] कियारी, थांवला
आलिंगिउं (महा)। (पान) Iv
| आलिह सक [स्पृश् ] स्पर्श करना, छूना ।
आलिंग पुं[आलिङ्ग] वाद्य-विशेष (राय) आलस वि [आलस आलसी, सुस्त (भग
प्रालिहइ (हे ४, १८२)। वकृ. आलिहंत | आलिंग वि [आलिङ्ग्य] १ आलिङ्गन करने १२, २)। 'त्त न [त्व] पालस, सुस्ती
(नाट) योग्य । २ पुं. वाद्य-विशेष (जीव ३)V (श्रा २३)।
आलिह सक [आ + लिख] १ विन्यास आलिंगण न [आलिङ्गन] आलिंगन, भेंट | आलसिय वि [आलसित] आलसी, मन्द
करना, स्थापन करना। २ चित्र करना, (कप्पू)। वट्टि श्री[वृत्ति गाल या कपोल (भग १२, २) ।
चितरना या चित्र बनाना। वकृ. आलिहमाण का उपधान-तकिया, शरीर-प्रमाण उपधान आलसुय देखो आलसिय; 'सावि सायसीला
(सुर १२,४०) ।। (भग ११, ११) पालसुया कुडिला' (सम्मत्त ५३) ।'
आलिहिअ वि [आलिखित] चित्रित (सुर आलिंगणिया स्त्री [आलिङ्गनिका] देखो आलस्स पुंन [आलस्य] सुस्ती, 'पालस्सो
१, ८७) । | आलिंगणत्रट्टि (जीव ३) । रणरणो ' (वजा १६२)। आलिंगिणी स्त्री [आलिङ्गिनी] जानु आदि के
आली सक [आ + ली] १ लोन होना, प्रासक्त आलस्स न [आलस्य पालस, सुस्ती (कुमाः | नीचे रखने का तकिया (पव ८४)
होना। २ आलिंगन करना। ३ निवास सुपा २५१)/ आलिंगिय वि [आलिङ्गित पाश्चिष्ट, जिसका
करना । वकृ. आलीयमाण (गउड)V आलस्सि वि [आलस्यिन्] पालसी, सुस्त प्रालिंगन किया गया हो वह (काल)।
आली स्त्री [आली] १ पंक्ति, श्रेणी। २ (गच्छ २, १)। | आलिंद पुं [आलिन्द] बाहर के दरवाजे के
| सखी, वयस्या (हे १,८३)। ३ वनस्पतिआलाअ देखो आलाव (गा ४२८, ६१६ मै | चौकट्टे का एक हिस्सा (अभि १५६; अवि
विशेष (णाया १, ३)। २८) V
आलीढ वि [आलोढ] १ आसक्त, 'मामूलालोआलाण देखो आणाल (पान, से ५, १७ आलिंप सक [आ + लिप्] पोतना, लेप लधूलीबहुल परिमलालोढलोलालिमाला (पडि)। महा)।
करना। आलिंपइ (उव)। हेकृ. आलिं- । २ न. प्रासन-विशेष (वव १)IV
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