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आसज्ज - आसानर
आसज्ज अ [ आसाद्य ] प्राप्त करके ( विसे ३०) IV
[आ] विक्रम की तेरहवीं शताब्दी का स्वनाम - ख्यात एक जैन ग्रन्थकार (विवे १४३)।
आसण न [आसन] १ जिसपर बैठा जाता है वह चौकी आदि ( आव ४) । २ स्थान, जगह (उत्त १, १ ) । ३ शय्या ( आचा) । ४ बैठना, उपवेशन (हा १)
आसय पुं [आशय ] १ मन, चित्त, हृदय (सुर १३, ३६ पाए । २ भिप्राय (नू १, १५)
आसय [दे] निकट समीप (दे १, ६५) आसणिय वि [आसनित] श्रासन पर बैठाया आसरिअ वि [दे] संमुख-प्रागत, सामने प्राया हुआ (स२६२) ।
हुम्रा (दे १, ६९)
२
आसण्ण न [आसन्न] १ समीप, पास वि. समीपस्थ ( गउड) | देखो आसन्न आसत्त वि [आसक्त ] लीन, तत्पर (महा; प्रासू ६४)
आसन्त वि [आसक्त ] १ नीचे लगा हुआ ( राय ३५) । २ पुं. नपुंसक का एक भेद, वीर्यपात होने पर भी श्री का मालिंगन कर उसके कक्षादि अंगों में जुड़कर सोनेवाला नपुंसक ( पव १०९ ) ।
सति स्त्री [आसक्ति ] भष्वङ्ग, तल्ल (कुमा) ।
आसत्थ पुं [अश्वत्थ ] पीपल का पेड़ (पउम ५३, ७)
सत्य वि [ आश्वस्त ] ९ श्राश्वासन-प्राप्त स्वस्थ । २ विश्रान्त (गाया १, १, सम १५२ पउम ७, ३८ दे ७, २८) आसन्न देखो आसण (कुमा; गउड)। वत्ति वि [°वर्त्तिन्] नजदीक में रहनेवाला (सुपा ३५१) IV
आसम पुं [आश्रम ] तापस आदि का निवास स्थान, तीर्थ-स्थान (परह १, ३० श्रौप ) । २ ब्रह्मचयं, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ और भैभ्य ( संन्यास) ये चार प्रकार की अवस्था (पंचा १०) |V आसमपयन [ आश्रमपद ] तापसों के आश्रम से उपलक्षित स्थान (उत्त ३०, १७) । आसमिवि [ आश्रमिन् ] बालम में रहनेमाता, ऋषि, मुनि वगैरह (१) आसय अक [आ] बैठना । प्रासयंत (after 2) 1✓
आसय सक [ आ + श्री ] १ श्राश्रय करना,
पाइअसमायो
अवलम्बन करना । २ ग्रहण करना । प्रासयइ ( कप्प ) । वकृ. आसयंत (विसे ३२२ ) । आसय पुं [आशक] खानेवाला ( श्राचा) । आसय पुं [आश्रय] श्राधार, अवलम्बन (उप ७१४, सुर १३, ३) I
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आवक [ आ + ] धीरे-धीरे भरना, टपकना । वकृ. आसावमाण (माचा ) । आसव सक [ आ + स्रु ] श्राना, 'आसर्वादि मेला कम्मं परिणामेव भावासवो' (द्रव्य २९) । V आसव पुं [आश्रव] सूक्ष्म छिद्र, देखो; 'सयासव' (भाग १, ६)
आसव टी) ।
[आसव ] मद्य, दारू (उप ७२८ आसव [आ] [१] [कमों का प्रवेशद्वार जिससे कर्मबन्ध होता है वह हिंसा आदि (ठा २, १) । २ वि. श्रोता, गुरु-वचन को सुनने(१) वि [ सक्तिन् ] हिंसादि में प्रासक्त (प्राचा) IV आसवन [] वास-गृह, शय्या-घर (दे १, ६६) ४
आसवाहिया स्त्री [अश्ववाहिका ] अश्व क्रीडा (४) ।
आसाअ सक [ आ + सादय् ] स्पर्शं करना,
छूना। आसाएजा वकृ. आसायमाण (प्राचा २, ३, २, ३) ।
आसस क [ आ + स् ] श्रावासन लेना, विश्राम लेना । श्रससइ, आसससु (पि vee) V
आसण न [आरासन] विनाश, हिंसा ( परह १, ३) ।
तु
आससा श्री [आशंसा] अभिलाषा 'जेसि परिमाणं, तं दुदुं श्राससा हाई' (विसे २५१६) । आमसिय वि [ आश्वस्त ] श्राश्वासन-प्राप्त (स २७८) IV आसा
[आशा ] १ प्राशा, उम्मीद (औप से १, १६ र ३, १७०) २ दिशा (उप
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६४८ टी) । ३ उतर रुचक पर बसनेवाली एक दिक्कुमारी, देवी विशेष (ठा ८) । आसाअ सक [ आ + स्वाद् ] स्वाद लेना, चखना, खाना । श्रासायंति (भग) । वकृ. आसाअअंत, आसाएंत आसायमाण (नाट से ३, ४२३ गाया १,१) । आसा सक [ आ + सादय् ] प्राप्त करना । - आसावे, ४५)
"
आसाअ तक [ आ + शातय् ] घनशा करना, अपमान करना । श्रसाएजा ( महानि ५ ) बर्क. आहार्यत, आसापमान (बा६ ठा ४) आसान
[आस्वाद स्वाद, रस (गा ५६३ से ६, ६५, उप ७६८ टी) । २ तृप्ति ( से १,२६) ।
आसाअ [आस्वाद] स्वाद का बिलकुल भाव (४५)
आसाअ देखो आसय = श्राश्रय ( तंदु ४५) । आसा [आसाद] प्राप्ति (से ६,६८) आसाइअ वि [आशातित ] १ भा तिरस्कृत (पुप्फ ४५४) । २ न. अवज्ञा, तिरस्कार (विवे ६२) । आसाइज पि [आस्वादित] चला था, थोड़ा खाया हुआ (से ५, ४६ ) V आसाइअ वि [आसादित] प्राप्त, लब्ध (हेका ३०; भवि ) ।
आसाढ पुं [आषाढ] १ श्रासाढ़ मास ( सम ३५) । २ एक निह्नव, जो श्रव्यक्तिक मत का उत्पादकथा (डा ७)। 'भूइ ! ["भूति] एक प्रसिद्ध जैन मुनि (कुम्मा २६ ) । आसादा [आषाढा] नक्षत्र- विशेष (ठा २) ।
प्राषाढ़ मास की
आसाठी स्त्री [आषाढ़ ] पूर्णिमा (सुन) । आसाठी श्री [आवाढ] १ याषाढ़ की मास पूर्णिमा । २ आषाढ़ मास की अमावस (सुख १०, ६) IV
आसादेत्तु वि [आस्वादयितृ ] श्रस्वा करनेवाला (ठा ७)
आसाम पुं [आशामर] सातवें वासुदेव और बलदेव के पूर्वभवीय धर्मगुरु का नाम सम १५३) ।
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