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आरेइअ वि [दे] १ मुकुलित, संकुचित । २ भ्रान्त । ३ मुक्त (दे १, ७७) । ४ रोमाञ्चित, पुलकित (दे १, ७७ पाय) आरेण म [आरेण] १ समीप, पास प ३३६ टी) । २ अर्वाक, पहले ( विसे ३५१७) । ३ प्रारम्भ कर (विसे २२८४ ) | आरोअ धक [ उत् + लस्] विकसित होना, उस पाना मारो (हे ४ २०२) आरोअणा देखो आरोवणा (ठा ४ १ विरो २१२७) आरोइअ [हे] देसी आइन (पर आरोगा एक [दे] खाना, भोजन करना, आरोगना | आरोग्गइ (दे १, ६९ ) आरोग्ग न [आरोग्य ] एकासन रूप संयो ५८)
आरोग्ग न [आरोग्य] १ नीरोगता, रोग का अभाव (ठा ४, ३; उव) । १ वि. रोगरहित, नीरोग (कप्प) । ३ पुं. एक ब्राह्मणोपासक का नाम (उप ५४० ) । आरोग्गरिवि [दे] रक्त रंगा हुआा (पद) V आरोग्गज वि [दे] भुक, खाया हुआ (दे
१, ६) TV
आरोद्धवि [दे] १ प्रवृद्ध, बढ़ा हुआ । २ गृहागत, घर में आया हुना (षड् ) आरोयन [आरोग्य ] १ योग, कुशल ९ नीरोगताः 'आरोया रोयं पसूया' (ग्राचा २, १५, ६) IV
आरोल सक [ पु ] एकत्र करना, इकट्ठा करना, माल हे ४, १०२ ) IV आरोलिअ वि [पुञ्जित] एकत्रित, इकट्टा किया हुआ (कुमा) V आरोव एक [ आरोप ] ऊपर
चढ़ाना, ऊपर बैठाना २ स्थापन करना । धारोये (हे ४, ४७). आता आरोविरं आरोपिऊण (भगबुमा महा) IV आरोषण न [आरोपण ] ऊपर चढ़ाना (मुपा
२४६) । २ सम्भावना (दे १, १७४) | आरोणा श्री [आणा] १ ऊपर चढ़ाना २ प्रायश्चित्त- विशेष (वव १ ) । ३ प्रारूपणा,
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पाइअसहमणव
४ प्रश्न, पर्यनुयोग
व्याख्या का एक प्रकार ।
कार के योग्य; 'आलंकारि (विसे २६२७, २९२८) (जीव ) 1 आरोपिय] [आरोपित ] १ चढ़ाया था। आलंकिन वि [दे] पंगु किया हृषा (दे १, २ संस्थापित (महा पाच ६८) IV आलंदन [आम्द] समय का परमा विशेष, पानी से भींजा हुआ हाथ जितने समय सूख जाय उतने से लेकर पाँच अहोरात्र तक का काल (विसे) V
में
आरोस पुं [आरोष] १ म्लेच्छ देश - विशेष । २ वि उस देश का निवासी ( परह १ १६ बस) V
1
आरोसिन
[आरोपित ] कोचित
किया हुआ (से ६, ६९; भवि; दे १, ७०) । आरोह सक [ आ + रुह ] ऊपर चढ़ना, बैठना धरोहर (स) IV
आरोह सक [ आ + रोहय् ] ऊपर चढ़ाना। कृ. आरोहइयञ्च (वव १) आरोह [आरोह] १ सवार, हाथी, घोड़ा मादि पर चढ़नेवाला (मे १२,७५२ ऊँचाई (सम्बाई ( ११ आरोह पुं [दे] स्तन, थन, चूँची (दे १,
६३) ।
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आरोहग वि [आरोहक ] १ सवार होनेवाला २ हस्तिपक, पीलवान, हाथी का रक्षक (औप ) 1 आरोहि वि [ आवेदन ] ऊपर देखो (TT) IV आरोहियन [आ] ऊपर बैठा हुआ
ऊपर चढ़ा हुआ (भवि) आल न [दे] अनर्थक, मुधा (सिरि ८६४) आल न [दे] १ छोटा प्रबाह । २ वि . कोमल, मृदु (दे १, ७३) । ३ आगत ( रंभा ) - आन [आ] कारोप, दोषारोपस (स ४३३); 'न दिज कस्सवि कूडप्रालं ' ( सत्त २) | M 'आल देखो काल (गा ५५० से १, २६; ५, ६६)
आल देखो जाल (से ५, ८५, ६,५६) "आजदेखी ताल 'समस राति मिाल
किया ( से ६, ५६ ) IV आलइअ वि [आलगित ] यथास्थान स्थापित, योग्य स्थान में रखा हुआ (कप्प) । आल कि [आलविक] गृहीवा (भाषा) I
आलश्य वि [आलगित ] पहना हुधा (धावा २, १५, ५) ।
आलंकारिय वि [आलङ्कारिक] १ प्रलंकारशास्त्र ज्ञाता । २ श्रलंकार-संबन्धी ।। ३ अलं
आरेइअ - आलद्ध
उपरो
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आलंदिअ वि [आलन्दिक ] उपर्युक्त समय का उल्लंघन न कर कार्य करनेवाला (विसे) । आलंब सक [ आ + लम्बू ] श्राश्रय करना, सहारा लेना । संकृ. आलंबिय ( भास ११ ) । आलंब पुं [आलम्ब] श्राश्रय, आधार (सुपा ६३५) IV
आय [दे] भूमि-य बनस्पति-विशेष जो आलंत्रण न [आलम्बन] १ श्रश्रय श्राधार, वर्षा में होता है (दे १, ६४ ) जिसका अवलम्बन किया जाय वह (गाया १, १ ) । २ कारण, हेतु, प्रयोजन (श्रावम घाचा
आलंबणा स्त्री [आलम्बना ] ऊपर देखो (पि 260) 1
आदि वि[सम्बन] [लन करने
आलंभिय न [आलम्भिक ] १ नगर- विशेष वाला, भावी (गर (ठा १) २ भगवती सूत्र के ग्यारहवें शतक का बारह उद्देश (भग ११, १२) आसंभिया श्री [आलम्भका] नगरी-विष (भग ११, १२) आलक [] प कुत्ता (मत १२५) आलक्खसक [आ + लक्षय् ] १ जानना । २ चिम से पहचानना म आउक्सिय वि[आउचित] १ज्ञात परिचित। २ चिह्न से जाना हुआ (गउड) V आलग्ग वि [आलग्न ] लगा हुआ, संयुक्त (से ५, ३३)
आन्तविआलपित] संभाषित प्राभाषित ( पउम १६, ४२: सुपा २०८ श्रा ६) । आळतय देखो अल (उड गा९४६) आस्थ [दे] मयूर, मोर (१,६५) । आ[िआलब्ध] १२ संयुक्त
३ स्पृष्ट, छुआ हुआ । ४ मारा हुआ (नाट) ।
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