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पाइअसद्दमहण्णवो
आयासइत्तिअ-आरभ
आयासइत्ति वि [आयासयित] सकलीफ | वकृ. आरंभंत (गा ४२, से ८, ८२) । संकृ. आरड सक [आ + रट्] १ चिल्लाना, बूम देनेवाला (अभि ६३)V
आरंभइत्ता, आरंभिअ (नाट)V मारना । २ रोना । वकृ.आरडंत (उप १२८ आयासतल न [आकाशतल] चन्द्रशाला, | आरंभ पुं [आरम्भ] १ शुरूयात, प्रारम्भ |
टी) । संकृ. आरडिऊण (महा)। घर के ऊपर की खुली छत (कुप्र ४९२) । (हे १, ३०)। २ जीव-हिंसा, वध (श्रा ७)। | आरडिअन [दे] १ विलाप, कन्दन । २ वि. आयासतल न [दे] प्रासाद का पृष्ठ भाग (दे ३ जीव, प्राणी (पएह १,१)। ४ पाप-कर्म चित्र-युक्त (दे १, ७५) । १,७२) ।
(आचा)। य वि [ज] पाप-कार्य से उत्पन्न | आरण पुं [आरण] १ देवलोक-विशेष (अनु; आयासलव न [दे] पक्षिगृह, नीड़ (दे १,
(आचा)। "विणय पुं["विनय आरंभ का | सम ३६% इक)। २ उस देवलोक का निवासी
अभाव । "विणइ वि [विनयिन्] आरंभ देवः 'तं चेव पारणच्नुय प्रोहीनाणेण पासंति' आयासिअ वि [आयासित] परिश्रान्त, खिन्न से विरत (प्राचा)।
(संग २२१; विसे ६६६) (गा १६०)
आरंभग।' [आरम्भक] १ ऊपर देखो | आरण पुंन [आरण] एक देवविमान (देवेन्द्र आयाहम्म वि [आत्मन्न] १ आत्मविनाशक । आरंभय ) (सूत्र २, ६)। २ वि. शुरू करने- १३५) २ न. आधाकर्म दोष (पिंड ६५) ।
वाला (विसे ६२८७ उप पृ३)। ३ हिंसक, आरण न [दे] १ अधर, होंठ । २ फलक (दे आयाहिण न [आदक्षिण] दक्षिण पावं से
पाप-कर्म करनेवाला (प्राचा)IV भ्रमण करना ( उवा )। पयाहिण वि
| आरणाल न [आरनाल] कांजी, साबूदाना [प्रदक्षिण ] दक्षिण पार्क से भ्रमण कर (गउड )। २ पाप-कार्य करनेवाला (उप __ (दे १,६७)।।
आरणाल न [दे] कमल, पद्य (दे १, ६७)।। दक्षिण पावं में स्थित होनेवाला (विपा १, ८६६)IV
आरण्ण वि [आरण्य जंगली, जंगल-निवासी १)। पयाहिणा स्त्री [प्रदक्षिणा] दक्षिण आरंभिअ ' [दे] मालाकार, माली (दे १, पार्श्व से परिभ्रमण, प्रदक्षिणा (ठा १)TV ७१)IV
(से ८, ५६) आरंभिअ वि [आरब्ध] प्रारब्ध, शुरू किया आयु देखो आउ = आयुष् । वंत वि [°वत् ]
आरण्णग) विआरण्यक] १ जंगली,जंगल
शुरू किया आरण्णय } वि[ हुआ (भवि) IV
आरण्णय निवासी, जंगल में उत्पन्न (उप चिरायुष्क, दीर्घ आयुवाला (परह १, ४)V आरंभिअ देखो आरंभ = आ + रम् ।।
२२६७ सा)। २ न. शास्त्र-विशेष, उपनिषद्आर पुं [आर] १ इह-लोक, यह जन्म (सूत्र
आरंभिया स्त्री [आरम्भिकी] १ हिंसा से | विशेष, (पउम ११, १०) IV १,२,१,८ १६,२८७ १,८,६)। २ मनुष्य
सम्बन्ध रखनेवाली क्रिया। २ हिंसक क्रिया आरणिय वि [आरण्यिक] जंगल में बसनेलोक (सूत्र १, ६, २८)। ३ नुकीली लोहे
से होनेवाला कम-बन्ध (ठा २,१; नव १७) वाला (तापस आदि) (सूत्र २, २) ।। की कील (कुप्र ४३४)। ४ न. गृहस्थपन
आरक्ख न [आरक्ष्य कोतवाल का प्रोहदा, आरत वि [आरत १ थोड़ा रक्त (माचा)। (सूत्र १, २, १, ८) कोतवाली, प्रारक्षकता (सुख ३, १)।
२ अत्यन्त अनुरक्त (पएह २, ४)। आर पुं[आर] १ मंगल-ग्रह (पउम १७,
आरक्ख वि [आरक्ष] १ रक्षण करनेवाला १०८ सुर १०, २२४)। २ चौथा नरक का
आरत्तिय न [आरात्रिक] भारती (सुर १०, (दे १, १५)। २ पुं. कोतवाल, नगर का एक नरकावास (ठा ६)। ३ वि. अक्तिन,
१६; कुमा) रक्षक (पान)IV पूर्व का (सूत्र १,६) ।
आरद्ध वि [आरब्ध] प्रारब्ध, शुरू किया आरक्खग वि [आरक्षक] १ रक्षण करने
हुआ (काल) IV आरअ वि [कारक कर्ता, करनेवाला (गा | वाला, त्राता (कप्पः सुपा ३५१)। २ पुं.
आरद्ध वि [दे] १ बढ़ा हुआ। २ सतृष्ण, १७६; ३४८) । क्षत्रियों का एक वंश । ३ विं. उस वंश में !
उत्सुक । ३ घर में आया हुमा (दे १, ७५)।आरओ अ [आरतस् ] १ पूर्व, पहले, उत्पन्न (ठा ६)
आरनाल देखो आरणाल = आरनाल (पाप)। अर्वाक् (सुअ १,८; स ६४३) । २ समीप में, आरक्खि वि [आरक्षिन् रक्षक, त्राता (ठा
आरनाल न [दे] कमल, पद्म ( षड् )।v पास में (उप ३३१)। ३ शुरू कर के, प्रारम्भ ३, १; ओघ २६०)।
आरनिय देखो आरणिय (सूत्र २, २, कर के (विसे २२८५)IV
आरक्खिगा वि [आरक्षिक] १ रक्षक, २१) / आरओ अ[आरतस] पीछे से (गदि २४६ | आरक्खिय त्राता। २ पुं. कोतवाल (निचू |
आरब देखो आरव ।। टी) V १,१६; सुपा ३३६; महाः स १२७, १५१)
आरब्भ नीचे देखो। आरंदर वि [दे] १ अनेकान्त । २ संकट, | आरज्झ सक[आ +रा आराधन करना।
आरभ देखो आरंभ = आ+रभ् । प्रारभइ व्याप्त (दे १, ७८)। मारज्झइ (प्राकृ ६८)।
(हे ४, १५५ उवर १०)। वकृ. आरभंत, आरंभ सक [ आ + र] १ शुरू करना। आरज्झवि [आराध्य] पूज्य, माननीय (अच्च | आरभमाण (ठा ७) । संकृ. आरब्भ (विसे २ हिंसा करना । प्रारंभइ (हे ४, १५५)।। ७१)
७६५).V
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