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पाइअसद्दमहण्णवो
आयप-आयव
रखनेवाला, मन और इन्द्रियों का निग्रह करने- आयड्ढि स्त्री [आकृष्टि] ऊपर देखो (गउडा । ६ निर्णय, निश्चय (सूत्र १, ६)। ७ निर्दोष वाला। २ अश्व आदि को संयत रहने को दे ६, २१)।
स्थान (साधं १०६)। सिखानेवाला (ठा ४, २)।
आयड्ढि पुं[दे] विस्तार (दे १, ६४)। आयर सक [आ+चर ] आचरना, करना। आयंप पुं [आकम्प] १ क.पना, हिलना। आयड्ढिय वि [आकृष्ट] खींचा हुआ (काल; | प्रायरइ (महा; उब)। वकृ. आयरंत, २ कैंपानेवाला (पउम ६६, १८)। कप्पू) IV
आयरमाण (भग)। कृ.आयरियव्य (स १). आयंपिय वि [आकम्पित] कॅपाया हुआ (स
आयण्ण सक [आ + कर्णय ] सुनना, | आयर पुं [आकर] १ खानि, खान । २ समूह ३५३)
श्रवण करना । पापगणेइ (गा ३६५)। वकृ. (काल; कप्पू) ।। आयंब अक [वे ] काँपना, हिलना ।।
आअण्णंत (से १, ६५; गा ४६५; ६४३)। आयर देखो आयार % प्राचार (पुष्फ ३५६)। प्रायंबइ (हे ४, १४७)।। संकृ. आयण्णिऊण (उवा)IV
आयर पुं [आदर] १ सत्कार, सम्मान आयण्णण न [आकर्णन] श्रवण (महा)M (गउड) । २ परिग्रह, असंतोष (पएह १,५) । आयंब । वि [आताम्र] थोड़ा लाल | आयंबिर । (प्रोपः सुर ३, ११०, सुपा ६, ।
आयण्णिय वि [आकर्णित] सुना हुआ | ३ ख्याल, संभाल (कप्पू) । (उवा) IV
आयरंग पुं [आयरङ्ग] इस नाम का एक आययंत वकृ [आददत् ] ग्रहण करता आयंबिल न [आचाम्ल] तपो-विशेष, आंबिल
म्लेच्छ राजा (पउम २७, ६)iv (गाया १,८) । वड्ढमाण न [ वर्धमान] हुआ (सूत्र २, १)IV
आयरण न [आचरण] प्रवृत्ति, अनुष्ठान (पडि)।। तपश्चर्या विशेष (अंत ३२; महा)
आयत्त वि [आयत्त] अधीन, स्ववश (गा | आयरण न [आदरण] पादर (भग १२,५)।
३७६) IM आयंबिलिय वि [आचाम्लिक आम्बिल-तप
आयरणा स्त्री [आचरणा] परंपरा का रिवाज का कर्ता (ठा ७; पण्ह २, १) ।
आयन्न देखो आयण्ण । वकृ. आयन्नंत (सुर (चेइय २५) ।। आयंभर । वि[आत्मम्भरि] स्वार्थी,अकेल१, २४७) ।
आयरणा स्त्री [आचरणा] पाचरण, अनुष्ठान आगंभरि पेटू (ठा ४, ३)
आयन्नण देखो आयण्ण ग (सुर ३, २१०) (सट्ठि १४५: उवर १४५) । आयंव अक [आ+कम्प् ] कांपना, हिलना | आयम सक [आ + चम्] आचमन करना, | अयरिय वि [आचरित] १ अनुष्ठित, विहित, (प्रामा)
कुल्ला करना। हेकृ. आयमित्तर (कप्प)। कृत (उवा) । २ न. शास्त्र-सम्मत चाल-चलन; आयंस आदर्श १ दर्पण (पग्रह १,४ वकृ. आयममाण (ठा ५) IV
'असढेरण समाइन्नं जं कत्थइ केरणइ असावज । आयंसन) सून १,१)। २ बैल आदि के गले आयमग न [आचमन] शुद्धि, शौच (श्रा न निवारियमन्नेहि य, बहुमणमयमेयमायरिय' का भूपण-विशेष (अण)। मुह पुं[°मुख १ | १२ गा ३३० निचू ; स २०६; २५२) ।।
(उप ८१३) एक अन्तर्वीप। २ उसके निवासी मनुष्य (ठा | आयमिअ देखो आगमिअ (हे १. १७७)। | आयरिय पुं[आचार्य] १ गण का नायक, ४, २)।
आयमिणी स्त्री [आयमिनी] विद्या-विशेष मुखिया (आवम)। २ उपदेशक, गुरु, शिक्षक आयक्ष देखो आइक्ख । प्रायक्वाहि (भग)M मायक्वाहि (भग)M (सूम २, २)।
(भग १, १)। ३ अर्थ पढ़ानेवाला (भग अयग वि [आजक] देखो आय = आज आयय वि [आयत १ लम्बा. विस्तृत (उवाः |
८,८)IV (आचा) आयज्म अक [वेप् ] काँपना, हिलना ।
पउम ८, २१५) । २ पुं. मोक्ष (सूत्र १,२)/आयरिस देखो आयंस (हे २, १०५) । आयय सक [आ + दद् ] ग्रहण करना ।
आयल्ल अक [लम्ब् ] व्याप्त होना । २ आयज्झइ (हे ४, १४१ षड् )। वकृ. आयए, प्राययंति (दस ५, २, ३१; उत्त ३,
लटकना; 'केसकलाउ खंधि प्रोगल्लइ, परिआयग्भंत (कुमा) ।। ७)। वकृ. पाययमाण (पिंड १०७)
मोकलु नियंबि आयल्लई' (भवि) । आयट्ट सक [आ+ वर्त्तय ] १ फिराना,
आययण न [आयतन] १ प्रकटीकरण (सूत्र आयल्लया स्त्री [दे] बेचैनी, 'मयरणसरविहुधुमाना। २ उबालना। वकृ. आअटुंत (से |
१,६,१६)। २ आदान कारण (सूत्र १, रियंगी सहसा पायल्लयं पत्ता' (पउम ८, ५, ७५, ८, १६) । कवकृ. आयट्टिजमाण १२, ५)।
१८६); 'विद्धो अणंगबाणेहि भत्ति आयल्लयं (णाया १,६)IV
आययण न [आयतन] १ घर, गृह (गउड)। पत्तो' (सुर १६, ११०); "कि उण पिनवआयट्टण न [आवर्तन] फिराना (सुपा ५३०)।
२ पाश्रय, स्थान (आचा)। ३ देव-मन्दिर अस्स मप्रणापल्लनं अत्तणो उइदेहिं अक्सरेहि आयड्ढ सक [आ + कृष् ] खींचना। (आवम)। ४ धार्मिक जनों का एकत्र होने णिवेदेमि' (कप्पू) । देखो आअल्ल । आयड्ढइ (महा)। कवकृ. आअड्ढिजत (से का स्थान,
आयल्लिय वि [दे] आक्रान्त, व्याप्त (उप ५, २८)। संकृ. आयड्ढिऊण (महा)।
'जत्थ साहम्मिया बहवे सीलवंता बहुस्सुया ।। १०३१ टी भवि) । आयडूण न [आकर्षण] आकर्षण, खींचाव चरित्तायारसंपएणा आययणं तं वियाण हु' आयव पुं[आतपवत् ] अहोरात्र का २४वाँ (सुपा १२, ७६ गा ११८)।।
(धम्म)। ५ कर्मबन्ध का कारण (प्राचा)। मुहूर्त (सुज १०, १३)IV
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