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पाइअसहम
अभिओगिय- आमुक
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पुं
आभिजोगिय [आभियोगित] वशीकरण श्रादि से संस्कृत (आव) । अभियोग देखी अभिओग (पण २० ) । अभिग्गहिअ वि [अभिग्रहिक ] १ अभिग्रहसंवन्धी (पंचा ४ २. मिध्यात्व विशेष (पंच ४, २ ) ।
२०५) जी श्री [भी] मानसिक निर्णय | आमर [आम] संघर्ष, घाघात (कुमा) उत्पन्न करानेवाली विद्या-विशेष (1 आभोव एक [ आ + भोग] देखना २ जानना । ३ ख्याल करना । श्राभोएइ (उवा खाया। वह आभोएमान (कम्प) संह. आभोइत्ता, आभोएऊण, आभोइअ ( दस ५ महा पंचव) आभोय पुं [आभोग] १ सर्प की फरणा (स ६१०)। २ देखो आभोग (भाव) महा सुर ३, ३२) ।
अभिग्गहिय वि [आभिग्रहिक ] १ प्रतिज्ञा से संबन्ध रखनेवाला । २ प्रतिज्ञा का निर्वाह करनेवाला ( भाव ) । ३ न मिथ्यात्व - विशेष (श्रा ६) ।'
अभिनंदिय पुं [अभिनन्दित ] श्रावण मास (चंद ) । आभिट्ट } वि [दे] प्रवृत्त, 'याभिट्टे, परआभिडिय मरणं (पउम ४,४२, ६, १६२; वजा ४२ ) IV
आम अ [आम] अनुमति - प्रकाशक श्रव्ययहाँ (गा ४१७; सुर २, २४५ स ४५६) । आम [ भवत् ] आप (प्राकृ १) IV आम [आम] १ रोग, पीड़ा ( से १, ४४) । २ 'वि. श्रपक्व, कच्चा (श्रा २०)। ३ प्रशुद्ध, अपवित्र (चा) जर [र] धनी से उत्पन्न बुखार (गा ५१) । आमद व [ आमयिन् ] रोगी (१) । आमंत्र [आम] १ स्वीकार सूचक अव्यय -- हाँ ( सुख २, १३) । २ प्रतिशय, अत्यन्त (धर्मसं ६४९) IV
आभिणिबोहिग देखो आभिणिबोहिय ( धर्मसं ८२३) ।
आभिणिबोहिय न [आभिनिबोधिक ] इन्द्रिय और मन से होनेवाला प्रत्यक्षज्ञान-विशेष (सम ३३) । अभिप्पाइअ वि [आभिप्रायिक ] अभिप्राय- आमंड न [दे] बनावटी श्रामला का फल, बाला (१४५) । कृत्रिम श्रामलक (उप पृ २१४; उप १४५ टी ) । आभिसेक वि [आभिषेक्य ] १ श्रभिषेक के प्रोग्य (निर १, १) । २ मुख्य, प्रधानः 'आभिहरि परिक
आभीर पुं [आभीर ] एक शूद्र-जाति, आभीरिय अहीर, गोवाला (सूत्र १, ८, सुर ९, ६२) । V
आभूअ वि [आभूत ] उत्पन्न (निर १, १ ) आमेडिय] [] देखो आभिट्ट (उप४२) । आभोइल व [आभोगित] देखा या कल्प) हुम्रा । आभोग पुं [आभोग] १ विलोकन, देखना (उप १४०)। २ प्रवेश (२२२१) । ३ उपकरण, साधन (श्रोघ ३६ ) । ४ प्रतिलेखन (ओघ ३ ) । ५ उपयोग, ख्याल (भग) । ६ विस्तार (गाया १, १ ) । ७ ज्ञान, जानना (भग २५, ६; ठा ४) । देखो आभोय श्राभोग
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भोगण न [आभोगन] ऊपर देखो (दि) । आभोगि वि [ आभोगिन् ] परिपूर्ण, 'जह कमलो निरवायी जाम्रो सुपा
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आमंडण न [दे] भाण्ड, पात्र (दे १, ६८ ) । आमंत सक [ आ + मन्त्रय् ] १ आह्वान आमंत स [ आ + मन्त्रय् ] १ बाान करना, संबोधन करना । २ अभिनन्दन करना । वकृ. वह आमंतेमाण (माचा संह. आमंतित्ता (कप्प ); आमंतिय (सूत्र १, ४) । आमंतण न [आमन्त्रण] आह्वान, संबोधन ( वव)। वयण न [*वचन] संबोधन-विभक्ति (बिसे २४२७)
आमंतणी श्री [आमन्त्रणी]१ संबोधन की भाषा, प्राह्वान की भाषा ( दस ६) । २ भाठवीं संबोधन-विभ (ठा) आमंतिय वि [आमन्त्रित ] संबोधित (विपा १, ९ ) । V
आमग देखो आम (गाया १, ६) । - आमघाय [अमाघात] मारिदान, हिंसा निवारण (पंचा ९, १५६ २०; २१) | आमज्ज सक [ आ + मृज् ] एक बार साफ करना । श्रमज्जेज ( श्राचा) । वकृ. आमज्जंत (नि) प्रयो. आमजावंत (नि) 1
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आम
[आम] रोग, दर्द ( स ५६६; स्वप्न ६० ) । करणी स्त्री ['करणी] विद्या विशेष (सू २.२)।
[आमराज] एक प्रसिद्ध राजा
आमयवि [आम] संमत, अनुमत (विवे 225) 1v आमराय ( ती ७) 1 आमरिम [आम] स्पर्श (मिले ११०६) । आमलन [आमलक] मामला का फल ( सम्मत्त १५६ )
आमलाई श्री [आमलकी] मामला का पेड़ (8) IV
आमलकप्पा स्त्री [आमलकल्पा] नगरी - विशेष ( गाया २, १ ) ।
आमला [आमरक] १ चारों ओर से मारना । २ विपाक श्रुत का एक अध्ययन (ठा १० ) ।
आमलग) पुंन [आमलक] १ श्रमला का आमलय ) पेड़ (ठा ४) । २ आमला का फल, 'मुक्खोवा धामलगो विय करतले देखियो भगवा' (वसुः कुमा
आमलय न [दे] नूपुर-गृह, नूपुर रखने का. स्थान (दे १,६७) ।
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आमसिण वि [आम] १ थोड़ा चिकना २१२४३) ।
आमिल सक [ आ + मुच् ] छोड़ना आमित (भवि
आमिस न [आमिष ] नैवेद्य (पंचा ६, २६ कुत्र ४२३; ती १३ ) V आमिसन [आमिष] १ मांस (खामा १, ४) २. मनोहर सुन्दर (से, ३१) । ३ श्रासक्ति का कारण, 'प्रामिसं सव्वमुज्झित्ता विहरिस्सामी निरामिसा (उत्त १४) । ४ आहार, फलादि भोज्य वस्तु (पंचा ६) आमुच एक [ आ + मुच्] १ छोड़ना २ उतारना । ३ पहनना । वकृ. आमुचंत ( धाक ३८) IV
आमुक्कवि [आमुक्त] १ त्यक्त (गा ५३६६ गउड) । २ उतारा हुआ (आक ३८ ) । ३ परिहित (बेली १११
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