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आमुट्ठ-आनंदम
पाइअसमयको
आमुट्ठ
वि [आमृष्ट] १ स्पृष्ट । २ उलटा आमोद ) देखो आमोअ (स्वप्न ५२; सुर ३, किया हुआ (प्रोध) । आमोय ४१: काल) आमोय [आमोक] कलवार-गुज्ज, कतवार का ढेर, कूड़े का पुञ्ज ( श्राचा २, ७, ३) आमोरअ वि [दे] विशेषज्ञ, अच्छा जानकार (दे १,६६) ।
आमुस सक [ आ + मृश ] थोड़ा या एक बार स्पर्श करना वह आनुसंत, आमुस माण (ठा १३ श्राचा; भग ८, ३) आमेडणा श्री [आडना] विपर्यस्त करना, आमोस [आमोष] पोर (१२)
आमोस [आमर्श, [३] स्पर्श, ना 'फरिसमामोसो' ( परह २, १टी विसे ७८१) ।
उलटा करना ( परह १, ३) I आमेल पुं (दे) लट, जटा (दे १, ६२) IV आमेल [[][ आपद] फूलों की माला, जो आमेला - मुकुट पर पार की जाती है आमेल j) शिरोभूषण (हे १, १०५ प
आमोस वि [आमोषक ] १ चोर, चोरी करनेवाला (ठा ५, २) । २ चोरों की एक onfer (ure P, $) 1 आमोसदि [आमशौषधि] लम्बि-विशेष, जिसके प्रभाव से स्पर्श मात्र से ही सब रोग नष्ट होते हैं ( परह २ १ श्रौष) आय
आमुय सक [ आ + मुच् ] छोड़ना, त्यागना । श्रमु (गउड)।
१२२: भग ६, ३३) ।
आमेह देखो आमेल मापी (२०६) आमेडि वि [आपीडित] वर्तसित शिरो भूषण से विभूषित ( से ६, २१)
आमोअ क [आ + मुद्] खुश होना । संकृ. आमोएवि (अप) (भवि) । आमोअ [दे. आमोद ] हर्षं, खुशी (दे १, ६४) IV
आमोअ पुं [आमोद ] सुगन्ध, अच्छी गन्ध (से १, २३) I.
आमोअ पुं [आमोद] वाद्य विशेष ( राय ४६ ) आमोअअवि [आमोदक ] १ सुगन्ध उत्पन्न करनेवाला । २ मानन्द-जनक (४०) आमोअअवि [आमोदद] सुगन्ध देनेवाला ( से ६, ४०) । आमोइअनि [आमोदित] दृष्ट (भ) आमोक्ख [आमोक्ष] मोल, मुनि, पूर्ण छुटकारा (सूत्र १, १४, १३) आमोक्खा स्त्री [आमोक्ष ] १ छुटकारा । २ परमपि ४६० ) ।
मोड[]] (१६२) आमोडग न [आमोटक] १ वाय-विशेष (प्राच्) । २ फूलों से बालों का एक प्रकार का बन्धन ( उत्तनि ३ ) M आमोदन न [आमोटन ] थोड़ा मोड़ना (पह १, १) । सामोदिवि [आमोटित] मर्दित ( माल 20) 1
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[आ] सम्बन्धी २ करे के बाल से उत्पन्न (वस्त्रादि ) ( श्राचा) । आय वि [आगत ] माया (काल) आयवि [आत] गृहीत 'आयचरित करे राम (३६) ४
आयइजणग न [आयतिजनक ] तपश्चर्याविशेष (पव २७१) । आयइत्ता देखो आइ = श्रा + दा आयंक पुं [आतङ्क] १ दुःख । २ पीड़ा (चाचा) ३ दुःसाध्य रोग, प्राशुपाती रोग
[आ] १ लाभ प्राप्ति, फायदा (२पति-विशेष (१) कारण, हेतु (विसे १२२६ २६७९ ) । ४ अध्ययन, पठन (विसे १५८ ) । ५ गमन (विसे २७९२) ( औप ) 1 [[]] अध्ययनशास्त्रांश-विशेष ( च आयंकि वि [आतङ्किन] रोगी, रोग-युक्त २५०) TV (ठा ५, ३, टी-पत्र ३४२ ) । आरंगुल न] [आत्मा] परिमाण का एक भेद,
'जे जया मरणूसा, तेसि जं होइ मारणरूवं तु । भरियामणिया दमं तु (विसे ३४० टी) | आयंच सक [ आ + तञ्च् ] सींचना, छिड़कना । श्रयंचइ, श्रयंचामि (उवा) । आयंचणिया श्री [आवनिश] कुम्भकार का पात्र विशेष, जिसमें वह पात्र बनाने के समय मिट्टीवाला पानी रखता है (भग १५) । आर्यचणी स्त्री [ती] ऊपर देखो (भग १५) ।
आयंत वि [आचान्त] जिसने याचमन किया हो वह (गाया १, १ स १८९ ) आयंत देवो आयामा+या आयंवम वि [आत्मतम ] धात्मा को वि करनेवाला (ठा ४, २)
आय [ आग] १ पाप । २ अपराध, गुनाह (श्री २३) । आयी [आत्मन] १ चात्मा, जीव (सम १) । २ निज स्वयं 'अहाल हुस्सगाई रयरगाई गहाय श्रयाए एगंततं श्रवक्कामंत (भग ३, २) । ३ शरीर, देह (लामा १ ८ ४ ज्ञान । आदि धारमा के इस (धाचा गुप्त वि [गुप्त ] संपत, जितेन्द्रिय 'आपत्ता जिई दिया' ( सूत्र ) । जोगि वि [" योगिन् ] मुमुक्षु, ध्यानी (म) "ट्ठि वि [र्थिन] मुमुधु 'एवं से भिक्खू पावडी' (सूप) "तंत वि [[व] स्वाधीन, स्व (राज) [ava] परम पदार्थ, ज्ञानादि रत्नन्वय (याचा पमाण ["प्रमाण] साढ़े तीन हाथ का परिमाण वाला (पद) पचाय
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का एक भाव
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[["प्रवाद] बारहवें पेन भाग सातवां पूर्व (सम २५) ['भाव] १ ग्रात्म-स्वरूप । २ निज श्रभिप्राय (भग) ३ विषयासकि, विराइजो सम्ब प्रायभा (तुम) व [ज] पुत्र लड़का (भवि)। रक्खनि [र] र (गाया १, ८) । ववि [ वत् ] ज्ञानादि आत्मगुणों से संपन्न ( श्राचा)। हम्म वि [न] धारमा को अधोगति में जानेवा २ देखो आहाकम्म (पिंड) आय देखो आत्र 'किचायरक्खिम्रो जो पुरिसो सो होइ वरिससयाऊ' (सुपा ४५३) । आइ स्त्री [आयति] भविष्य काल (सुर ४, १३१) ।
आयंतम वि [ आत्मतमस् ] १ अज्ञानी, अजान । २ क्रोधी (ठा ४, २)
आर्यदम वि [आत्मदम] १ मात्मा को शान्
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