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असोगा - अस्सोकंता
असोगा श्री [अशोका] १ इस नाम की एक इन्द्राणी (ठा ४, १) । २ भगवान् श्री शीतलनाथ की शासनदेवी ( पव २७) । ३ एक नगरी का नाम ( पउम २०, १८६ ) । असोभण वि [अशोभन] असुन्दर, खराब (जम २२, १९) ।
असोय देखो असोग (भगः महा रंभा ) । असोय [ अश्वयुक् ] प्राश्विन मास (सम
२९) ।
असोय वि [अशीच] १ शोषरहित (महा)। २ न. शौच का प्रभाव, प्रशुचिता । 'वाइ वि [["बादिम् ] मशीन को ही माननेवाला (२१८) ।
असोयणवा श्री [अशोचनता] शोक प प्रभाव (पक्खि ) । असोया देखो असोगा (हा २, ३ संधि
ह) ।
असोहिय वि [अपक] कथा (बा) । [असोहि श्री [अशोधि] [१] शुद्धि २ बिरा (७८८) । [स्थान] १ पाप कर्म । २ अशुद्धि स्थान । ३ दुर्जन का संसगं । ४ श्रनायतन (बोध ७६३) । अस्सन [आस्य ] मुख, मुँह (गा ९८६) । अस्स [अस्व] १ द्रव्यरहित, निर्धन । २ २ निर्ग्रन्थ, साधु, मुनि (प्राचा) ।
कण्ण
[अश्व] १ घोड़ा (उप ७६८ टी) । २ अश्विनी नक्षत्र का अधिष्ठायक देव (ठा २, ३) । ३ ऋषि-विशेष (जं ७) । [कर्ण] एक २ द्वीप का निवासी (दि) । कण्णी श्री [कर्णी ] वनस्पति-विशेष (१) । करण न करण] जहाँ घोड़ा रखने में प्राता हो वह स्थान, अस्तबल (घाचा २, १०,१४)। गी[श्रीव] पहले प्रति वासुदेव का नाम (सम १५३) । 'तर पुंस्त्री [तर] खच्चड़ ( पण १) | मुंह पुं [मुख] १-२ इस नाम का एक अन्तद्वीप और उसके निवासी ( ंदि; पण्ण १)। 'मेह पुं [°मेघ] यज्ञ - विशेष, जिसमें अश्व मारा जाता है (अणु) । सेपुं [°सेन] १ एक प्रसिद्ध राजा, भगवान् पाश्र्वनाथ का पिता ( पव ११) । २ एक महाग्रह का नाम ( चन्द २० ) ।
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पाइअसद्दमहणव
[र] विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम ५, ४२ ) । अस्सन [अस] १ अश्रु, आँसू । २ रुधिर, (२९) ।
अस्संख वि [असंख्य ] संख्या - रहित (उप १७) ।
अस्संगिन वि[दे] मास (षद्) । अस्संघयणि वि [असंहननिन् ] रहित, किसी प्रकार के शारीरिक रहित (भग)। अस्संजम देखो असंजम ( उ ) । असंजय वि [अस्वपत] १ दुरु की मातानुसार चलनेवाला था ३१)। अस्संजय देखो असंजय (उन) । अस्संदम [अश्धन्दम] मध-पालक (सुपा ६४५)।
संहनन बन्ध से
अस्सश्च देखो असच 'सुरिरणो हवउ वयणमस्सच्च' (उप १४६ टी) । अस्सण्णि देखी अस ि(जिये ११६) । अस्सत्थ ; [अश्वत्थ] वृक्ष-विशेष, पीप
(नाट) 1
अस्सत्य वि [अस्वस्थ] रोगी बीमार ( सुर ३, १५१; माल ६५ ) । अस्सन्नि देखो असणि (सुर १४,६६० कम्म ४, २३) ।
२
अस्सम [आश्रम] १ स्थान, जगह ऋषियों का स्थान (अभि ६६ : स्वप्न २५ ) । अस्समिअ वि [अश्रमित ] श्रमरहितः अन भ्यासी (भग) ।
अस्सवार देखो असवार ( सम्मत १४२ ) । अस्सस प्रक [ आ + श्वस् ] श्राश्वासन लेना। हे. अस्ससिदुं (शौ) ( श्रभि १२० ) । अस्साइय वि [आस्वादित] जिसका आस्वादन किया गया हो वह (दे ) । अस्साएमाग देखो अस्साय = श्रास्वादय् । अस्साद सक [ आ + सादय् ] प्राप्त करना। अस्सादेति अस्सादेस्सामो (भग १५ ) । अस्साद सक [ आ + स्वादय् ] प्रास्वादन
करना ।
अस्सादण देखो अस्सायण (सुज १०, १६) । अस्सादिय वि [आसादित] प्राप्त किया हुधा (भग १५) |
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अस्साय देखो अस्साद् = आ + सादय् । अस्साय देखो अस्साद = आ + स्वादय् । वकृ. अस्साएमाण (भग १२, १) । कृ. अस्सायण (११२) ।
अस्साय देखो असाय (कम्म २, ७ भग ) । अस्सायण पुं [ आश्वायन] १ अश्व ऋषि का संतान ( जं ७) । २ अश्विनी नक्षत्र का गोत्र (इक) । अस्सावि वि [आस्राविन्] भरता हुआ, टपकता हुआ, सच्छिद्र 'जहा प्रस्साविरिण नावं जाध दुरूह (सूत्र १, १, २) । अस्सास सक [ आ + श्वासय् ] श्राश्वासन देना, दिलासा देगा धरसामग्रदि (शी) (पि ४०) । प्रस्सासि ( उत्त २,४० पि ४६१) । अस्सासण [आश्वासन] एक महाग्रह (सुख २०) ।
अस्सि श्री [अ] १ कोला पर आदि का कोना (ठा ६) । २ तलवार आदि का अग्र भाग -- धार (उप पृε६) । [अस] [अश्विन] ष्ठायक देव (ठा २, २) । अस्सी [अश्विनी] इस नाम का एक नक्षत्र (सम ८ ) ।
नक्षत्र का अधि
अस्सिव [] भाव-प्राप्त 'विरागमेगमस्सिन' (वसुः ठा ७; संथा १८ ) । अस्सु न [अ] धांसू, 'यू' (१७)। अस्सु (शी) न [अ] भि ५९६ स्वप्न ८५) । अस्सुंक वि [अशुक्ल ] जिसकी चुंगी या फीस माफ की गई हो वह ( उप ५६७ टी ) । अस्सुद (शौ) देखो असुय = अश्रुत (अभि १९३) ।
अस्य वि [अस्मृत] याद नहीं किया हुआ (भग) ।
अस्सेसा देखो असिलेसा (सम १७ विसे २४०८) ।
अस्सोई स्त्री [आश्वयुज ] प्राश्विन मास की पूर्णिमा ( चंद १०) | अस्सोई स्त्री [ आश्वयुजी ] श्राश्विन मास की अमावस (सुख १०, ६ टी) देखो आसोया । अस्सोकंता स्त्री [अश्वोत्क्रान्ता] संगीत-शास्त्र प्रसिद्ध मध्यम ग्राम की पांचवीं मूच्र्छना (ढा ७) ।
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