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१०४ पाइअसहमहण्णवो
आउट्टि-आएस आउट्टि स्त्री [आकुट्टि] १ हिंसा, मारना (उप ६८५)। ४ पुं. गाँव का नियुक्त किया आउस वि[अयुष्मत् ] चिरायु, दीर्घायु (प्राचाः उव)। २ निर्दयता (आप १८)। हुआ मुखिया (दे १, १६)।
आउसंत ) (सम २६ प्राचा) आउट्टि स्त्री [आवृत्ति] देखो आउट्टण = |
आउत्त वि [आगुप्त] १ संक्षिप्त (ठा ३,१)। आउसणास्त्रो [आक्रोशना] अभिशाप, निर्भप्रावर्तन (वव १, १, २, १०; सूत्र १, १; २ संयत (भग)।
सन (णाया १, १८; भग १५) । प्राचा)। ५ बार-बार करना, पुनः पुनः क्रिया आउत्थ वि [आत्मोत्थ] आत्म-कृत (वय ४) आउस्स देखो आउस = मा + कुश् । पाउ(सुज १२)। आउर वि [आतुर] १ रोगी, बीमार (दि)।
स्सति (गाया १, १८) आउट्टि वि [आकुट्टिन] १ मारनेवाला, २ उत्कण्ठित । ३ दुखित, पीडित (प्रासू २८
आउस्स ' [आक्रोश दुवंचन, असभ्य वचन हिंसक; 'जाणं काएण गाउट्टी' (सूत्र)।२
(सूम १, ३, ३, १८) अकार्य-कारक (दसा)।
आउर न [दे] १ लड़ाई, युद्ध। २ वि. बहुत।
३ गरम (दे १, ६५, ७६)। आउट्टि वि [दे] साढ़े तीन, ‘एगे पुण एवमा
आउस्सिय वि [आवश्यक] १ जरूरी। २ | आउरिय वि [आतुरित] दुःखित, पीडित हंसु ता आउट्टि चंदा आउट्टि सूरा सव्वलोयं
क्रिवि. जरूर, अवश्य (पएण ३६)। करण (प्राचा) प्रोभासेंति (सुज १६)।
न [करण] १ मन, वचन और काया का
शुभ व्यापार । २ मोक्ष के लिए प्रवृत्ति (पएण आउट्रिम वि [आकुटट्य] कूटकर बैठाने आउल वि [आकुल] १ व्याप्त (प्रौप)।
योग्य (जैस सिक्के में अक्षर) (दसनि २,१७) २ व्यग्र (पाव)। ३ व्याकुल, दुःखित । ४ आउट्टिय देखो आउट्ट = प्रावृत्त (दसा)। संकीर्ण (स्वप्न ७३)। ५ पुं. समूह (विसे
आउह न [आयुध] १शन, हथियार (कुमा)। ७००)।
२ विद्याधर वंश के एक राजा का नाम (पउम आउट्टिय पुं[आकुट्टिक दण्ड-विशेष (भत्त आउल सक [आकुलय् ] १ व्याप्त करना।
५,४४) । घर न [गृह] शस्त्रशाला (ज)। २७)। २ व्यग्र करना । ३ दुःखी करना । ४ संकीर्ण
घरसाला स्त्री [गृहशाला] देखो अनन्तरआउट्टिय वि [आकुट्टित] छिन्न, विदारित करना। ५ प्रचुर करना। कवक-आउ
उक्त अर्थ (ज)। घरिय वि [गृहिक] लिज्जत, आउलीअमाण (महा; पि ५६३) आयुधशाला का अध्यक्ष-प्रधान कर्मचारी आउट्टिया स्त्री [आकुट्टिका] पास में प्राकर
आउलि स्त्री [आतुलि] वृक्ष-विशेष (दे५,५)। (ज)। गार न [गार शस्त्रगृह (ौप)। करना (पंचा १५, १८)।।
आउलिअ वि [आकुलित आकुल किया हुआ आउहि वि [आयुधिन् योद्धा, शस्त्रधारक आउट्ठ वि [आतुष्ट] संतुष्ट (निचू १)।
(गा २५; पउम ३३, १०६, उप पृ ३२) (विसे)। आउड सक [आ+जोडय् ] संबन्ध करना, |
आउलीकर सक [आकुली+कृ] देखो आउल- आऊड अक [दे] जुए में पण करना। आऊजोड़ना । कवकृ.आउडिजमाण (भग ५, ४)M आकुलय् । पाउलीकरेंति (भग) । कवकृ.
डइ (दे १, ६६) आउड सक [आ+कुट ] १ कूटना, पीटना।
आउलीकिअमाण (नाट)
आऊडिय न [दे] द्यूत-पण, जुए में की जाती २ ताडन करना, प्राघात करना। आउडेइ आलीभव
आउलीभूअ वि [आकुलीभूत] घबड़ाया ती
प्रतिज्ञा (दे १,६८) (जं ३)। कवकृ. आउडिजमाण (भग ५, ४)।। हुआ (सुर २, १०)
आऊर सक [आ + पूरय ] भरना, पूति आउड सक [लिख ] लिखना, 'इति कट्टु आउल्लय न [दे] जहाज चलाने का काष्ठमय
करना, भरपूर करना । ऊरेइ (महा) । कृ. णामगं पाउडेइ' संकृ. आउडित्ता (जं ३- उपकरण (सिरि ४२४)।
आऊरयंत, आऊरमाण (पउम) १०२, पत्र २५०)IV आउस अक [आ + वस् ] रहना, वास
३३ से १२, २८) । कवकृ. आऊरिजमाण आउडिय वि [आकुटित आहत, ताडित करना । वा. आउसंत (सम १) 10
(पि ५३७)। संकृ. आऊरिवि (अप) (भवि)। (जं ३-पत्र २२२)।
आउस सक [आ + क्रुश ] प्राक्रोश करना, आऊरिय वि [आपूरित भरा हुमा, व्याप्त आउड्ड अक [ मस्ज् ] मजन करना, डूबना । शाप देना, निष्ठुर वचन बोलना। भाउसइ
| (सुर २, १६९) उडुइ (हे ४, १०१ षड् )।
(भग १५) । पाउसेज, पाउसेसि (उवा)। आऊसिय वि [आयूषित] १ प्रविष्ट । २ आउड्डिअ वि [मग्न] डूबा हुआ, तल्लीन आउस सक [आ + मृश् ] स्पर्श करना, संकुचित (णाया १,८) ।
छूना । वकृ. आउसंत (सम १)। आएज वि [आदेय ग्रहण करने के योग्य आउण्ण वि [आपूर्ण] पूर्ण, भरपूर, व्याप्त आउस सक [आ + जुष्] सेवा करना। उपादेय । णाम, नाम न [नामन्] कर्म'कुसुमफलाउएणहत्यहि' (पउम ८, २०३) वकृ. आउसंत (सम १)।
विशेष, जिसके उदय से किसी का कोई भी आउत्त वि [आयुक्त] १ उपयोग वाला, आउस न [दे] कूचं (दे १, ६५)। क्षुरकर्म
वचन ग्राह्य माना जाता है (सम ६७)। सावधान (कप्प)। २ क्रिवि. उपयोग-पूर्वक (नंदीटि. टिप्पनको
आएस वि [ऐष्यत् ] आगामी, भविष्य में (भग)। ३ न. पुरीषोत्सर्ग, फरागत जाना (?) आउस देखो आउ = प्रायुष् (कुमा) । होने वाला (सूम १, २, ३, २०)।
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